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श्री चैतन्य चरितावली || श्री कृष्ण लीलाभिनय || Chaitanya Charitawali || Chaitanya Mahaprabhu श्रीकृष्ण-लीलाभिनय यदि एक शब्दमें कोई हमसे भक्तकी परिभाषा पूछे तो हम उसके सामने 'लोकबाह्य' इसी शब्दको उपस्थित कर देंगे। इस एक ही शब्दमें भक्त-जीवनकी, भक्तिमार्गके पवित्र पथके पथिककी पूरी परिभाष परिलक्षित हो जाती है। भक्तोंके सभी कार्य अनोखे ही होते हैं। उन्हें लोककी परवा नहीं। बालकोंकी भाँत्रि वे सदा आनन्दमें मस्त रहते हैं, उन्हें रोनेमें भी मजा आता है और हँसनेमें भी आनन्द आता है। वे अपने प्रियतमकी स्मृतिमें सदा बेसुध से बने रहते हैं। जिस समय उन्हें कोई उनके प्यारे प्रीतमकी दो-चार उलटी- सीधी बातें सुना दे, अहा, तब तो उनके आनन्दका कहना ही क्या है? उस समय तो उनके अंग-प्रत्यंगोंध सभी सात्त्विक भावोंका उदय हो जाता है। यथार्थ स्थितिका पता तो उसी समय लगता है। आइये, प्रेमावतार श्रीचैतन्यके शरीरमें सभी भक्तोंके लक्षणोंका दर्शन करें। एक दिन श्रीवास पण्डितके घरमें प्रभुने भावावेशमें आकर 'वंशी-वंशी' कहकर अपनी वही पुरानी बाँसकी बाँसुरी माँगी। कुछ हँसते हुए श्रीवास पण्डितने कहा- 'यहाँ बाँसुरी कहाँ ? आपकी बाँसुरी तो गोपिकाएँ हर ले गयीं।' बस, इतना सुनना था कि प्रभु प्रेममें विह्वल हो गये, उनके सम्पूर्ण अंगोंमें सात्त्विक भावोंका उद्दीपन होने लगा। वे गद्गदकण्ठसे बार-बार श्रीवास पण्डितसे कहते-'हाँ, सुनाओ। कुछ सुनाओ। वंशीकी लीला सुनाते क्यों नहीं? उस बेचारी पोले बाँसकी बाँसुरीने उन गोपिकाओंका क्या बिगाड़ा था, जिससे वे उसे हर ले गयीं। पण्डित ! तुम मुझे उस कथा-प्रसंगको सुनाओ।' प्रभुको इस प्रकार आग्रह करते देखकर श्रीवास कहने लगे- 'आश्विनका महीना था, शरद् ऋतु थी। भगवान् निशानाथ अपनी सम्पूर्ण कलाओंसे उदित होकर आकाशमण्डलको आलोकमय बना रहे थे। प्रकृति शान्त थी, विहंगवृन्द अपने-अपने घोंसलोंमें पड़े शयन कर रहे थे। वृन्दावनकी निकुंजोंमें स्तब्धता छायी हुई थी। रजनीकी नीरवताका नाश करती हुई यमुना अपने नीले रंगके जलके साथ हुंकार करती हुई धीरे-धीरे बह रही थी। उसी समय मोहनकी मनोहर मुरलीकी सुरीली तान गोपिकाओंके कानोंमें पड़ी।' बस, इतना सुनना था कि प्रभु पछाड़ खाकर भूमिपर गिर पड़े और आँखोंसे अविरल अश्रु बहाते हुए श्रीवास पण्डितसे कहने लगे- 'हाँ, फिर क्या हुआ? आगे कहो। कहते क्यों नहीं ? मेरे तो प्राण उस मुरलीकी सुरीली तानको सुननेके लिये लालायित हो रहे हैं।' श्रीवास फिर कहने लगे - 'उस मुरलीकी ध्वनि जिसके कानोंमें पड़ी, जिसने वह मनमोहनी तान सुनी, वही बेसुध हो गयी। सभी अकी-सी, जकी-सी, भूली-सी, भटकी-सी हो गयीं। उन्हें तन-बदनकी तनिक भी सुधि न रही। उस समय- 🌹🌹🌹🌹🌹❤️🙏❤️🌹🌹🌹🌹🌹 🌹🌹🌹✌️✌️✌️🌹🌹🌹🌹 #chaitanyacharitamrita #chaitnyaprabhu #katha #spirituality • 60-श्री चैतन्य चरितावली सज्जन भाव || Chai... • 59-श्री चैतन्य चरितवाली जगाई-मधाईका पश्चात... • 58-श्री चैतान्य चरितावली जगाई और मधाईकी प... • 57-श्रीचैतन्य चरितावली जगाई मधाईका उद्धार ... • 56- श्री चैतन्य चरितावली जगाई-मधाईकी क्रूर... • 55-श्रीचैतन्य चरितावली घर-घरमें हरिनामका प... • 3-श्रीतुलसीदासका जीवन परिचय चित्रकूटमें श्... • 54-श्रीचैतन्य चरितावली प्रेमोन्मत्त अवधूतक... • 53-श्रीचैतन्य चरितावली भगवद्भावकी समाप्ति ... • 52-श्रीचैतन्य चरितावली भक्तोंको भगवान्के ...