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ऊँटाला का युद्ध | "चुण्डावत व शक्तावत" की रौंगटे खड़े कर देने वाली दास्ताँ | Thikana Rajputana скачать в хорошем качестве

ऊँटाला का युद्ध | "चुण्डावत व शक्तावत" की रौंगटे खड़े कर देने वाली दास्ताँ | Thikana Rajputana 3 года назад

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ऊँटाला का युद्ध | "चुण्डावत व शक्तावत" की रौंगटे खड़े कर देने वाली दास्ताँ | Thikana Rajputana

मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में विशेष पराक्रमी होने के कारण चुण्डावत खांप के वीरों को ही युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति ( हरावल ) में रहने का गौरव मिला हुआ था। वह उसे अपना अधिकार मानते थे। किन्तु शक्तावत खांप के वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे। उनकी भी इच्छा थी की युद्ध क्षेत्र में सेना में आगे रहकर मृत्यु से पहला मुकाबला उनका होना चाहिए। उन्होंने मांग रखी कि हम चुंडावतों से त्याग, बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं है। युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार हमें मिलना चाहिए। इसके लिए एक प्रतियोगिता रखी गई जिसे जीतने के लिए चुण्डावत ने अपना सिर खुद धड़ से अलग कर किले में फेंक दिया था। सभी जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना यानी मौत को सबसे पहले गले लगाना। मौत की इस तरह पहले गले लगाने की चाहत को देख महाराणा धर्म-संकट में पड़ गए। किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार दिया जाए? इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने एक कसौटी तय की, जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग (किला जो कि बादशाह जहांगीर के अधीन था और फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था) पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे व जिस दल का व्यक्ति पहले दुर्ग में प्रवेश करेगा उसे ही युद्ध भूमि में रहने का अधिकार दिया जाएगा। प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए दोनों दलों के रण-बांकुरों ने उन्टाला दुर्ग (किले) पर आक्रमण कर दिया। शक्तावत वीर दुर्ग के फाटक के पास पहुंच कर उसे तोड़ने का प्रयास करने लगे तो चुंडावत वीरों ने पास ही दुर्ग की दीवार पर रस्से डालकर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया। इधर शक्तावतों ने जब दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए फाटक पर हाथी को टक्कर देने के लिए आगे बढाया तो फाटक में लगे हुए लोहे के नुकीले शूलों से सहम कर हाथी पीछे हट गया। हाथी को पीछे हटते देख शक्तावतों का सरदार बल्लू शक्तावत, अद्भुत बलिदान का उदहारण देते हुए फाटक के शूलों पर सीना अड़ाकर खड़ा हो गया व महावत को हाथी से अपने शरीर पर टक्कर दिलाने को कहा जिससे कि हाथी शूलों के भय से पीछे न हटे। एक बार तो महावत सहम गया, किन्तु फिर वीर बल्लू के मृत्यु से भी भयानक क्रोधपूर्ण आदेश की पालन करते हुए उसने हाथी से टक्कर मारी जिसके बाद फाटक में लगे हुए शूल वीर बल्लू शक्तावत के सीने में घुस गए और वह वीर-गति को प्राप्त हो गये। उसके साथ ही दुर्ग का फाटक भी टूट गया। शक्तावत के दल ने दुर्ग का फाटक तोड़ दिया। दूसरी ओर चूण्डावतों के सरदार जैत सिंह चुण्डावत ने जब यह देखा कि फाटक टूटने ही वाला है तो उन्होंने पहले दुर्ग में पहुंचने की शर्त जीतने के उद्देश्य से अपने साथी को कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग की दीवार के ऊपर से दुर्ग के अन्दर फेंक दो। साथी जब ऐसा करने में सहम गया तो उसने स्वयं अपना मस्तक काटकर दुर्ग में फेंक दिया। शक्तावत के दल ने दुर्ग का फाटक तोड़ दिया। दूसरी ओर चूण्डावतों के सरदार जैत सिंह चुण्डावत ने जब यह देखा कि फाटक टूटने ही वाला है तो उसने पहले दुर्ग में पहुंचने की शर्त जीतने के उद्देश्य से अपने साथी को कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग की दीवार के ऊपर से दुर्ग के अन्दर फेंक दो। साथी जब ऐसा करने में सहम गया तो उन्होंने स्वयं अपना मस्तक काटकर दुर्ग में फेंक दिया। फाटक तोड़कर जैसे ही शक्तावत वीरों के दल ने दुर्ग में प्रवेश किया, उससे पहले ही चुण्डावत सरदार का कटा मस्तक दुर्ग के अन्दर मौजूद था। Please Subscribe & share . . . Instagram https://instagram.com/thikana_rajputa... Facebook   / thikanarajputana01   Twitter https://twitter.com/th_Rajputana?s=09 Thank you❤

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