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यहाँ चरक संहिता के निदान स्थान, अध्याय 1 पर विस्तृत नोट्स दिए गए हैं, जो ब्रह्मानंद त्रिपाठी की टीका पर आधारित हैं: निदान स्थान की भूमिका *निदान स्थान* रोगों के निदान से संबंधित है। इसमें रोग की प्रकृति, कारण और रोग की प्रगति को समझने के सिद्धांत और विधियाँ शामिल हैं। अध्याय 1: ज्वर निदान (बुखार का निदान) *ज्वर (बुखार)* आयुर्वेद में एक प्रमुख रोग माना गया है, क्योंकि यह पूरे शरीर तंत्र को प्रभावित कर सकता है। यह अध्याय बुखार के कारणों, प्रकार, लक्षणों और निदान विधियों का वर्णन करता है। कारण (निदान) *निदान (कारक तत्व):* आहारज (आहार संबंधी कारण): विरुद्ध आहार का सेवन, अत्यधिक ठंडा या चिकना भोजन आदि। विहारज (जीवनशैली संबंधी कारण): ठंडी हवा में रहना, अत्यधिक शारीरिक परिश्रम आदि। मानसिक (मनोवैज्ञानिक कारण): क्रोध, शोक, तनाव। रोग की उत्पत्ति (संप्राप्ति) तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन के कारण ज्वर की उत्पत्ति होती है। अध्याय ज्वर के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन करता है: *संचय* (संचयन) *प्रकोप* (वृद्धि) *प्रसार* (प्रसार) *स्थानसंस्रय* (स्थानीयकरण) *व्यक्ति* (अभिव्यक्ति) *भेद* (जटिलताएँ) ज्वर के प्रकार (ज्वर भेद) *दोष के आधार पर:* वातज ज्वर पित्तज ज्वर कफज ज्वर सन्निपातज ज्वर (मिश्रित दोष) *अवधि के आधार पर:* संतत ज्वर (निरंतर बुखार) सतत ज्वर (रुक-रुक कर आने वाला बुखार) अन्यद्युश्क ज्वर (प्रत्येक दूसरे दिन आने वाला बुखार) त्रितीयक ज्वर (प्रत्येक तीसरे दिन आने वाला बुखार) चतुर्थक ज्वर (प्रत्येक चौथे दिन आने वाला बुखार) यम ज्वर (प्रत्येक 12 घंटे में दो बार आने वाला बुखार) *गंभीरता के आधार पर:* मृदु ज्वर (हल्का बुखार) मध्यम ज्वर (मध्यम बुखार) तीव्र ज्वर (गंभीर बुखार) लक्षण (लक्षण) सभी प्रकार के बुखार के सामान्य लक्षण: कंपकंपी, प्यास, थकान, भूख न लगना, शरीर में दर्द, पसीना आना और थकावट। दोषों के आधार पर विशिष्ट लक्षण: *वातज ज्वर:* मुंह का सूखना, खुरदुरी त्वचा, शरीर में दर्द, बेचैनी। *पित्तज ज्वर:* जलन, अत्यधिक प्यास, मुंह का कड़वापन, पीला रंग। *कफज ज्वर:* भारीपन, सुस्ती, अत्यधिक नींद, त्वचा का पीला रंग, प्यास न लगना। रोग की स्थिति (साध्य-असाध्यता) रोग की प्रकृति, अवधि, उपचार की प्रतिक्रिया और जटिलताओं की उपस्थिति के आधार पर रोग की स्थिति का निर्धारण होता है। अनुकूल रोगस्थिति हल्के बुखार और अच्छे उपचार परिणामों में देखी जाती है। प्रतिकूल रोगस्थिति लंबे समय से चल रहे बुखार, गंभीर दोष असंतुलन और जटिलताओं की उपस्थिति में पाई जाती है। निदान (रोग परीक्षा) *दशविध परीक्षा (दस प्रकार की परीक्षा):* *प्रकृति (शरीर की प्रकृति)* *विकृति (रोग की स्थिति)* *सार (धातुओं की उत्कृष्टता)* *संहनन (शरीर की सघनता)* *प्रमाण (शरीर की माप)* *सात्म्य (अनुकूलन)* *सत्व (मानसिक स्थिति)* *आहार शक्ति (पाचन और चयापचय की शक्ति)* *व्यायाम शक्ति (शारीरिक क्रियाशक्ति)* *वय (आयु)* प्रबंधन (चिकित्सा) सामान्य सिद्धांतों में कारणों से बचाव, दोषों का संतुलन और शरीर की प्रतिरक्षा बढ़ाना शामिल है। विशेष उपचार ज्वर के प्रकार और दोषों की भागीदारी के अनुसार भिन्न होते हैं। निष्कर्ष यह अध्याय बुखार के मूल कारणों और इसके विशिष्ट लक्षणों को समझने पर जोर देता है ताकि प्रभावी प्रबंधन किया जा सके। जटिलताओं से बचने के लिए निवारक उपाय और प्रारंभिक निदान महत्वपूर्ण हैं। ये नोट्स निदान स्थान के पहले अध्याय का संक्षिप्त अवलोकन हैं। विस्तृत समझ के लिए, मूल ग्रंथ और ब्रह्मानंद त्रिपाठी की टीका का अध्ययन करना आवश्यक है।