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Swami Sri Sharananad Ji Maharaj's Discourse in Hindi. स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन। दृश्य से विमुख होते ही भूलजनित भिन्नताका नाश। मानव सत्य को स्वीकार करने में स्वाधीन है, परन्तु वह प्रमादवश दृश्य के परधीनता जनित सुख को पसन्द करता है। दुःख और अभाव में आबद्ध रहता है, फिर भी सत्य को स्वीकार नहीं करता। सत्संग के द्वारा प्रमाद का नाश करना अनिवार्य है। दृश्य के सहयोग से मिलने वाले सुख को नापसन्द कर देने से नित्य-योग की प्राप्ति होती है। शरीर की एकता संसार से है और मनुष्य की एकता अविनाशी तत्व से है। इस सत्य को स्वीकार करके शरीर और संसार से सम्बन्ध तोड़ देने पर योग-बोध और प्रेम की अभिव्यक्ति हो जाती है। यह मानव जीवन की पूर्णता है।