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Vigyan Bhairav tantra 1-56 explained | Vigyan Bhairav Tantra | विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र १-५६ | скачать в хорошем качестве

Vigyan Bhairav tantra 1-56 explained | Vigyan Bhairav Tantra | विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र १-५६ | 2 года назад

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Vigyan Bhairav tantra 1-56 explained | Vigyan Bhairav Tantra | विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र १-५६ |

Vigyan Bhairav tantra explained | Vigyan Bhairav Tantra 1-56 | विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र १-५६ | Vigyan Bhairav Tantra Sutra 1-56 #vigyanbhairav #vigyanbhairavtantra #shiva #shiv #mahadev #vigyanbhairavsutra #विज्ञानभैरवतंत्र #vigyanbhairavtantaoshoinhindi 1हे देवी, यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है। श्वास के भीतर आने के पश्चात और बाहर लौटनेके ठीक पूर्व श्रेयस है, कल्याण है॥2जब श्वाँस ऊपर से नीचे की तरफ़ मुड़ती है और ऊपर से नीचे की तरफ़ मुड़ती है, इन दोनों मोडों द्वारा उपलब्धहै ॥3जब भी श्वास अंदर और बाहर आपस में मिलें, इस क्षण ऊर्जा रहित ऊर्जा पूर्ण केंद्र का स्पर्श करें॥ 4जब श्वान्स पूरी तरह बाहर गई और सतः ठहरी या पूरी तरह भीतर आयी और ठहरी, ऐसे जागतिक क्षण मेंव्यक्ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवल अशुद्ध के लिए ये कठिन है॥5दोनों भिड़ीकुटियों के बीच अवधान को स्थिर कर विचार को मन के सामने करो। फिर सहस्रार तक रूप कोप्राण तत्व से भरने दो, वहाँ वह प्रकाश की तरह बरसेगा ॥6 सांसारिक कामों में लगे हुए अवधान को दो श्वासों के बीच टिकाओ। इस अभ्यास से थोड़े ही दिनों में नयाजन्म होगा॥7ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वाँस को टिकाओ, जब वह सोने क्षण में हृदय तक पहुँचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्युपर अधिकार हो जाएगा॥8आत्यंतिक भक्तिपूर्वक दो श्वासों के संधि स्थलों पर केंद्रिक होकर ज्ञाता को जान लो ॥9मृत्वत लेटे रहो, क्रोध में शुब्ध होकर उसने ठहरे रहो। पुतलियों को बिना हिलाए एकटक घूरते रहो। या कुछचूसो और चूसना बन जाओ॥10हे देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे की वह नित्य जीवन हो॥11जब, चींटी के रेंगने की अनुभूति हो इंद्रियों के द्वार बंद कर दो, तब॥”12जब, बिस्तर या आसन पे हो तब अपने को वजन शून्य हो जाने दो । मन के पार॥”13शून्य में या दीवार पर किसी बिंदु के साथ कल्पना करो, जब तक वह बिंदु विलीन ना हो जाये॥14अपने पूरे अवधान को अपने मेरु दंड के मध्य में कमल-तंतु सी कोमल स्नायु  में स्थित करो, और रूपांतरित होजाओ ॥15सिर के सातों द्वार को अपने हाथों से बंद करने पर आँखों के बीच का स्थान सर्वग्रही हो जाता है 16हे भगवती, जब इंद्रियाँ हृदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचो॥ 17मन को भूलकर मध्य में रहो तब तक ॥18 किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो ; दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं, विषय के मध्य में आनंद है ॥19पावों या हाथों को सहारा दिये बिना सिर्फ़ नितंबों। अचानक केंद्रित हो जाओगे ॥20 किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा अनुभव को प्राप्त हो। या किसी अचल वाहन में अपने को मंद सेमंदतर अदृश्य वर्तुलों में झूलने देने से भी ॥21अपने अमृत भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदों और भद्रता के साथ उस भेदन में प्रवेश करो, और आंतरिकशुद्धि को उपलब्ध होओ॥22 23अपने सामने किसी विषय को अनुभव करो । इस एक विषय को छोड़कर अन्य सभी विषयों की अनुपस्थितिको अनुभव करो । फिर विषय भाव और अनुपस्थिति भाव को भी छोड़कर आत्मोपलब्ध होओ॥24जब किसी व्यक्ति के पक्ष में या विपक्ष में कोई भाव उठे तो उसे उस व्यक्ति पर मत आरोपित करो॥25जैसे ही कुछ करने की वृत्ति हो, रुक जाओ॥26जब कोई कामना उठे, उसपर विमर्श करो, फिर अचानक उसे छोड़ दो ॥27पूरी तरह थकने तक घूमते रहो, और तब ज़मीन पर गिभक्ति मुक्त करती हैII30आँखें बंद करके अपने अंतरस्थ अस्तित्व को विस्तार से देखो।

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