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फिशर, जिसे गुदा विदर भी कहते हैं, गुदा में एक छोटी दरार या कट होता है, जो आमतौर पर कब्ज या कठोर मल त्याग के कारण होता है। इसके लक्षणों में मल त्याग के दौरान या बाद में तेज दर्द, जलन, खुजली और कभी-कभी खून आना शामिल हैं। इसे ठीक करने के लिए आहार में फाइबर बढ़ाना, खूब पानी पीना और सिट्ज़ बाथ (गर्म पानी में बैठना) जैसे उपाय प्रभावी हो सकते हैं। फिशर के लक्षण मल त्याग के दौरान तेज दर्द मल त्याग के बाद भी कई घंटों तक दर्द बना रहना मल में खून या टॉयलेट पेपर पर चमकीला लाल रक्त गुदा क्षेत्र में जलन या खुजली गुदा के पास छोटी-छोटी दरारें या त्वचा का फटना फिशर के कारण कब्ज या कठोर मल त्याग दस्त (diarrhea) का लंबे समय तक बने रहना गुदा की मांसपेशियां सख्त होना कुछ मामलों में, यौन संचारित रोग फिशर से बचाव और घरेलू उपाय आहार में फाइबर शामिल करें: ताजे फल, सब्जियां और साबुत अनाज खाएं। खूब पानी पिएं: शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए पर्याप्त तरल पदार्थ लें। व्यायाम करें: नियमित व्यायाम से मल त्याग नियमित रहता है। सिट्ज़ बाथ: दिन में कई बार गुदा क्षेत्र को गर्म पानी में भिगोने से दर्द और जलन में राहत मिलती है। मल को नरम करें: आवश्यकतानुसार ओवर-द-काउंटर (बिना डॉक्टर की पर्ची के मिलने वाली) मल सॉफ़्नर का उपयोग करें। जब डॉक्टर को दिखाना चाहिए अगर लक्षण 6 सप्ताह से अधिक समय तक रहें। अगर दर्द बहुत असहनीय हो। यदि आपको लगता है कि आपको बवासीर या अन्य कोई गंभीर समस्या हो सकती है, क्योंकि लक्षण समान हो सकते हैं। फिशर-- मल मार्ग का पीडादायक रोग रेडियो तरंगों द्वारा चिकित्सा पद्धति को रेडियो सर्जरी' कहा जाता है। एक उपकरण की सहायता से रेडियो तरंगों की तीव्रता को इतना बढ़ा दिया जाता है कि जब वे शरीर के किसी भाग पर केंद्रित की जायें, तो उस भाग को काटने, नष्ट करने या सुखाने की क्षमता रखती हैं। मल मार्ग के अधिकांश विकारों में यह विधि बहुत कारगर सिद्ध हुई है। चूंकि इन विकारों की विभिन्नता की वजह से इनकी चिकित्सा विधियों को भी भिन्न-भिन्न रूपों में और भिन्न-भिन्न तरीकों से इस्तेमाल करना पड़ता था, यानि हर बीमारी के लिये अलग उपकरण और मशीनों की जरूरत पड़ती थी। मगर इस विधि से एक की यंत्र द्वारा मल मार्ग की प्रमुख बीमारियों का उपचार संभव हो गया है। फिशर या गुद विदर गुदा की सबसे पीड़ादायक बीमारी है जिसमें मरीज को मल त्याग के पश्चात उस स्थान पर घंटों दर्द बना रहता है, कभी खून भी निकलता है या मस्सा उत्पन्न हो जाता है। रेडियो सर्जरी द्वारा फिशर के घाव की किनारियों का नूतनीकरण किया जाता है, जिसकी वजह से घाव जल्दी भर जाता है। इसके अलावा संलग्न मस्सों को भी उसी वक्त नष्ट कर दिया जाता है। उपचार के तुरन्त बाद की मरीज को राहत मिलना शुरू हो जाता है। मल त्याग के पश्चात होने वाली पीड़ा भी काफी कम हो जाती है और कुछ ही दिनों में स्थिति सामान्य हो जाती है। संपूर्ण उपचार एक ही दिन में संपन्न हो जाता है। मरीज कुछ दिनों के अवकाश के बाद अपनी सामान्य दिनचर्या में लौट जाता है। एक माह में घाव सूख जाता है और वह जगह सामान्य हो जाती है। फिशर के उपचार में रेडियो सर्जरी एक कारगर और कष्टरहित उपचार साबित हो रहा है।