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“गुरु ही ब्रह्म — भय का अंत” सा रे ग म प, प ध नि सा सा नि ध प म ग रे, सा रे ग म प मौन में जो बोले, वही सच्चा नाम अंतर में जो झंके, वही ब्रह्म धाम गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ आत्मा एक, न द्वैत कोई, अज्ञान कहे — “मैं हूँ सोई।” भय वहीं जन्मे जहाँ भेद जागे, ज्ञान जहाँ फैले, तिमिर भागे। जो कहे “मैं हूँ अलग,” वो भटके, अपने ही प्रतिबिंब से लटके। जब देखे जग में हरि का चेहरा, तब मिटे भय, तब जागे सवेरा ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ माया ढके ब्रह्म का चेहरा, दिखे जहाँ दो, वहीं अंधेरा। माया कहे — “तू मैं से अलग,” ज्ञान कहे — “तू मैं ही हरिक।” माया से भी देव न बचते, भक्ति बिना वे भी सिमटते। हरि भजन ही माया हरण, नाम जपे तो मिटे भ्रम वन ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ ज्ञान वही जो भक्ति से फूटे, मन में प्रेम जहाँ शांति लूटे। शब्दों से नहीं, भावना से जागे, नाम स्मरण से माया भागे। हरि कथा रस से मन भीगे, अंतर में ज्योति सतत जगे। नाम पुकारे, माया डोले, भक्त आनंद में खोले बोले ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ गुरु माता, गुरु पिता सम, गुरु ही जग में परम धाम गुरु बिना न ज्ञान, न मुक्ति, गुरु ही साक्षात् दिव्य शक्ति। गुरु दीपक, ब्रह्म का दर्पण, गुरु ही मन का पावन अर्पण। जो गुरुवाणी सत्य समझे, वो स्वयं ब्रह्मरूप में बहे ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ जो गुरु को देखे हरि समान, उसका मिटे सब दुःख निदान। भक्ति में लीन, कर्म से परे, वो ही जीवे प्रेम भरे। गुरु का चरण जपते रहो, भय और माया सब कुछ कहो। गुरु की कृपा जब हृदय में जागे, मुक्ति उसी क्षण जीवन भागे ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ अभक्त सदा द्वैत में फँसे, भ्रम में जनम-मरण में धँसे। भक्त जहाँ हरि में लीन रहे, माया उसे छूने भी न सके। जग का भ्रम स्वप्न समाना, भक्त का मन प्रभु में ठिकाना। हरि नाम ही उसकी गाथा, हरि प्रेम ही उसका पथ-प्रकाशा ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ जिसने मिटाया भय का भ्रम, वही सद्गुरु, वही हरि नाम ॥ गुरु वही जो शिष्य सँभाले, मृत्यु भय से जो मुक्त करे। गुरु ही जीवन का आधार, भक्ति में वो ही अवतार। गुरु चरणों में जो रहे झुका, उसका अंत न कोई दुःखा। गुरु में ब्रह्म, ब्रह्म में गुरु, भक्ति में समरस प्रेम सुरु ॥ गुरु ब्रह्म, शिष्य भी ब्रह्म, भेद मिटे, रह जाए प्रेम। माया, भय, द्वैत सब जाएँ, एकत्व में सब लय हो जाएँ। जब गुरु-हरि में ना कोई भेद, तब जीवन हो अमृत-नेद। गुरु भजन ही ब्रह्म साधन, गुरु चरण ही मोक्ष पथ-रंजन ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही शरण, गुरु ही परम सत्य का कारण ॥ मिटा अज्ञान, मिटी माया, भक्ति से जागा ब्रह्म-प्रभा ॥ गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही हरि, गुरु में ही सब कुछ धरी ॥ Note: This devotional content was created with the support of AI tools under human guidance. It is intended solely for spiritual and creative expression. Copyrights © 2025 Learn Advaita Vedanta.