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वैद्य एक पंडित अति भारी । ठाढ़ौ सब सौं कहत पुकारी ॥1॥ जैसौ रोग होइ है जाकौं । तैसी औषध देहौं ताकौ ॥2॥ यह सुनि एक गयौ तेहि नेरें । ऐसौ बल औषधि को तेरें ॥3॥ मेरें विथा बढ़ी अति भारी । कहि मोसौं कछु सोच विचारी ॥4॥ तेरें रोग कहा है भाई । ताकी औषधि देउँ बताई ॥5॥ पापहि-कर्म अधिक मैं कीनैं । महा दुखी तिहि रोग के लीनैं ॥6॥ विषै विषम विषतन रह्यौ छाई । भव-भुवंग तें लेहु छुडाई ॥7॥ धरि यह देह कछु नहिं कीन्हौं । कृष्न चरण चित कबहुँ न दीन्हौं ॥8॥ विषै स्वाद में रह्यौ लुभाई । झूठे सुख में आयु गंमाई ॥9॥ दुख पायौ जहँ-जहँ चित दीयौ । अब हौं पावत अपनौ कियौ ॥10॥ ऐसे मोह जाल में पर्यौ । यह माया नें सर्बस हर्यौ ॥11॥ जिनकौं हौं समुझत हौं अपने । ते तौ भये रैंनि के सपने ॥12॥ गज तुरंग सेवक सुत नाती । जागि परे तें दिया न बाती ॥13॥ [दोहा] एते पर समुझाय रह्यौ, समुझत नहिं मन मोर । देखि-देखि नाचत मुदित, विषै बादरनि ओर ॥14॥ बूड़त मोह सिंधु की धारा । काढि दया करि करि मोहिं पारा ॥15॥ हौं अति दीन महा दुख पावत। लोग कुटुम्ब कोऊ न मुँह लावत ॥16॥ [चौपाई ] जे जे मुख जोवत हे मेरौ । तिनमें कोऊ न आवत नेरौ ॥17॥ मेरी बात सुहाति न काहू । तातें उपजत है उर-दाहू ॥18॥ [चौपाई ] भयौ बलहीन बुद्धि हू नाठी । तहाँ सहाइ भई कछु लाठी ॥19॥ झूँठे कुटुम्बहि में रंग भीनौं । साँचे प्रभु सौं चित नहिं दीनौं ॥20॥ कहँ लगि कहौं मूढ़ता अपनी । ढ़ाँपि लियौ माया की चपनी ॥21॥ [दोहा ] नैंन गये अरु श्रवन हूँ, और गये मुख दंत । बुद्धि घटी तन गति लटी, तृष्णा कौ नहिं अंत ॥22॥ टूटी खाट न छाँड़ी भावै । सुत के सुत नातीनु खिलावे ॥23॥ यहै रुचै मुख नाम न आवै । जैवो जमके घरही भावै ॥24॥ [दोहा ] मन लाग्यौ अति झूँठ सौं, तजि साँचहि सुख-मूल । छाँड़ि सुधा के सुख फलहिं, जाइ गही विष-शूल ॥25॥ [चौपाई ] ज्यौं-ज्यौं तन अति जीरन भयौ । त्यौं-त्यौं लोभ रोग बढ़ि गयौ ॥26॥ अब तुम जतन करौ चित लाई। तातें कछु इक हियौ सिराई ॥27॥ तबहिं वैद तासौं यौं कही। करौं जतन दुख जैहै सही ॥28॥ इन्द्री निग्रह जो पथ करई । तिय इमली ते मन परिहरई ॥29॥ लोभ खटाई मोह मिठाई । दही क्रोध के निकट न जाई ॥30॥ इतनी कहि जु अनुग्रह कीन्हौं । ताकौ कर आपुन गहि लीन्हौं ॥31॥ नारी देखत सीस डुलायौ । रह्यौ अपथ्य कियौ मन भायौ ॥32॥ रंग-मनोरथ करन विचार्यौ । हरि सौ मीत न कबहुँ सँभार्यौ ॥33॥ [दोहा ] विषै जूप खेलत रह्यौ, कबहुँ न मानी हारि । पियौ जु मदिरा मोह की, सब सुधि दई विसारि ॥34॥ मत्त भयौ अप-वपु न सँभारत । छिन-छिन विषै धूरि सिर डारत ॥35॥ त्रिगुण मोह की लगी तोहिं बाता । तातें उपज्यौ है सनिपाता ॥36॥ तिनमें दोइ अधिक बढ़े तन में । तम-रज बसत निरंतर मन में ॥37॥ तिनको और जतन नहिं कोई। श्री शुकदेव कह्यौ है सोई ॥38॥ करि विश्वास वचन सुनि मेरौ । रोग रहै तौ गुनही तेरौ ॥39॥ तब रोगी बोल्यौ सुनि भाई। तैं तौ मेरी वेदन पाई ॥40॥ अब मैं शरन गही है तेरी । तोहिं लाज सब बात की मेरी ॥41॥ तुम अति गुनी दुनी सब जानै । करि उपाइ जोई मन मानें ॥42॥ [दोहा ] पंडित सोचि-विचारि कै, करनि लग्यौ उपचार । जैसे वेगहिं जाइ तरि, भव दुस्तर संसार ॥43॥ [चौपाई ] जड़ वैराग वृक्ष की लावहु । सौंठ संतोषहि आनि मिलावहु ॥44॥ मिरचि तितीच्छ्न करुना चीता । निस्पृह पीपर मिलवहु मीता ॥45॥ कोमलता सब सौंज गिलोई । मधुबानी सौं लेहु समोई ॥46॥ हरर आमरे शुचि अरु दाया । तातें निर्मल ह्वै है काया ॥47॥ असगँध आसन दृढ़ कै करौ । चिंतामनि चिंता परिहरौ ॥48॥ मुसलि सौंफ अजवाइन जीरा । ग्यान-ध्यान-जप-जोग में धीरा ॥49॥ सांत मृगांग बिना सुख नाहीं । साँच लौंग मिलवहु ता माही ॥50॥ भगवत धर्म धातु सब लीजै । नाम सुधा रस की पुट दीजै ॥51॥ ये औषधि सब आनि मिलावौ । ग्यान ओखली माँहि कुटावौ ॥52॥ हिय हाँड़ी में आनि चढ़ावौ । चेतन वह्नी करि औटावौ ॥53॥ निर्मत्सर चपनी ढँकि लैयै । श्रृद्धा करछी फेरत जैयै ॥54॥ हस्त-क्रिया जबही बनि आवै । जौ कबहूँ सत् संगति पावै ॥55॥ पुनि लै प्रेम चषक में करै । भूमि गरीबी में लै धरै ॥56॥ प्रात कृपा बल जल सौं पीवै । रोग जाइ अरु जुग-जुग जीवै ॥57॥ [ दोहा ] नारदादि प्रह्लाद ध्रुव, कीनौ यहै विचार । या जुग में या रोग कौ, सिद्ध यहै उपचार ॥58॥ अब तरिहैं केतेक तरे, याही औषधि खाइ । ताते बिलम्ब न कीजिये, बेगहि करौ उपाइ ॥59॥ मन के समुझन को कह्यौ, अद्भुत वैद्यक ग्यान । जन मनि के सब रोग,'ध्रुव' सुनतहि करैं पयान ॥60॥ Immerse yourself in the divine vibrations of Bayalees Leela in an intimate unplugged jam session. ------------ premanand maharaj premanand maharaj bhajan premanand maharaj satsang premanand maharaj vrindavan premanand ji maharaj premanand ji maharaj bhajan premanand ji maharaj satsang premanand ji maharaj vrindavan premanand ji maharaj ka satsang premanand ji maharaj ke pravachan premanand ji maharaj radha naam kirtan bhajan marg motivation premanand ji maharaj pravachan ekantik vartalaap bhajan marg ekantik vartalap premanand ji