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Datta Bavni 52 times | દત્ત બાવની With Gujarati Lyrics भगवान दत्तात्रेय के भक्त दत्तबावनी के पाठ करते है। पूंजय रंग अवधूत महाराज को गुरु मानाने वाले उनकी यह रचना का नित्य भजन करते है। दत्त बावनी (Dutt Bavani ) के पावन भजन से तन मन को शांति की अनुभूति होती है। पुंजय बापजी एवं दत्तात्रेय भगवान पे सम्पूर्ण श्रद्धा से नित्य दत्तबावनी के भजन करने से सभी मनोकामना की पूर्ति होती है। Timecodes 0:00 - sankhnad and 1st Datta Bavni 3:02 - 2nd Datta Bavni 5:56 - 3rd Datta Bavani 8:51 - 4th Datt Bavni 11:46 - 5th Datt Bavni 14:41 - 6 to 10 Dutta Bavni 29:15 - 11 to 20 Dutta Bavani 58:24 - 21 to 30 Dutt Bavni 1:27:34 - 31 to 40 દત્ત બાવની 1:56:42 - 41 to 52 દત્ત બાવની Dutt Bavani in Hindi जय योगेश्वर दत्त दयाल तू एक जग महाप्रतिपाल। अत्रि अनसूया करि निमित, प्रगट्यो जग कारण निश्चित।। भ्रह्मा हरिहर नो अवतार, शरणा गत नो तारण हार। अंतर्यामी सत चित सुख, बहार सद्गुरु ध्रिभुज सुमुख।। जोली अन्नपूर्णा करमाय, शांति कमंडर कर शोहाय। क्याय चतुर्भुज षड्भुज शाद, अनंत बाहु तू निर्धार।। आव्यो शरणे बाल अजाण, उठ दिगंबर चाल्या प्राण। सुणी अर्जुन केरो साद, रिज्यो पूर्वे तू साक्षात्।। दीधी रिद्धि सिद्धि अपार, अन्ते मुक्ति महापद सार। कीधो आजे केम विलम्ब, तुज विन मुजने ना आलम्ब।। विष्णु शर्म द्रीज तार्यो एम् जम्यो श्राद्ध माँ देखि प्रेम। जम्म दैत्य थी त्रास्या देव, कीधी महेर ते त्या ततखेव। विस्तारी माया दितिसुत इन्द्र करें हाणाव्यो तूर्त। ऐवी लीला कई कई शर्व कीधी वर्णवे को ते सर्वे।। दोड्यो आयु शुतने काम कीधो ऐने ते निष्काम। बोडया यदु ने परशुराम शाध्य देव प्रहलाद अकाम। ऐवि तारी कृपा अगाध केम सुने ना मारो साद। दौड़ अंत ना देख अनंत, माँ कर अध्वच शिशु नो अंत।। जोई डिजस्त्री केरो स्नेह थयो पुत्र तू नि:संदेह। स्मृतगामी कलितार कृपाल, तार्यो धोबी चेक गमार।। पेट पीड़ थी विप्र, भ्रह्माण शेठ उगार्यो श्रीप। करे केम ना मारी वार जो आणि गम एकज वार।। शुष्क काष्ठ ने आन्या पत्र थयो केम उदासीन अत्र। ज़ंज़र वंध्या केरा स्वप्न कर्या सफल ते सूत ना कृत्स्न।। करि दूर भ्रह्माण ना कोढ़ कीधा पुराण तेने कोढ़। वंध्या भेस दुजवी देव हर्युं दारिद्र ते ततखेव।। झालर खाई रिज्यो एम दीधो सुवर्णघट स प्रेम।। भ्रह्माण स्त्री नो मृत भरथार कीधो सजीवन ते निर्धार। पिचास पीड़ा कीधी दूर विप्र पुत्र उठादियो सुर। हरी विप्रमद अत्यंज हाथ रक्ष्यो भक्त तिविक्रम तात।। निमेष मात्रे तन्तुक एक पहोचादियो श्री शैले देख। एकी साथै आठ स्वरुप धरीदेव बहुरुप अरूप।। सन्तोस्या निज भक्त सुजात आपि परचाओ साक्षात्। यवनराज नी ताणी पीड़ जात पातनी तने ना चीड़।। रामकृष्ण रुपे ते एम् कीधी लीलाओ कई तेम। तार्या पथ्थर गणिका व्याध पशु पंखी पन तुजने साध।। अधम ओधारण तारु नाम गाता सरे ऐना सा सा काम। आधी व्याधि उपाधि सर्वे तणे स्मरण मात्र थी सर्वे।। मुठ चोट ना लागे जाण पामे नर स्मरणे निर्माण। डाकण साकण भेसा सुर भुत पिचशो जंड असुर।। नासे मुठी दइने तूर्त दत्त धुन संभरता मूर्त। करी धुप गाये जे एम् दत्तबावनी आशा प्रेम।। सुधरे तेना बन्ने लोक रहने तेने क्याय शोक। दासी सिद्धि तेनी थाय दुःख दारिद्र तेना जाय।। बावन गुरुवार नित्य नियम करे पाठ बावन स प्रेम। यथा अवकाशे नित्य नियम तेने कड़ी ना डंडे यम।। अनेक रुपे एज अभंग भजता नड़े ना माया रंग। सहस्त्र नामे नामी एक दत्त दिगंबर असंग छैक।। वंदु तुजने वारं वार वेद श्वास तारा निर्धार। थाके वर्णव ता ज्या शेष कोण रांक हु बहु कृत वेश।। अनुभव तृप्ति नो उदगार सुणी हसे ते खासे मार। तपसी तत्वमसि ए देव बोलो जय जय श्री गुरुदेव।। अवधूत चिंतन गुरु देवदत्त – दत्त बावनी (Dutt Bavani) की रचना 4/2/1935 में हुई थी| पुंजय रंग अवधूत महाराज ने दत्तबावनी की रचना की थी। दत्तबावनी के रचना के समय पूंजय अवधूत महाराज गुजरात के मेहसाणा जिले में थे। मेहसाणा जिला, कलोल तालुका के सैज गांव में बापजी अपने भक्तो के साथ भजन कीर्तन कर रहे थे। सैज गांव के बहार सिद्धनाथ महादेव का मंदिर है। मंदिर की धर्मशाला में दत्त बावनी की रचना हुई थी। कहा जाता है की लक्ष्मी बेन त्रिपाठी नामकी स्त्री भुत पिचास एवं रोगो रे पीड़ित थी। वो बापजी के पास निवारण हेतु आयी थी। बापजी ने इस वक्त दत्त बावनी की रचना की थी। और वह स्त्री को दत्तबावनी के पाठ करने को कहा। दत्तबावनी (Dutt Bavani) भगवान दत्तात्रेय की लीलाओ वर्णन करने वाला भजन है। इसमें बावन पंक्ति है। पूंजय रंग अवधूत महाराज को मानाने वाले दत्त संप्रदाय की संख्या बड़ी है। और यह संख्या दिन बदिन बढ़ती जाती है। दत्त संप्रदाय में दत्त बावनी को एटम बम कहा जाता है। Dutt Bavani दत्त बावनी के रचयिता श्री रंग अवधूत महाराज दत्त बावनी के नियम पूंजय बापजी द्वारा निर्मित दत्तबावनी स्त्री, पुरुष, बच्चे कोई भी कर सकते है। दत्त बावनी के कोई खास नियम नहीं है।' यथा अवकशे नित्य नियम' हम हमारे समय में कर सकते है। नित्य नियम के साथ किया जाये तो अच्छा है। 52 गुरुवार तक 52 पाठ का विशेष महत्व है। भक्त जान ये व्रत करते है। हमारा ध्यान भगवान दत्तात्रय में होना चाहिए। दत्त बावनी से क्या लाभ होते है ? रंग अवधूत महाराज निर्मित दत्तबावनी बापजी का दिव्य प्रसाद है। जिसे रोग पठन करके मनुष्य धन्य होता है। दत्त बावनी से अनिष्ट शक्तिओ का नाश होता है। कितनी भी पुराणी बीमारी दत्तबावनी के पाठ से दूर होती है। मनुष्य की मानशिक एवं शारारिक स्थिति बेहतर होती है। अचानक कोई संकट या दुःख दूर होते है। दत्त बावनी का पठन भक्तो को संतोष प्रदान करती है। मनुष्य की कोई भी उपाधि नष्ट होती है। दत्तबावनी (Dutt Bavani) के नित्य पठन से पृथ्वी लोक और परलोक दोनों जगह सुख प्राप्त करता है। बावन गुरुवार नित्य पाठ करने से यमराज भी दंड नहीं करते। और मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। Datta Bavni 52 times | દત્ત બાવની With Gujarati Lyrics