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मठों का इतिहास हमेशा से विवादित रहा है। सत्ता और धन की लालसा में यहाँ गुरु तक को विष देने के उदाहरण मिलते हैं। संन्यासियों पर व्यभिचार के आरोप भी लगातार लगते रहे हैं। यहाँ तक कि स्वामी करपात्री पर भी प्रज्ञादेवी के यौन शोषण का आरोप लगा था। जो संन्यासी नारी को नर्क का द्वार बताते थे, वे आज पुरुषों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, और परंपरा के नाम पर इन घटनाओं पर पर्दा डाला जा रहा है। आखिर कब तक गुरुभक्ति और परंपरा के नाम पर इन कृत्यों को छिपाया जाएगा? कब तक गुरुनिंदा के भय से इन पर सवाल उठाना पाप माना जाएगा? Time Stamp 3:38 - नारी नर्क का द्वार, तो क्या अब पुरुष स्वर्ग का द्वार? 14:20 - प्रकरण की जांच क्यों नहीं हो रही? 24:01 - शंकराचार्य के मठ में बच्चेबाज़ी के आक्षेप by @sandipanroyy 29:20 - आम हिन्दूओ के लिए चिन्ता का विषय 32:00 - निर्भय आर्य की टिप्पणी 40:38 - IT Cell खडा करनेवाला ब्रह्मचारी 49:00 - निश्चलानन्द सरस्वती को उनके शिष्य ने क्या लिखा पत्र में? 01:09:40 - पुरी शङ्कराचार्य के भक्त का वक्तव्य 1:28:56 - आर्यसमाज को वेद कैसे प्राप्त हुए? छाती ठोककर उत्तर 1:55:52 - कैसे परंपरा प्राप्त छपरी @Ahvaan ने परंपरा का मजाक बना दिया। The history of monasteries has always been controversial. There are instances where even gurus have been poisoned in pursuing power and wealth. Monks have consistently faced allegations of debauchery, and even Swami Karpatri was accused of sexually exploiting Pragya Devi. The same monks who once called women the gateway to hell are now being drawn toward men, and such incidents are being covered up in the name of tradition. How long will these acts be hidden under the guise of guru devotion and tradition? How long will questioning them be considered a sin out of fear of criticizing gurus?