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🧭 रहस्यमयी घंटी भाग 3: दो रास्ते, एक रहस्य सुरंग के बीचों-बीच तीनों दोस्त खड़े थे। सामने दो रास्ते थे। एक रास्ता अँधेरे में डूबा हुआ था और दूसरे रास्ते पर हल्की नीली रोशनी चमक रही थी। कबीर ने कहा, “रोशनी वाला रास्ता सही लगता है।” मीरा ने सिर हिलाया, “लेकिन हर बार आसान रास्ता सही नहीं होता।” आरव ने डायरी फिर से खोली। आख़िरी पन्ने पर एक पंक्ति लिखी थी— “जहाँ डर हो, वहीं सच छुपा है।” आरव ने गहरी साँस ली, “मुझे लगता है हमें अँधेरे वाला रास्ता चुनना चाहिए।” ईशान ने मुस्कुराकर कहा, “तुम समझदार हो।” तीनों अँधेरे रास्ते पर बढ़ने लगे। कुछ कदम चलते ही दीवारों पर बने चित्र बदलने लगे।अब उन पर बच्चे खेलते हुए नहीं, बल्कि छुपते हुए दिख रहे थे। “ये चित्र डरावने क्यों हो गए?” कबीर बोला। मीरा ने ध्यान से देखा, “ये डरावने नहीं… ये कहानी सुना रहे हैं।” अचानक ज़मीन के नीचे से घरघराहट की आवाज़ आई। सामने एक बड़ा सा दरवाज़ा था, जिस पर घंटी का निशान बना था। दरवाज़े के बीच एक पहेली लिखी थी— “मैं बोलता नहीं, फिर भी सच बताता हूँ। मैं टूट भी जाऊँ, फिर भी आवाज़ लाता हूँ।” कबीर ने तुरंत कहा, “ये तो घंटी है!” जैसे ही उसने उत्तर बोला, दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा। अंदर एक गुप्त कक्ष था। बीच में लकड़ी का एक बड़ा मंच था और ऊपर से स्कूल की घंटी लटकी हुई थी। लेकिन वह रस्सी से नहीं, बल्कि एक पुराने यंत्र से जुड़ी थी। मीरा ने कहा, “तो घंटी खुद-ब-खुद नहीं बजती… इसे कोई चलाता है!” ईशान आगे बढ़ा और बोला, “सालों पहले इस स्कूल को बंद कर दिया गया था। कुछ लोगों ने यहाँ की ज़मीन हड़पने की कोशिश की। मैं और मेरे दोस्त इस सच को उजागर करना चाहते थे।” आरव ने पूछा, “फिर क्या हुआ?” ईशान की आवाज़ भारी हो गई, “एक हादसे में मैं इस सुरंग में फँस गया। तभी से मैं इस रहस्य का हिस्सा बन गया हूँ।” कबीर ने आश्चर्य से कहा, “तो तुम… भूत हो?” ईशान मुस्कुराया, “नहीं। मैं सिर्फ़ याद हूँ… जो सच को ज़िंदा रखती है।” अचानक ऊपर से आवाज़ आई— “कौन है वहाँ?!” तीनों चौंक गए। ऊपर कुछ लोग टॉर्च लेकर घूम रहे थे। मीरा घबरा गई, “अगर उन्होंने हमें पकड़ लिया तो?” ईशान ने घंटी की ओर इशारा किया, “अगर सच बाहर लाना है, तो आख़िरी बार घंटी बजानी होगी।” आरव ने रस्सी पकड़ी, “लेकिन अगर हम पकड़े गए तो?” ईशान ने गंभीर होकर कहा, “सच के लिए थोड़ा साहस चाहिए।” तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। टन्न… टन्न… टन्न… घंटी ज़ोर से बज उठी। ऊपर अफ़रा-तफ़री मच गई। ईशान धीरे-धीरे धुंध में बदलने लगा। “धन्यवाद,” उसकी आवाज़ गूँजी, “अब कहानी तुम्हारे हाथ में है…” 👉 क्या बच्चे सुरक्षित निकल पाएँगे? क्या सच सबके सामने आएगा? ईशान का क्या होगा? यह जानने के लिए पढ़िए — भाग 4: सच की गूँज (अंतिम भाग)