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देवभूमि उत्तराखंड की महान यात्रा - माँ नंदा कुंड | उत्तराखंड का दिव्य फुल ब्रह्मकमल ही ब्रह्मकमल” Hey there, I'm Arjun Khalpatia, a multifaceted YouTuber and content creator. Join me on my channel where I explore the richness of rural and village life and culture. As a vlogger, explorer, and tracker, I bring you on adventures to uncover the beauty and authenticity of these communities. Additionally, I'm a singer, musician, songwriter, and composer, infusing my content with original music and compositions. Subscribe to experience the magic of rural landscapes, vibrant traditions, and heartfelt melodies." You can also join my music channel : ******************************************************** Arjun Khalptia Vlogs से जुड़े रहने के लिए : YouTube : / @arjunkhalptiavlogs Instagram : https://www.instagram.com/arjun_khalp... Facebook : https://www.facebook.com/share/1AiuGw... ******************************************************** For Commercials/ Advertising/ Brand Promotion at Arjun Khalptia vlogs Contact : 8006823354, 9456171728 Whatsapp: 8006823354 Copyright Notice: This video is my original work and is protected under copyright law. Reusing, reposting, or extracting any clips or frames without permission is strictly prohibited. #arjunkhalptiavlogs #hindidocumentary #news #uttarakhand उत्तराखंड की माँ नंदा देवी राजजात यात्रा (उपजात यात्रा) एशिया की सबसे लंबी और प्रतिष्ठित धार्मिक पदयात्राओं में से एक है। यह यात्रा करीब हर 12 साल बाद आयोजित होती है और इसमें धार्मिक आस्था, लोक-संस्कृति और हिमालय की पवित्रता का अद्वितीय मिश्रण देखने को मिलता है। नीचे इसके बारे में विस्तार से जानें - यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व • मां नंदा देवी को गोड़वाल और कुमाऊं के राजवंशों की इष्टदेवी के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें “राजराजेश्वरी” के नाम से जाना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार वे पार्वती की बहन या स्वयं पार्वती का रूप हैं । • प्रचलित कथा के अनुसार, मां नंदा देवी अपने मायके में आईं लेकिन 12 वर्ष तक ससुराल नहीं लौट पाईं, और जब वापसी हुई तो यह खुशी का पर्व बन गया—इसी से “राजजात यात्रा” की परंपरा शुरू हुई । ⸻ यात्रा का मार्ग और झांकियाँ • यात्रा स्थितीय रूप से चमोली जिले के नौटी गाँव से शुरू होती है, जो माँ नंदा का मायका माना जाता है, और होमकुंड तक जाती है, जो उनकी ससुराल मानी जाती है । • यह लगभग 280 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा होती है, जो करीब 19–22 दिनों में पूरी की जाती है । • यात्रा के मार्ग में प्रमुख पड़ाव: • ईड़ाबधाणी, • नौटी (प्रारंभिक पूजा और जागरण), • कांसुवा, सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, नंदकेशरी, फल्दियागांव, मुंदोली, वाण, गैरोलीपातल, वेदनी, पातरनचौंणियां, शिला समुद्र, चंदनियाघाट, सुतोल, घाट, और बाद में वापसी नौटी तक होती है । ⸻ यात्रा के विशिष्ट तत्व • इस पदयात्रा का नेतृत्व एक विशेष ‘चौसींग्या खाडू’ यानी चार-सींग वाला भेड़ (मेंढा) करता है, जिसे देवी का सहायक माना जाता है। यह ज्यादातर यात्रा से पहले ही जन्म लेता है और अपनी पीठ पर श्रद्धालुओं की भेंट रखकर आगे बढ़ता है—होमकुंड पहुँचकर अकेला हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाता है । • यात्रा के दौरान रिंगाल की छंतोलियाँ, लोक वाद्य यंत्र, पारंपरिक गीत‑नृत्य और स्थानीय खान-पान शामिल होता है—जो पूरे आयोजन को एक जीवंत लोक पर्व में बदल देता है । • प्राकृतिक चुनौती: इस यात्रा का मार्ग 3,200 फ़ुट से शुरू होकर लगभग 17,500 फ़ुट की ऊँचाई तक पहुँचता है, जहाँ हिमालय की ऊँची वादियाँ, बर्फ़ीले मार्ग, ग्लेशियर और दुर्गम भूभाग शामिल हैं । ⸻ आयोजन की आवृत्ति और शासन की तैयारी • यह यात्रा लगभग 12 वर्षों में एक बार आयोजित होती है। अब अगली बार यह यात्रा 2026 में होने वाली है । • उत्तराखंड सरकार द्वारा यात्रा को लोक-उत्सव की तरह मनाने, देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करने और बेहतर व्यवस्थाओं के लिए निर्देश दिए गए हैं। इस दौड़ में सुरक्षा, स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी संरक्षण, आवागमन और पर्यावरण प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जा रहा है । • यात्रा की तैयारियों में सिंहावलोकन, हेल्पलाइन, आपदा प्रबंधन, पारंपरिक कलाकारों का समर्थन आदि शामिल हैं ताकि श्रद्धालुओं को सुविधाजनक, सुरक्षित और आध्यात्मिक अनुभव हो ।