У нас вы можете посмотреть бесплатно राम नाम इतना महान है कि मृत्यु भी इसके आगे सिर झुकाती है। Ram Naam ki Mahima Ram Ram ki Shakti или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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भक्तजनो, जब साधक निरंतर “राम” नाम में लीन रहता है, तब वह केवल उच्चारण नहीं करता — वह अपने भीतर के शुद्ध आत्मा को जागृत करता है। यह नाम जैसे-जैसे भीतर उतरता है, वैसे-वैसे मन की परतें हटती जाती हैं। विचार, भाव, कर्म — सब रूपांतरित हो जाते हैं। जो पहले क्रोध था, वही करुणा बन जाता है। जो पहले मोह था, वही प्रेम बन जाता है। नाम जपने वाला साधक धीरे-धीरे संसार में रहते हुए भी संसार से ऊपर उठ जाता है। राम नाम और श्रीराम में कोई अंतर नहीं। जिस प्रकार सूर्य और उसकी किरणें अलग नहीं, वैसे ही नाम और नामी एक ही हैं। नाम रूप दून्हु परमारथ एक।” राम स्वयं नाम में बसते हैं। जब भक्त नाम का उच्चारण करता है, तो भगवान उसी क्षण हृदय में प्रकट हो जाते हैं। इसलिए कहा गया — नाम का जप करने वाला कभी अकेला नहीं होता; उसकी जिह्वा पर “राम” है, और हृदय में “राम” का निवास। राम नाम केवल भाव नहीं, एक जीवंत ऊर्जा है। यह वही शक्ति है जिसने पत्थर को तैराया, हनुमान को पर्वत उखाड़ने की सामर्थ्य दी, और विभीषण को लंका में धर्म स्थापित करने का बल दिया। नाम जपते-जपते साधक में भी वही दिव्य शक्ति प्रकट होती है। भय, रोग, असफलता, बाधाएँ — सब इस नाम के स्पर्श से मिटने लगती हैं। राम नाम अपने आप में जीवन की संजीवनी है। कई लोग कहते हैं — ध्यान कठिन है, पर नाम सरल है। पर जब नाम गहरा हो जाता है, तो वही ध्यान बन जाता है। राम नाम जपते-जपते जब मन शब्द से परे चला जाता है, तो साधक नाम में नहीं, नाम के अर्थ में डूब जाता है। यह वह अवस्था है जहाँ “मैं” और “राम” का भेद मिट जाता है। सांस में नाम, नाम में सांस — यही सहज समाधि है। यह वह क्षण है जब भक्त को अहसास होता है — “राम मेरे बाहर नहीं, मेरे भीतर ही हैं।”सच्चा नाम-जप वहीं पूर्ण होता है जब वह सेवा में बदल जाए। राम नाम से प्रेरित व्यक्ति दूसरों के दुःख में अपना सुख खोजता है। वह दूसरों की सहायता करना ही पूजा मानता है। सेवा में ही प्रभु मिलें, नाम में वही तृप्ति।” राम नाम हमें केवल भक्त नहीं, दयालु मनुष्य बनाता है। जो नाम जपता है, वह संसार से भागता नहीं, बल्कि संसार को प्रभु का रूप समझकर सेवा करता है। जब नाम हृदय की धड़कन में बस जाए, जब बिना बोले भी मन में “राम” गूंजे, तब समझिए कि साधना सफल हुई। यह अवस्था शब्दों से परे है। भक्त तब हर व्यक्ति में राम देखता है — हर चेहरे पर उनका तेज, हर आहट में उनका नाम। यही “नाम का साक्षात्कार” है। यहाँ भक्त और भगवान का भेद समाप्त हो जाता है, और केवल प्रेम ही रह जाता है। आज संसार में युद्ध है, द्वेष है, तनाव है। पर यदि घर-घर में, हृदय-हृदय में “राम” नाम का दीप जले, तो यह पृथ्वी स्वयं स्वर्ग बन जाए। राम नाम केवल व्यक्तिगत मुक्ति का मार्ग नहीं — यह सामाजिक शांति का संकल्प है। जो मनुष्य नाम जपता है, वह किसी का अहित नहीं सोच सकता। राम नाम से हृदय में जो करुणा जागती है, वही करुणा विश्व शांति का मूल बनती है। राम नाम इतना महान है कि मृत्यु भी इसके आगे सिर झुकाती है। जो व्यक्ति अंतिम समय “राम” कह देता है, वह शरीर त्यागते ही मुक्त हो जाता है। क्योंकि नाम स्वयं अमृत है। “राम नाम अमर होई जाई।” यह नाम आत्मा को अमरत्व का अनुभव कराता है। इसलिए संतों ने कहा — “जीवन में राम नाम रखो, ताकि मृत्यु में भय न रहे। जिसके जीवन में राम नाम बस गया, उसके मुख पर अद्भुत तेज प्रकट होता है। वह जहाँ जाता है, वहाँ शांति फैल जाती है। उसका वचन औषध बन जाता है, उसकी दृष्टि करुणा बन जाती है। राम नाम उसका आभूषण है, उसका कवच है। ऐसे व्यक्ति को संसार बदल नहीं सकता, क्योंकि उसका जीवन स्वयं संसार को बदलने लगता हआज के युग में मनुष्य मशीन बन गया है — दौड़, प्रतिस्पर्धा, चिंता। पर इस तनाव में भी एक क्षण अगर “राम” कहा जाए, तो मन में ठहराव आ जाता है। राम नाम हमें वर्तमान में लाता है, जहाँ कोई भय नहीं, केवल शांति है। यह नाम हमें याद दिलाता है — “मैं केवल शरीर नहीं, मैं वह चेतना हूँ जिसमें राम वास करते हैं।”नाम का सच्चा फल तभी मिलता है जब वह गुरु से प्राप्त हो। गुरु वह दीपक है जो साधक के भीतर नाम की ज्योति प्रज्वलित करता है। गुरु से मिला नाम केवल शब्द नहीं रहता — वह शक्ति बन जाता है। इसलिए कहा गया — “गुरु मुख नाम जपो मन प्यारे।” गुरु के चरणों में समर्पण से ही नाम का अमृत स्वाद आता है। गुरु नाम देता है, और भगवान प्रकट हो जाते हहे सा #bhajan #धको, राम नाम वह धारा है जो कभी रुकती नहीं। जिसने इसे जीवन का संगीत बना लिया, वह न दिन देखता है न रात — बस हर क्षण में “राम” अनुभव करता है। राम नाम जपना केवल साधना नहीं, यह जीवन जीने की कला है। हर सांस, हर कार्य, हर विचार में “राम” हो — तो जीवन स्वयं मंदिर बन जाता है। अंत में बस इतना ही — नाम लेहु मन सदा सनेही, राम बिना सब जग अंध देही।” जय श्रीराम!