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"गोपियों के नाम श्रीकृष्ण की चिठ्ठी लेकर उनके चचेरे भाई उद्धव बृज पहुँचे हैं। वो श्रीकृष्ण को समझा कर आये हैं कि मैं गोपियों को प्रेम के मायामोह से निकाल कर उनमें निराकार स्वरूप ब्रह्मज्ञान भर दूँगा। किन्तु गोपियों की अधीरता के सामने उद्धव का सारा ज्ञान धरा रह जाता है। गोपियों की आपसी छीनझपटी में श्रीकृष्ण की चिठ्ठी के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। जिसके हाथ में जो टुकड़ा आता है, वह उसे लेकर भाग जाती है। कभी वे इसे चूमती हैं तो कभी रूमाल बनाकर नयनों से बहते नीर को पोंछती हैं। उद्धव अवाक् खड़े होकर देखते रह जाते हैं किन्तु फिर सभी के हाथों से चिठ्ठी के सभी टुकड़े जबरन बटोर लेते हैं और बहुत ही रूखे स्वर में कहते हैं कि इस चिठ्ठी में कृष्ण ने लिखा है कि अब मैं कभी गोकुल नहीं आऊँगा, मुझे भूल जाओ। इस पर गोपियां यह कहते हुए उद्धव के हाथ से चिठ्ठी को छीन लेती हैं कि अगर इस चिठ्ठी में यही लिखा है तो यह बृज का अपमान पत्र है, इसके नष्ट कर देना चाहिये। इसके बाद वे चिठ्ठी की चिन्दी चिन्दी करके फेंक देतीं हैं। उद्धव गोपियों पर क्रोध करते हुए कहते हैं कि तुमने जिस पत्र को फाड़ दिया है, उसे स्वयं परब्रह्म ने अपने हाथों से लिखा था और इसमें वो गूढ़ ज्ञान था जिसे पाने के लिये ऋषि मुनि वर्षों तपस्या करते हैं। यहीं से गोपियों और उद्धव के बीच तर्क वितर्क पूर्ण संवाद प्रारम्भ होता है। एक गोपी कहती है कि यदि इसमें गूढ़ ब्रह्मज्ञान था तो इसे ऋषियों मुनियों के पास ले जाते। इसे हम प्रेम पुजारिन ग्वालिनों के पास लाने की क्या जरूरत थी। तब उद्धव अपना ज्ञान बघारना प्रारम्भ करते हैं। वह गोपियों से कहते हैं कि तुम्हारा जो मन श्रीकृष्ण की मोहिनी सूरत में पागल हो गया है, उस मन को परब्रह्म की साधना में लगाओ, इससे तुम्हारा कल्याण होगा। उद्धव का सारा ज्ञान धरा रह जाता है, जब एक गोपी कहती हैं कि उनके पास तो एक ही मन था जो श्याम के साथ मथुरा चला गया है। अब उनके पास दस बीस मन तो हैं नहीं, जो इसे तुम्हारे परब्रह्म की आराधना में लगा दें। दूसरी गोपी उद्धव से पूछती है कि ये तुम्हारे परब्रह्म का पता क्या है। क्या उसके नयन भी कान्हा की तरह सुन्दर और कटीले हैं। क्या उसका स्पर्श वैसा ही सुख देता है, जैसा कि कान्हा का। इसके बाद गोपियां उन्हें घेरकर गीत गाती हैं जिसका भाव यह है कि तुम्हारे ज्ञान के समुन्दर का पानी पूरी तरह खारा है और हमारा प्रेम यमुना के पानी की तरह मीठा है। तुम कुछ दिन बृज में रहकर देखो, यहाँ की मिट्टी की सुगन्ध तुम्हें भी प्रेम करना सिखा देगी और तुम असली ज्ञानी बन जाओगे। यह कहते हुए वे गोकुल की माटी उठाकर उद्धव के चेहरे पर मल देती हैं। इसके बाद सभी सखियाँ उद्धव को खींचते हुए यमुनातीरे राधारानी के पास ले जाती हैं। राधा उद्धव से कहती हैं कि हमारा कल्याण ज्ञान और योग से नहीं, बल्कि केवल कृष्ण के संजोग से हो सकता है। ये संजोग भी ऐसा हो कि राधा कृष्ण बन जाए और कृष्ण राधा बन जाए। तब उद्धव राधा को ज्ञान देना प्रारम्भ करते हैं। वह कहते हैं कि आपके प्रेमयोग में केवल दुख और पीड़ा भरी है अन्यथा जोगन का ध्येय पीड़ा नहीं, आनन्द पाना होता है। राधा कहती हैं कि हर व्यक्ति के लिये आनन्द की परिभाषा अलग-अलग है। किसको किसमें आनन्द आता है, यह वही जानता है। हमें तो पीड़ा में भी आनन्द आता है। तब उद्धव तर्क रखते हैं कि प्रेम का प्याला अधरों से दूर होने के बाद तो विरह की पीड़ा ही भोगनी होती है। राधा के पास इसका भी उत्तर है। वह कहती हैं कि विरह दो शरीरों का होता है। वरना दो प्रेमियों की आत्मा तो हर क्षण साथ रहती हैं। राधा अपनी बात का प्रमाण भी देती हैं और सबको ऐसा दिखायी पड़ने लगता है कि श्रीकृष्ण वहाँ आकर राधा के बगल में बैठ गये हों। प्रेम की इस शक्ति को देखकर उद्धव की चकरा जाते हैं। वह अपनी आँखें मलते हुए श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि यह आपकी क्या लीला है। आप मथुरा में हैं या गोकुल में। तब श्रीकृष्ण उद्धव को परम सत्य का ज्ञान देते हैं कि मैं हर उस स्थान पर हूँ जहाँ मेरे भक्त हैं, मुझसे प्रेम करने वाले हैं। जिस प्रकार अन्धकार में पड़ी वस्तु दीपक जलने पर दिखने लगती है। उसी प्रकार प्रेम और भक्ति का दीपक जलते ही मैं दिखने लगता हूँ। इस घटना से उद्धव को असली ज्ञान की प्राप्ति होती है। वह अपने ब्रह्मज्ञान का अहंकार भूलकर दो अमर प्रेमियों के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा। In association with Divo - our YouTube Partner #tilak #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna #shreekrishnamahaepisod"