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सिंसियो योग में ऐशोसांस कैसे ली जाती है की व्याख्या कुछनाकर भाईजी द्वारा श्वास प्रक्रिया के 2 मुख्य आयाम हैं 1. श्वास लेने छोड़ने का समय 2. श्वास लेने छोड़ने की गति प्रथम बिन्दु भक्ति को दर्शाता है जो कि कलियुग में सम्भव ही नहीं तो उसको सिंसियो योग में स्थान ही नहीं दिया गया दूसरे बिन्दु को ही महत्व दिया गया है यानि श्वास लेने छोड़ने की गति। धीरे धीरे श्वास लेनी है धीरे धीरे ही छोड़नी है। यानि सारा ध्यान सिर्फ गति को धीरे रखने में ही निहित है। सांस को ना तो रोकना है ना ही खींचना है ना ही आँखें बंद होनी चाहिए ना ही दुनियां से संबंध विच्छेद होना चाहिए। अभ्यास के दौरान हाथ को ऊपर ले जाना जब सांस अन्दर कर रहे हैं और नीचे लाना है जब सांस छोड़ रहे हैं। सांस को अपनी पूर्ण कैपेसिटी में भरना है। वो अंदर कहां जाता है क्या करता है से कोई मतलब नहीं होता बस हवा धीरे धीरे जाए अन्दर भी बाहर भी। मूल उद्देश्य सिंसियो योग का है मन सोच बुद्धि शरीर वा वांछित ऊर्जा श्रम करने हेतु पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो ना कम ना ज्यादा। यहां ज्ञान विज्ञान को सीखना भी श्रम ही गिना जाता है। आसपास हो रही घटनाओं पर भी नजर रखना आवश्यक है। जिससे किसी भी प्रकार की दुर्घटना को रोका जा सके। वा कुछ आनंदित घटना घटित हो रही है तो उसका आनन्द भी उसी समय उठाना आवश्यक है। जितना अधिक अभ्यास करेंगें उतना ही अधिक लाभ जीवन के सभी आयामों में मिलता जाएगा। कुछ भी सीखने की क्षमता बढ़ जाएगी अपेक्षित परिणाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है। दूसरे को समझने की क्षमता में सुधार होने लगता है। आपसी संबंधों में खटास कम होने लगती है वाद विवाद की जगह संवाद होने लगता है समयानुसार परिस्थितियां व्यवस्थित करना आसान होने लगता है क्रोध का स्थान विवेक ले लेता है स्वास्थ्य लाभ अपने को तो मिलता ही है पत्नी को बोनस रूप में मिलता है मां अभ्यास करती है तो बच्चों को बोनस रूप में मिलता ही है। गलती होने की संभावना कम होने लगती है निर्णय लेने की क्षमता सुधरती है बाकि जो लोग अभ्यास कर रहे हैं वो जानकारी साझा कर सकते हैं। कोई भी प्रश्न, जिज्ञासा, शंका हो तो निश्चिन्त हो कर पूछ सकते हैं। समाधान मिलेगा देर सवेर हो सकती है। कुछनाकर भाईजी