У нас вы можете посмотреть бесплатно Maa Chamunda Sthan पचही सिद्धपीठ, मधेपुर, मधुबनी। यहां पर सच्चे दिल से की गई प्रार्थना होती है मंजूर или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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मिथिला में आदिशक्ति जगदंबा के अनेक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। इनमें से एक स्थान मधुबनी जिले के मधेपुर प्रखंड के पचही गांव में मां चामुंडा स्थान है। यह स्थान जप-तप . के लिए भी इतना रमणीय है कि कोई भी भक्त-साधक यहां आने पर ऐसा अनुभव करता है। अत्यंत शांत और निर्जन वन के समान इस स्थान में प्रवेश करते ही अशांत मन स्थिर हो जाता है। शायद यही कारण है कि आज भी यहां नित्य पूजा और दर्शन के लिए दूर-दूर से साधकों की भीड़ आती है। यहांपर सालोंभर आस्था अर्पित करने श्रद्धालु नेपाल, बिहार तथा अन्य स्थानों से पहुंचते हैं। यहां पर महादेव पूजा तथा वासंती व शारदीय नवरात्रा के दौरान यहां सैकड़ों कुमारी कन्याओं एवं भैरव. को भोजन कराया जाता है। मिथिलांचल में प्रसिद्ध इस सिद्धपीठ में मूर्ति नहीं बल्कि पिंडी की पूजा होती है। यह झंझारपुर-मधेपुर मुख्य सड़क किनारे पचही गांव में स्थित है। चामुण्डा स्थान के आसपास का दृश्य बड़ा ही मनोरम है। यहां की प्राकृति-सौन्दर्य बरबस ही श्रद्धालुओं का मनमोह लेता है। सुबह सुबह जब सूर्य की पहली किरणें मंदिर की गुम्बद पर पड़ती है तो एक बड़ा ही दिव्य और मनोहारी दृश्य उत्पन्न होता है। इस सिद्ध पीठ के बारे में यह कहा जाता है कि मुगल शासन काल में मिथिला में अवतरित हुए साधकों में वर्धमान झा उपाध्याय नाम के न्यायशास्त्र के विद्वान पचही गांव में थे। उन्हें चामुण्डा, जयमंगला एवं दुर्गा नाम की तीन पुत्रियां थी। तीनों बहनें प्रतिदिन अपने पिता के पूजा के लिए फूल लाने के लिए गांव से दक्षिण बगीचे में जाती थीं। प्रतिदिन की तरह जब वे एक दिन फूल चुन रही थीं। उसी समय मुगल सेना की टोली उस रास्ते से गुजर रही थी। सैनिकों की गंदी दृष्टि जब इन तीनों बहनों पर पड़ी तो वे इनका पीछा करने लगें। लेकिन जब उन्होंने देखा कि अब वह बच नहीं पाएंगी तो उन्होंने धरती माता से याचना की, हे माता! मुझे अपनी शरण में ले लो नहीं तो यह अत्याचारी, आताताई, पापी-अहंकारी हमें अपवित्र कर देगें। इस करुण रुदन को सुनकर पृथ्वी माता फट गई और तीनों बहनें उसमें समा गई। ऐसा अद्भुत अलौकिक दृश्य देखकर सैनिकों के होश उड़ गए और वे सभी दुष्ट डर से थरथर कांपते हुए वहां से भाग निकले। एक दूसरी मान्यता के अनुसार तीनों कन्याओं को तंग करने वाले गोरी पलटन अर्थात अंग्रेज और उसके सिपाही थें। अंग्रेजों की नजर हमारे भारत की बहन-बेटियां जो देखने में खूबसूरत होती थी उनपर रहती थी। अंग्रेजो के द्वारा उन्हें प्रताड़ित-शोषण किया जाता था। भारत का इतिहास ऐसे हजारों हजार घटनाओं से भरा पड़ा है। जिसकी चर्चा इतिहास के विशेषज्ञ अमर बलिदानी श्री राजीव दीक्षित जी अपने व्याख्यानों में अक्सर किया करते थें। इधर घर में उनके न लौटने से सभी परेशान हो गए। लेकिन रात में वो अपने पिता के स्वप्न में आई एवं सारी बातें बतायीं। सुबह होने पर गाँव के कुछ लोगों के साथ वर्धमान बाबू उस स्थल पर पहुंचे। वहाँ उन्होंने देखा तो वह मंत्रमुग्ध हो गए। जिस स्थान पर धरती फटी हुई थी, वहाँ आश्चर्य की अनुभूति हो रही थी। वह जगह गाँव वालों की श्रद्धा का केंद्र बन गया। तभी से आज तक यह चामुण्डा सिद्धपीठ के नाम से विख्यात है। जहां धरती फटी थी उसी स्थान पर एक पिंड. को स्थापित कर दिया गया और उस स्थान पर एक कच्चा घर बना दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि उसी गांव के एक सिद्ध तांत्रिक रामानंदन जी सरकार के सपनों में वह आई और वहां पर एक पक्का मंदिर बनाने को कहा। कहते हैं कि रामानंद जी शारीरिक रूप से विकलांग थे जैसे-जैसे मंदिर का निर्माण होता गया उनकी विकलांगता भी ठीक होने लगी। उसी स्थान पर जहां पहले वहां फूस का घर था। इसके बाद वहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ होने लगी। अब-तक समय-समय पर बहुत से कोमल और पवित्र हृदय वाले लोगों को स्वप्न में उनके दर्शन होते रहे हैं। वहां जो लोग भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी हो जाती है ऐसा लोगों का मानना है। वहां की प्रसिद्धि देखते हुए बहुत श्रद्धालुओं तथा राज्य सरकार के सहयोग से पुराने जर्जर हो चुके मंदिर की जगह 2006 में बेहतर एवं भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। यहां सिर्फ गाँव वाले ही नहीं, बल्कि दूर-दूर के लोग यहाँ पूजा करने आते हैं और मनोनुकूल फल पातें हैं। वर्षो पूर्व तो इस सिद्धपीठ के प्रांगण में एक अद्भुत घटना घटी। प्रांगण में बरगद का एक पुराना वृक्ष था। 1 दिन तेज आंधी में वह गिर गया तब ग्रामीणों ने उस वृक्ष को बेचने की योजना बनाई और एक ग्राहक के हाथों बेच दिया। ग्राहक ने इस वृक्ष को काट तो दिया, लेकिन दूसरे दिन जब वह आया तो लकड़ी के बदले पहले की तरह वृक्ष का मूल स्तंभ खड़ा था। वह भागा-भागा ग्रामीणों के पास पहुँचा, ग्रामीणों के माध्यम से यह बात दूर-दूर तक फैली। दूर-दूर के लोग उस वृक्ष को देखने आए। काफी दिनों तक वहां पर मेले का माहौल हो गया था। इस बात से लोगों की आस्था और दृढ़ हो गई। अभी वर्तमान में जो मंदिर प्रांगण में बड़ का पेड़ है वह लगभग 40 साल पुराना है। 2013 में जब इस मंदिर के महात्म्य की जानकारी जब तत्कालीन झंझारपुर विधायक श्री नीतीश मिश्र को मिली तो उन्होंने 57 लाख का अनुदान पर्यटन विभाग बिहार सरकार के द्वारा यहाँ के मंदिर के सौन्दर्य को बढ़ाने हेतु दिलवाया। इस जगह पर लगभग 30 वर्षों से ग्रामीणों द्वारा महादेव पूजा धूमधाम से की जाती है। यह पूजा आसपास के इलाकों में काफी प्रसिद्ध हैं। सिद्ध पीठ से दक्षिण चौर में एक तालाब है जो कभी भी सूखता नही है। जबकि वहां के आसपास के सभी तलाब सूख जाते हैं। आज भी हर समय वहां पानी रहता है। कहते है कि यह गंगा का पानी है। कहते हैं इस स्थान पर मां गंगा प्रकट हुई थीं। ऐसा कहा जाता है कि वृद्धावस्था में वर्धमान झा 'उपाध्याय' को गंगा स्नान की इच्छा हुई। इसके बाद उन्होंने पुत्री का स्मरण किया। तत्पश्चात इसराईन चौर में गंगा प्रकट हुई। इसपर वर्धमान झा ने शंका करते हुए कहा कि मैं कैसे मान लूं कि यह आप गंगा हीं हैं। तब उस स्थान पर मां गंगा प्रकट होकर दर्शन दीं।