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मां पार्वती ने भगवान शिव को कराया अपने दस महाविद्या स्वरूप का दर्शन देवी दस महाविद्या की कथा बहुत समय पहले की बात है, जब सृष्टि में शक्ति और साधना का महत्व सर्वोपरि था। भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा, "प्रभु, मैं आपके साथ दिव्य लीलाओं का अनुभव करना चाहती हूँ और अपनी शक्ति का विस्तार करना चाहती हूँ।" भगवान शिव मुस्कुराए और बोले, "हे देवी! तुम्हारी शक्ति अपरंपार है। परंतु यदि तुम अपने दिव्य स्वरूपों को प्रकट करना चाहती हो, तो यह दस महाविद्याओं के रूप में प्रकट होगा।" माता पार्वती ने अपनी योगशक्ति से अपने भीतर की ऊर्जा को जाग्रत किया और दस भिन्न-भिन्न स्वरूपों में प्रकट हुईं। यही दस महाविद्याएँ कहलाईं, जिनका हर एक रूप विशेष शक्ति और उद्देश्य से परिपूर्ण था। दस महाविद्याओं की उत्पत्ति जब भगवान शिव माता पार्वती को अपने साथ कैलाश पर ही रहने के लिए कह रहे थे, तब माता ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए दस भयंकर एवं अद्भुत रूप धारण किए। इन रूपों को देखकर भगवान शिव भी विस्मित हो गए। इन दस महाविद्याओं के नाम इस प्रकार हैं: 1. काली – यह माता का सबसे उग्र स्वरूप है, जो अंधकार और अज्ञान को नष्ट कर ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। 2. तारा – यह माता का करुणामयी स्वरूप है, जो साधकों को ज्ञान प्रदान करती हैं। 3. त्रिपुरसुंदरी (ललिता देवी) – यह सौंदर्य और कृपा की देवी हैं, जो प्रेम और भक्ति का संचार करती हैं। 4. भुवनेश्वरी – यह ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करती हैं। 5. छिन्नमस्ता – यह आत्मबलिदान और सर्वोच्च ऊर्जा का प्रतीक स्वरूप हैं। 6. भैरवी – यह उग्र तांत्रिक रूप है, जो भय और बाधाओं को नष्ट करती हैं। 7. धूमावती – यह विधवा स्वरूप हैं, जो निर्भयता और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती हैं। 8. बगलामुखी – यह शत्रुओं को नष्ट करने और वाक् शक्ति को नियंत्रित करने वाली देवी हैं। 9. मातंगी – यह विद्या, संगीत और कला की देवी हैं। 10. कमला – यह लक्ष्मी का स्वरूप हैं, जो ऐश्वर्य और समृद्धि प्रदान करती हैं। दस महाविद्याओं की महिमा माता पार्वती के इन स्वरूपों का उद्देश्य केवल शक्ति प्रदर्शन ही नहीं था, बल्कि संसार को यह दिखाना था कि नारी शक्ति में समस्त ब्रह्मांड को संवारने और संहार करने की क्षमता है। इन महाविद्याओं की उपासना से साधक को सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और वह अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। जब इन महाविद्याओं की महिमा संसार में फैली, तो देव, ऋषि-मुनि और तांत्रिकों ने इनकी उपासना प्रारंभ की। महाविद्याओं की कृपा से कई साधकों ने अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त कीं और वे सिद्ध पुरुष बन गए। दस महाविद्याओं की साधना प्रत्येक महाविद्या की साधना विशेष तांत्रिक विधियों से की जाती है। जो व्यक्ति अपने जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति चाहता है, वह अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी महाविद्या की साधना कर सकता है। • जो व्यक्ति भय और बाधाओं से मुक्ति चाहता है, उसे काली और भैरवी की उपासना करनी चाहिए। • जो व्यक्ति विद्या और ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, उसे मातंगी और तारा की साधना करनी चाहिए। • जो व्यक्ति धन और ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है, उसे कमला देवी की उपासना करनी चाहिए। • जो व्यक्ति शत्रु नाश और वाक् सिद्धि चाहता है, उसे बगलामुखी की साधना करनी चाहिए। निष्कर्ष देवी दस महाविद्याएँ संपूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतिरूप हैं। इनकी साधना से व्यक्ति अपने जीवन में आत्मशक्ति, ऐश्वर्य, ज्ञान और सिद्धि प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक महाविद्या का अपना विशेष महत्व है और जो व्यक्ति निष्ठा और भक्ति से इनकी साधना करता है, वह अपने जीवन को सफल बना सकता है। • ललिता त्रिपुरा सुंदरी: दिव्य कथा और म... • क्या है कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य?... • पंचसती की कथाएँIIये पांच स्त्री कौन ... • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से कई तरह...