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Chalkapur Balbheem Ashtak - चाळकापुर बलभीम अष्टक - Shaniwar Ashtak by Shri Manik Prabhu Maharaj - 5 лет назад


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Chalkapur Balbheem Ashtak - चाळकापुर बलभीम अष्टक - Shaniwar Ashtak by Shri Manik Prabhu Maharaj -

Bhajan - Chalkapur Balbheem Ashtak - Shri Manik Prabhu Maharaj Sung by Shri Anandraj Manik Prabhu अर्थ: उत्तर की ओर मुख करके जो खड़ा है, जिसकी नाक सीधी एवं सुंदर है, जिसने अपना बाँया हाथ अपने हृदय पर रखा है और जिसका उठा हुआ दाहिना हाथ अत्यंत शोभायमान है, जो अपनी पूँछ की कुंडली बनाकर छलांग लगाने की मुद्रा में खड़ा है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥1॥ भक्तजनों ने जिसे दही, मधु, दूध और शक्कर से नहलाया है, शुद्ध जल लाकर जिस बलभीम के अंगों को भक्तों ने भलीभाँति धोया है, जिसने सुवर्ण का यज्ञोपवीत एवं जरीदार पीतांबर धारण किया है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥2॥ जिसने मस्तक पर किरीट एवं मुकुट धारण किया है, जिसके दोनों कानों में कुंडलों का तेज चमचमा रहा है, माथे पर जिसने कस्तूरी का तिलक एवं सुगंधित चंदन लगा रखा है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥3॥ हाथों में जिसने कड़े, तोड़े आदि हीरे से जड़े आभूषण पहने हैं, अंगुलियों में जिसने अंगूठियाँ पहनी हैं, सोने की जंजीरों से और नूपुर से जिसके चरण सुशोभित हैं, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥4॥ दो लड़ियों का हार, नौ लड़ियों का हार आदि अनेक लड़ियों से जिसका गला सुशोभित है, जिसने पुतलीमाला, बोरमाला, चंद्रहार आदि आभूषण धारण किए हैं, जिसे नाना प्रकार की पदकयुक्त मालाओं से अपने कंठप्रदेश को छिपाया है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥5॥ भक्तों ने जिसे जूही, बकुल, शेवंती, चंपक, पारिजात, श्वेतकमल, मालती आदि नाना प्रकार के पुष्प अर्पित किए हैं और धूप-दीप समर्पित कर भक्ष्य-भोज्ययुक्त नैवेद्य अर्पित किया है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥6॥ जिसके द्वार पर हाथों में आरती लेकर भक्त खड़े रहते हैं और अत्यंत प्रेम से जिसकी ‘गुणनिधान मारुति’ कहकर आरती उतारते हैं, जिसके सम्मुख नौबत, नगारे, झांझ आदि वाद्यों का तुमुल निनाद होता है, उस बलभीम हनुमान को चालकापुर में मैंने इस प्रकार से देखा॥7॥ प्रति शनिवार को जिसका वाहन बाहर निकलता है, जिसकी मूर्ति को पालखी में बिठालकर भक्तजन जयजयकार की गर्जना करते हैं, उस बलभीम के निजरूप को को माणिकदास ने अपनी आँखों से देखा है॥8॥

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