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द्वारिकानाथ और कुलकरनी साई से बदला लेने और साई को मारने के लिए ताँटया नाम के कातिल के पास जाते हैं और उन्हें साई को मारने के लिए कहते हैं। ताँटया शपत लेता है यदि वो अपने कार्य में सफल नहीं हुआ और पकड़ा गया तो है की वो उनका नाम किसी को नहीं बताएगा। ताँटया शिरडी में आ जाता है और साई को मारने के मौक़े का इंतज़ार करता है। ताँटया साई को खोजते हुए खंडोबा मंदिर में जाता है महालसापति जी उसे देख कर पहचान लेते हैं। महालसापति पुलिस को उसके बारे में बता देता है। ताँटया पुलिस से छिपता फिर रहा था और वो साई को भी खोज रहा था। साई बाबा उसके सामने प्रकट हो जाते हैं। ताँटया साई से पूछता है की साई के बारे में तुम जानते हो तो मुझे बता दो। साई उस से पूछते हैं की तक साई से क्यों मिलना चाहते हो। ताँटया साई को बताता है की मैं उसको मारने के लिए आया हूँ। साई ताँटया को अपने बारे में बताते हैं और उसे कहते हैं की में यहाँ तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था की तुम मुझे मार सको। साई ताँटया को कहते हैं की तुम मुझे खोज रहे थे मैं तो हर जगह हूँ। साई ताँटया के अहंकार और क्रूर परवर्ती को नष्ट करने के लिए उसकी परीक्षा लेते हैं। ताँटया साई की बातों में नहीं आता और वहाँ से चला जाता है। साई के पास एक आदमी अपने पेट का दर्द लेकर आता है जिसे साई बाबा अपने चमत्कार से ठीक कर देते हैं। ताँटया के पीछे पुलिस वाले लग जाते हैं। ताँटया उनसे बचने के लिए जंगल में वापस चला जाता है और उसे साई मिलते हैं साई उसे पुलिस से बचा लेते हैं। ताँटया वापस से कुलकरनी और द्वारिकानाथ के पास आता है और साई के बारे में पूछता है तो वो उसे साई का हुलिया बताते हैं। ताँटया समझ जाता है जो बाबा उसे वन में मिले थे वो साई ही थे। शांत अपनी गुड़िया को नहलाने के लिए कुएँ के पास जाती है तो साई उसे अपने चमत्कार से बाहर निकाल देते हैं सभी साई बाबा के पास जाते हैं। ताँटया सभी के साथ साई के पास जाता है। वहाँ जाकर जब वो साई के चमत्कार को देखता है तो उसका ह्रदय परिवर्तित हो जाता है और वो साई की शरण में आ जाता है। साई ने उसे ईश्वर की भक्ति करने के लिए कहा था तो ताँटया साई से कहता है की आज के बाद वो बुरे काम छोड़ देगा और ईश्वर की भक्ति करेगा। साई बाबा ताँटया को आशीर्वाद देते हैं और उसे उपदेश देते हैं। एक दिन काशीनाथ की बेटी अचानक से बीमार पड़ जाती है तो वह अपनी बेटी को साई के पास लेकर जाता है। साई बाबा काशीनाथ से दक्षिणा माँगते हैं तो काशीनाथ साई को 5 रुपए दे देता है। काशीनाथ को बहुत ख़ुशी होती है की साई ने सिर्फ़ मुझसे दक्षिणा माँगी है। साई काशीनाथ के अहंकार को नष्ट करने के लिए ये लीला को रचते हैं। काशीनाथ को खुद पर बहुत बहुत अहंकार हो गया था उसकी पत्नी काशीनाथ को समझाती है लेकिन उसकी समझ के कुछ नहीं आता। काशीनाथ क़र्ज़ लेकर व्यापार करने के लिए निकल पड़ता है रास्ते में वो निम गाँव की धर्मशाला में रुकता है और जब वह भोजन कर रहा था तो एक भूखा आदमी उस से भोजन माँगने आता है तो काशीनाथ को साई की बात याद आती है और वो अपना भोजन उस व्यक्ति हो दे देता है। काशीनाथ के कम्बल और पैसे द्वारिकानाथ के आदमी चुरा लेते हैं। काशीनाथ बुरी हालत में वापस अपने घर आता है और अपनी पत्नी को बताता है की चोरों ने उसके सारे पैसे और कम्बल चुरा लिए हैं वह अपना सब कुछ लूट जाने पर दुःखी होता है और गोंडाजी के पैसे लौटाने की चिंता करता है। साई के पास काशीनाथ और उसकी परिवार आता है साई काशीनाथ से दक्षिणा माँगते हैं तो वो कहता है की उसके पास पैसे नहीं हैं उसके सारे पैसे चोरों ने चुरा लिए हैं। तो साई उसे कहते हैं की मेरे भक्तों के पैसे कैसे चोरी हो सकते हैं। द्वारिकानाथ और कुलकरनी काशीनाथ को पैसे लौटाने के लिए धमकाते हैं। काशीनाथ को अपना क़र्ज़ चुकाने की चिंता होती है और वो अपने प्राण देने के लिए जैसे ही फाँसी लागने वाला होता है तो उसकी पत्नी उसे रोक देती है। काशीनाथ की बेटी ये देख कर साई के पास जाती है और सारी बात बताती है। साई काशीनाथ को समझाते हैं की अहंकार बहुत बुरी चीज़ है यह इंसान को डुबो देती है। काशीनाथ को अपनी गलती का अहसास होता है और वो साई से क्षमा माँगता है। द्वारिकानाथ और कुलकरनी काशीनाथ के घर में जाकर उसे याद दिलाते हैं की उसने आज अगर ब्याज और क़र्ज़ की रक़म ना लौटायी तो मकान ख़ाली कर दो। तभी वहाँ एक आदमी आता है और कहता है की मुझे एक फ़क़ीर मिला था जिसने मुझे आपको आपके ये कम्बल और पैसे देने को कहा है। काशीनाथ द्वारिकानाथ को उनके पैसे लौटा देते हैं और उन्हें जाने को कहते हैं। काशीनाथ समझ जाता है की ये सब साई की कृपा है। काशीनाथ साई को धन्यवाद करने के लिए आते हैं।