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मौर्य स्तूप कला, मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) के दौरान विकसित हुई, जिसमें भव्य धार्मिक संरचनाएं बनाई गईं। इन स्मारकों की बाहरी सतह जली हुई ईंटों से बनी होती थी, जिस पर प्लास्टर और मेधी (स्तूप की एक परत) की परत चढ़ी होती थी, जबकि भीतरी भाग बिना जली हुई ईंटों से बनाया जाता था। सांची स्तूप इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है, और स्तूपों को बुद्ध या अन्य महत्वपूर्ण बौद्ध हस्तियों के अवशेषों को रखने के लिए धार्मिक तीर्थस्थल के रूप में उपयोग किया जाता था। मौर्य स्तूप कला का बौद्ध धर्म से गहरा संबंध है, क्योंकि यह बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का एक शक्तिशाली माध्यम था, विशेषकर सम्राट अशोक के शासनकाल में। स्तूपों का निर्माण बुद्ध के अवशेषों को रखने और भक्ति के केंद्र के रूप में किया जाता था, जिससे वे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गए। बौद्ध धर्म को बढ़ावा: स्तूपों के निर्माण और संरक्षण से बौद्ध धर्म को बढ़ावा मिला, जो मौर्य काल की कला और वास्तुकला की एक प्रमुख विशेषता थी। धार्मिक स्थल: स्तूप धार्मिक अनुष्ठानों, व्याख्यानों और ध्यान के लिए महत्वपूर्ण स्थान के रूप में कार्य करते थे। अवशेषों का संरक्षण: बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, बुद्ध के अवशेषों को स्तूपों में रखा जाता था। मौर्य काल में, सम्राट अशोक ने कई स्तूपों का निर्माण करवाया और उनके अवशेषों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित करवाया। कलात्मक चित्रण: जातक कथाओं और बुद्ध की शिक्षाओं का चित्रण स्तूपों और गुफाओं पर किया गया, जिससे ये शिक्षाएं जनसाधारण तक पहुंच सकीं। धार्मिक प्रथाओं का केंद्र: स्तूप परिक्रमा (प्रदक्षिणा) जैसे भक्ति के महत्वपूर्ण कार्यों के केंद्र थे, जो बौद्धों के लिए एक गहन आध्यात्मिक कार्य है। #vikalptheoption #mauryanempire #chanakyaniti download app video: • Vikalp The Option App Lunch #bpsc download pdf :- https://t.me/vikalptheoption