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नागर ब्राह्मणों का सम्पूर्ण परिचय 4 года назад


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नागर ब्राह्मणों का सम्पूर्ण परिचय

नागर ब्राह्मण मुख्यतः गुजरात में निवास करते हैं, परन्तु राजस्थान, मालवा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल तथा कर्नाटक में भी मिलते हैं माना जाता है कि नागर, ब्राह्मणों के सबसे पुराने समूह में से एक है। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि नागरों का मूल आर्य है। वे दक्षिण यूरोप और मध्य एशिया से भारत आए हैं। वे हिंदू कुश के माध्यम से या तो त्रिवेट्टापा या तिब्बत चले गए ; बाद में कश्मीर होते हुए कुरुक्षेत्र के आसपास आकर बस गए। किंवदंती है कि अपने जीवन को बचाने के लिए गुजरात के राजा चमत्कार ने ब्राह्मणों के लिए उपहार स्वरूप एक नगर बसा दिया। कथा के अनुसार, एक दिन राजा शिकार के लिए निकला। एक हिरणी अपने बच्चे को स्तनपान करा रही थी। राजा ने उस हिरणी के बच्चे को मार दिया। हिरण ने राजा को शाप दिया जिसके परिणामस्वरूप राजा के शरीर पर सफ़ेद दाग हो गए तथा वह बीमार पड़ गया। उसी क्षेत्र में ब्राह्मणों का एक छोटा सा गाँव था। वहां के ब्राह्मणों ने जड़ी-बूटियों के द्वारा राजा को पुनः स्वस्थ कर दिया। राजा ने उन ब्राह्मणों का आभार माना और उपहार स्वरूप उन्हें धन व जमीन देने का प्रस्ताव दिया, परन्तु उच्च सिद्धांतों वाले उन ब्राह्मणों ने इसे अस्वीकार कर दिया। बाद में रानी उस गाँव में आकर उन ब्राह्मणों की पत्नियों से धन व जमीन लेने का अनुरोध किया।रानी के बहुत निवेदन करने पर 72 स्त्रियों में से 68 स्त्रियों ने इसे स्वीकार कर लिया। जो ब्राह्मण परिवार राजा द्वारा दिए इस नगर में रहे; नगर में रहने के कारण वे ब्राह्मण नागर कहलाने लगे। कुछ ब्राह्मण नगर से बाहर अपने आश्रमों में ही रहे, वे बाह्यनागर कहलाये। समयानुसार इस नगर के कई नाम बदले। यह मदनपुर, स्कंदपुर, अनंतपुर, आनंदपुर, वृद्धनगर और वडनगर नाम से जाना गया। वर्तमान में यह वड़नगर के रूप में जाना जाता है। प्रसिद्ध विद्वान् वराह मिहिर ने अपनी पुस्तक ‘बृहद संहिता’ में नागरों का उल्लेख किया है कि नागर विक्रम सम्वत के प्रारम्भ में भी मौजूद थे। इससे ज्ञात होता है कि नागर ब्राह्मण विक्रम सम्वत से पहले भी अस्तित्व में थे। नागरों की उत्पत्ति के कुछ अन्य सिद्धांत “स्कंद पुराण” – सबसे पुराना धार्मिक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो कि नागर समुदाय की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करता है। “स्कंद पुराण” में एक विस्तृत और एक स्वतंत्र “नाग-खण्ड” है – जो कि नागर समुदाय के विकास का स्पष्ट रूप से वर्णन करता है। 1. “क्रथा” नामक एक ब्राह्मण था – जो देवरत का पुत्र था। उसका स्वभाव बड़े होते-होते क्रूर हो गया। एक बार वह जंगल में जाने पर ‘नाग-तीर्थ’ नामक स्थान पर पहुंचा जहां नाग (सर्प) एक साथ रहते थे। उस समय नाग राजा के राजकुमार रुद्रमल अपनी माँ के साथ नगर में टहलने के लिए आये थे। क्रथा का रुद्रमल के साथ आमना-सामना हुआ तो क्रथा ने रुद्रमल को एक साधारण नाग समझकर मार डाला। रुद्रमल ने क्रथा से बहुत विनती की ‘मैं निर्दोष हूँ फिर भी आप मुझे क्यों मार रहे हैं।’ रुद्रमल की इंसानी आवाज सुनकर क्रथा चकित हो गया और डरकर वहां से भाग गया। रुद्रमल की मां यह देखकर बेहोश हो गई और जब वह होश में आई तो बहुत रोयी। वह जल्द ही अपने पति के पास गई और पूरी घटना सुनाई। पूरे नाग समुदाय वहां इकट्ठे हुए और रुद्रमल के शरीर का अंतिम संस्कार किया। उसके पिता ने यह शपथ की कि जब तक वह हत्यारे के पूरे परिवार को नष्ट न कर दे तब तक वह अपने दिवंगत पुत्र को अंतिम श्रद्धांजलि नहीं देगा। उन्होंने अपने पूरे समुदाय के सदस्यों को अपराधी का पता लगाने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि श्री हाटकेश्वर तीर्थ जाकर क्रथा के सभी परिवार के सदस्यों को मार डालें। इस प्रकार, सभी नाग नागरिक चमत्कारपुर गए, और क्रथा के परिवार और रिश्तेदारों के घरों पर हमला करके आतंक फैलाया। इन सभी आतंकियों से खुद को बचाने के लिए सभी ब्राह्मण परिवार वन में चले गए। नाग राजा ने तब अपने दिवंगत पुत्र को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की। ब्राह्मण जंगलों में कब तक रह पाते ? उन सभी ब्राह्मणों ने त्रिजट नाम के एक बड़े संत को आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें पूरी कहानी सुनाई। त्रिजट को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था। ब्राह्मणों को ऐसी दीन दशा में देखकर त्रिजट ने भगवान शिव की पूजा की और ब्राह्मणों की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव प्रसन्न हुए। भगवान शिव ने कहा कि वह नाग समुदाय को नष्ट नहीं कर सकते। हालांकि, वे उन में निहित जहर को समाप्त कर सकते हैं। इसके लिए, भगवान शिव ने एक मंत्र दिया। जब इन ब्राह्मणों “ना-गर” – (विष नहीं) ने मंत्रोच्चारण के साथ अपने घरों में प्रवेश किया तब तक वे काफी वृद्ध हो चुके थे। इसलिए, शहर को “वृद्धनगर” के रूप में जाना जाने लगा। जो बाद में बदलकर “वडनगर” हो गया। 2. भगवान शिव की पूजा में “नाक” के उच्चतम स्थान पर खड़ा होने वाला समुदाय को “नाकर” के रूप में जाना जाता था – जो “नागर” के रूप में लोकप्रिय हुआ। 3. यह भी एक धारणा है कि भारत के पश्चिमी भाग में शकों और यवनों के आक्रमण के बाद सौराष्ट्र में कई छोटे राज्य स्थापित किए गए थे। विदेशियों के आक्रमण से खुद को बचाने के लिए ब्राह्मणों ने वनों के एकान्त स्थानों को छोड़ दिया और राज्य के राजाओं के आश्रय के तहत नगरों में रहना शुरू कर दिया था। और इस कारण उन ब्राह्मणों को नागर के नाम से जाना जाने लगा। 5. एक धारणा नागरों के मूलतः ग्रीक होने की है। जब सिकंदर ने भारत पर हमला किया, वह कश्मीर के माध्यम से अपनी सेना के साथ आए थे। लौटने पर, कई यूनानी सैनिक कश्मीर में बसे थे। वे कश्मीर के पंडित समुदाय के निकट संपर्क में आए और जिसके परिणामस्वरूप नागरों का जन्म हुआ। बाद में वे देश के अन्य हिस्सों में चले गए। नागरों और यूनानियों को आज भी बुद्धिमता व शारीरिक बनावट के तौर पर समान माना जाता है।

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