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हिड़मा मार दिया गया, उसकी पत्नी राजे को मार दिया गया । जिस गांव में हिड़मा का जन्म हुआ, उस गांव में बीते 30 सालों से अधिक समय तक कोई भी बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता था और न ही गांव का कोई ग्रामीण माओवादी अनुमति के बिना गांव से बाहर कदम रख सकता था । आज हिड़मा और उसकी पत्नी के शव उस गांव में पहुंचा दिए गए और उनकी शवयात्रा में हिड़मा की बूढ़ी मां, हिड़मा और अपनी बहू के शवों के बहुत पीछे तेज तेज कदमों से चली जा रही है ! कल्पना कीजियेगा, कि लोकतंत्र, माओवाद और संविधान आपस में बात कर रहे हों और हिड़मा से सवाल पूछे जा रहे हों ! हमने कोशिश की है कि माओवादी विचारधारा, लोकतंत्र और संविधान यदि आपस में बातें कर सकेंगे तो उनकी बातचीत कैसी हो सकती होगी ? नोट: हमने भीड़ की अधिकता में चिता को एक ही दिशा से देखकर ये समझा था कि एक चिता के पीछे दूसरी चिता भी बनाई गई होगी, लेकिन एक ही चिता पर हिड़मा और राजे का दाह संस्कार पूरा किया गया, यह मानवीय भूल है । हिड़मा के शव के पीछे उसकी बूढ़ी मां, माओवाद, लोकतंत्र और संविधान ! YUKESH CHANDRAKAR