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प्रेत-मुक्ति (Pret-Mukti) – शैलेश मटियानी की मार्मिक और सामाजिक विसंगतियों पर करारी कहानी का विवरण 🎥 प्रेत-मुक्ति (Pret-Mukti) – शैलेश मटियानी की यह तीक्ष्ण और मार्मिक कहानी, जातिगत रूढ़िवादिता और मानवीय करुणा के बीच के गहरे मनोवैज्ञानिक द्वंद्व को चित्रित करती है। यह कहानी ब्राह्मणवाद के कर्मकांडी अभिमान और एक दलित हलिया के प्रति उपजी मानवीय संवेदना के संघर्ष को दर्शाती है। 👤 Narrated by: (आप अपने या काल्पनिक नैरेटर का नाम यहाँ जोड़ सकते हैं) 🖊️ Written by: शैलेश मटियानी (Shailesh Matiyani) ✨ About the Story | कहानी के बारे में कहानी का ताना-बाना एक कर्मकांडी ब्राह्मण पं. केवलानंद पांडे और उसके हलिया किसनराम के इर्द-गिर्द बुना गया है। नदी पार करते समय, केवल पांडे दूर श्मशान से उठते धुएँ को देखते हैं और उनके मन में यह आशंका घर कर जाती है कि उनका शूद्र हलिया किसनराम मर गया है। यह आशंका केवल पांडे के भीतर एक गहरा नैतिक और जातीय द्वंद्व पैदा करती है। एक ओर ब्राह्मणत्व के कठोर संस्कार हैं, जो उन्हें एक 'अछूत' का श्राद्ध या कर्मकांड करने से रोकते हैं, वहीं दूसरी ओर किसनराम के प्रति एक मानवीय ममत्व और उसके परिवार के प्रति जिम्मेदारी की भावना है। केवल पांडे को लगता है कि किसनराम की आत्मा उनके और सूर्य के बीच एक 'प्रेत' बनकर लटकी हुई है। वह इस मानसिक उलझन से ग्रस्त हो जाते हैं कि यदि किसनराम वास्तव में मर गया है, तो उसकी मुक्ति (प्रेत-मुक्ति) कैसे होगी? कहानी का मार्मिक अंत तब होता है, जब केवल पांडे को पता चलता है कि किसनराम मरा नहीं है, बल्कि अपनी सौतेली माँ का अंतिम संस्कार करके लौट रहा है। किसनराम को तो उसके कर्मकांडों से 'मुक्ति' मिल गई, लेकिन केवल पांडे को लगता है कि पश्चाताप का प्रेत और जातीय संकीर्णता का प्रेत उनसे चिपट गया है। शैलेश मटियानी ने इस कहानी के माध्यम से स्पष्ट किया है कि असली 'प्रेत' बाहर नहीं, बल्कि मनुष्य के संकीर्ण विचारों और पश्चाताप की भावना में निवास करता है। मुख्य पात्र: पं. केवलानंद पांडे: जातीय संस्कार और रूढ़िवादी सोच में फँसा ब्राह्मण पुरोहित, जो आंतरिक द्वंद्व और अंततः आत्म-ग्लानि का शिकार होता है। किसनराम: शूद्र हलिया, जो अपने कर्तव्य (माँ का अंतिम संस्कार) को पूरा करके सामाजिक अपेक्षाओं से अप्रभावित होकर जीवन में आगे बढ़ जाता है। यह कहानी हिंदी साहित्य में जातीय विभाजन, मानवीय करुणा और आंतरिक पश्चाताप की जटिलता को दर्शाती एक महत्त्वपूर्ण रचना है। 🔥 Why Listen to This Story? | क्यों सुनें ✔️ शैलेश मटियानी की यथार्थवादी और सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कहानी। ✔️ जातीय भेदभाव और ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता के आंतरिक संघर्ष को समझने के लिए। ✔️ 'प्रेत' की दार्शनिक अवधारणा—जो सामाजिक बंधन और पश्चाताप है—को जानने के लिए। ✔️ UPSC हिंदी साहित्य ऑप्शनल के छात्रों और यथार्थवादी कहानियों में रुचि रखने वालों के लिए सर्वोत्तम। 🔔 और कहानियाँ सुनने के लिए चैनल को Subscribe करें। click to watch more videos • 30 days 30 stories 👍 Like | 💬 Comment | 🔗 Share करें उन दोस्तों के साथ जिन्हें हिंदी कहानियाँ और समकालीन साहित्य पसंद है। #ShaileshMatiyani #PretMukti #शैलेशमटियानी #प्रेतमुक्ति #HindiLiterature #SocialStory #PsychologicalFiction #Casteism #Kahani #UPSC_Hindi #ऑडियोबुक #सामाजिककहानी