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शकुनि युद्धिष्ठिर को राजा बनने से रोकने के लिए उन्हें मारने का षड्यंत्र रचता है और इसमें वह राजा जरासंध से सहायता माँगता है जिसे जरासंध मान लेता है। शकुनि दुर्योधन को पांडवों को मारने के लिए बनाया षड्यंत्र बताता है। युवराज युद्धिष्ठिर को तीर्थ यात्रा बहाने वारणावर्त भेजने और वहाँ जाकर लाक्षाग्रह भवन में उनके रात्रि में रुकने का प्रबंध किया है। रात्रि में जब पांडव सो जाएँगे तो उस लाक्षाग्रह में आग लगा दी जाएगी और वो पाँचों भाई वहीं जल कर मार जाएँगे। यह षड्यंत्र सुन दुर्योधन बहुत खुश होता है। पांडवों को तीर्थ यात्रा पर भेजने के लिए मनाने हेतु शकुनि राजा धृतराष्ट्र को पास अपने कुछ लोगों को ब्राह्मण बना कर भजता है। राजा धृतराष्ट्र उन ब्राह्मणों की बात सुन पांडवों को तीर्थ यात्रा पर भेजने हेतु राज़ी हो जाते हैं। युद्धिष्ठिर अपनी माता से मिलने के लिए आता है। कुंती उसे दुर्योधन के किए को भूलने और राजा बनने पर उनके साथ अपने भाइयों जैसा व्यवहार करने के लिए कहती है। तभी युद्धिष्ठिर को राजा धृतराष्ट्र अपने पास बुलाते हैं। युद्धिष्ठिर उनसे मिलने के लिए निकल पड़ता है। भीम अपने तीनों भाइयों अर्जुन, नकुल और सहदेव को अपने साथ युद्ध अभ्यास करने के लिए ले जाता है। युद्धिष्ठिर को राजा धृतराष्ट्र तीर्थ यात्रा पर जाने की आज्ञा देते हैं। युद्धिष्ठिर अपने चारों भाइयों के साथ अपनी माता कुन्ती को अपने साथ यात्रा पर ले जाता है। विदुर के पास उनका दूत आता है जो उन्हें एक फल देते हुए कहता है की एक साधु आए हैं और उन्होंने आपके लिए चामुंडा देवी के प्रसाद में ये फल देने के लिए कहा है। विदुर जब उस फल को ध्यान से देखता है तो उसे उस फल में एक पत्र मिलता है। विदुर को फल में जो पत्र मिलता है उस पत्र में उनके गुप्तचर ने उनसे मिलने के लिए बुलाया था। विदुर रात्रि में उस स्थान पर अपने गुप्तचर से मिलने जाता है। वह गुप्तचर विदुर को बताता है की शकुनि ने सभी पांडवों को मारने के लिए लाक्षाग्रह का निर्माण लाख से किया है जिसे रात्रि में आग लगा दी जाएगी और पाँचों पांडवों का एक साथ जलाकर मर जाएँगे। विदुर ये सुनकर पांडवों को बचाने के लिए अपने गुप्तचरों को आदेश देता है और उन्हें सुरक्षित लाक्षाग्रह से निकलने की योजना बताता है। अर्जुन को शक होता है की हम सभी भाइयों को एक साथ राज्य से बाहर क्यों भेज दिया गया है। भीम और अर्जुन दोनो युद्धिष्ठिर की रक्षा करने की शप्त लेते हैं। दुर्योधन शकुनि से कहता है की यदि विदुर को हमारे षड्यंत्र के बारे में पता चल गया तो क्या होगा जिस पर शकुनि कहता है की विदुर को कुछ पता नहीं चलेगा वह तो अपने महल में बैठ कर पूजा कर रहा है। विदुर का गुप्तचर वज्रदत्त अपने साथियों को लेकर लाक्षाग्रह तक पांडवों के आने से पहले पहुँच जाता है। वो लाक्षाग्रह से नदी तक के लिए एक सुरंग खोदने की योजना बनाते हैं जिससे होते हुए पांडवों को बाहर निकालने की योजना पर काम शुरू हो जाता है। पांडव और कुंती लाक्षाग्रह पहुँच जाते हैं। वज्रदत्त और उसे कुछ साथी महल में प्रवेश कर जाते हैं और अंदर ही छिप जाते हैं। लाक्षाग्रह में रात्रि में जब सभी पांडव सोने चले जाते हैं तब शकुनि के सेवकों की वज्रदत्त मार देता है, उनकी लड़ाई को आवाज़ सुन सभी पांडव और कुंती बाहर आ जाते हैं। भीम वज्रदत्त को दुशमन समझ पकड़ लेता है और मारने ही वाला होता है तो वज्रदत्त उन्हें बताता है की मैं आपका सेवक हूँ ना की दुशमन। युद्धिष्ठिर भीम को रोकता है और वज्रदत्त उन्हें शकुनि की सारी योजना के बारे में बता देता है। पाँचों भाई ब्राह्मण का भेष धारण कर लेते हैं और गुफा के रस्ते से बाहर निकल जाते हैं। शकुनि के सैनिक महल में आग लगा देते हैं। महल जल कर ख़ाक हो जाता है। वज्रदत्त उन्हें हस्तिनापुर से पांचाल देश की सीमा में जाने का रास्ता बता कर उन्हें वहाँ से भज देता है। पांडव अज्ञात वास में जैन के लिए मान जाते हैं और नाव में बैठ निकल पड़ते हैं। शकुनि राजा धृतराष्ट्र और गांधारी को लक्षाग्रह में पांडवों और कुंती समेत जल कर मिस्टर जाने की खबर सुनाता है। जिसे सुन कर गांधारी और धृतराष्ट्र को बहुत दुःख होता है। गांधारी इस खबर को सुन बेहोश हो जाती हैं। अक्रूर को पांडवों के लाक्षाग्रह में जलकर मारने की खबर मिलती है तो वह श्री कृष्ण के पास पहुँचते हैं और उन्हें सब कुछ बताते हैं। जिसे सुन बलराम को बहुत दुःख होता है, बलराम श्री कृष्ण को कहते हैं की हमें हस्तिनापुर जाना चाहिए और उनका दुःख बाटना चाहिए श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा। In association with Divo - our YouTube Partner #shreekrishna #krishnaleela #bhagwankrishna #शरीकृष्ण #krishnashorts #krishnabhakti #bhaktigeet #krishnavideo #hindumythology #krishnaupdesh #krishnakatha #devotionalshorts #radhakrishna #krishnaavatar #spiritualshorts