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Sati Anusuya, Temple chitrkut || सती अनुसूया मंदिर चित्रकूट | sati anusuya aashram chitrkut#chitrkut चित्रकूट में घूमने लायक अच्छे स्थल 1#ramghat 2#kamtanathMandir 3#kamdgiripahad 4#HanumanDhara 5#Jankikund 6#satiansuyaaashram 7#GuptGodavari 8#Lakshmanpahadi 9#Bharatmilaap सती अनसूया ऋषि अत्रि की पत्नी थीं, जो अपने पतिव्रत धर्म और तपस्या के लिए जानी जाती थीं। वह प्रजापति कर्दम और देवहूति की पुत्री थीं और उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अहंकार को तोड़ा था। अनसूया के तीन पुत्र थे: दत्तात्रेय, चंद्र और दुर्वासा, जिन्हें त्रिदेवियों के अनुरोध पर उन्होंने गोद लिया था। मुख्य बातें पतिव्रता धर्म: वह अपनी असाधारण पतिभक्ति और पातिव्रत्य के लिए जानी जाती थीं, जिनके तप का तेज इतना था कि आकाशमार्ग से जाते देवताओं को भी इसका अनुभव होता था। तीन त्रिदेवियों की परीक्षा: देवलोक की तीन देवियों (लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती) ने उनके पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को यतियों (संन्यासी) का वेश धारण कर आश्रम भेजा। अहंकार को तोड़ा: जब त्रिदेवियों ने उनसे उनके पतियों को वापस भेजने को कहा, तो उन्होंने त्रिदेवों को नग्न अवस्था में भोजन परोसने को कहा। इससे अनसूया ने उन्हें निस्वार्थ भाव से जल छिड़क कर छोटे बच्चों में बदल दिया और उन्हें पालने में झुलाया। तीन पुत्रों के रूप में जन्म: जब अत्रि मुनि लौटे, तो उन्होंने सती अनसूया के इस चमत्कार को देखा। इसके बाद, उन्होंने त्रिदेवों से वरदान मांगा कि तीनों देव उनकी कोख से जन्म लें। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने दत्तात्रेय, ब्रह्मा ने चंद्र और शिव ने दुर्वासा के रूप में अनसूया के गर्भ से जन्म लिया। राम से मुलाकात: जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान उनके आश्रम में आए, तो अनसूया ने उनका स्वागत किया और सीता को एक ऐसा लेप दिया, जिससे उनकी सुंदरता हमेशा बनी रहे। चित्रकूट में आश्रम: उनका आश्रम पवित्र मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है, जिसे सती अनसूया आश्रम के नाम से जाना जाता है। अनसूया प्रजापति कर्दम और देवहूति की 9 कन्याओं में से एक तथा अत्रि मुनि की पत्नी थीं। उनकी पति-भक्ति अर्थात् सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें 'सती अनसूया' भी कहा जाता है। अनसूया ने श्रीराम, सीता और लक्ष्मण का अपने आश्रम में स्वागत किया था। सती अनुसूया के तीन पुत्र थे: दत्तात्रेय (विष्णु के अंश से), दुर्वासा (शिव के अंश से) और चंद्र (ब्रह्मा के अंश से)। कथाओं के अनुसार, अत्रि ऋषि और अनसूया ने त्रिदेवों को पुत्र के रूप में प्राप्त करने की तपस्या की थी, और वरदान के बाद ये तीनों अवतार उनके पुत्र बने। दत्तात्रेय: भगवान विष्णु के अंश। दुर्वासा: भगवान शिव के अंश। चंद्र: भगवान ब्रह्मा के अंश।