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सृष्टि से पहले सत् नहीं था असत् भी नहीं अंतरिक्ष भी नहीं आकाश भी नहीं था छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था सृष्टि का कौन है कर्ता? कर्ता है या विकर्ता? ऊँचे आकाश में रहता सदा अध्यक्ष बना रहता वही सचमुच में जानता या नहीं भी जानता है किसी को नहीं पता नहीं पता नहीं है पता नहीं है पता वो था हिरण्य गर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर जिस के बल पर तेजोमय है अंबर पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर स्वर्ग और सूरज भी स्थिर ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर जगा जो देवों का एकमेव प्राण बनकर ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऊँ! सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता पूर्वज रक्षा कर सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऋग्वेदः - मण्डल १० सूक्तं १०.१२९ प्रजापतिः परमेष्ठी नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्। किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम्॥१॥ न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः। आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किं चनास॥२॥ तम आसीत्तमसा गूळ्हमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्। तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्॥३॥ कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्। सतो बन्धुमसति निरविन्दन् हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा॥४॥ तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी३दुपरि स्विदासी३त्। रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात्॥५॥ को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः। अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव॥६॥ इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न। यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद॥७॥