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जहा बचपन बीता, त्यौहार मनाये उस जन्मभूमि की 'जल समाधि' पर रोए ग्रामीण। उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों में रहने वाले लोगों का जीवन किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं है. लखवाड़-व्यासी बांध परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले लोहारी गांव ने हमेशा के लिए जल समाधि ले ली है. करीब 71 परिवारों वाला लोहारी गांव अब इतिहास के पन्नों में ही पढ़ा और देखा जाएगा. ऐसे में लोहारी गांव के ग्रामीण अपनी आंखों के सामने अपने घरों को जलमग्न होता देख रहे हैं और यह देखकर ग्रामीणों के आंसू नहीं रुक रहे हैं. देहरादून के विकासनगर का लोहरी गांव पानी में समा चुका है। आप इस वीडियो में इस गांव की आखरी झलक देख रहे है। लेकिन ये गांव कहीं ना कहीं हमारे सामने कई सवाल खड़े कर गया है। पहला सवाल तो आप से ही है कहीं अगली बारी आपकी तो नहीं है। आखिर क्यों पहाड़ के लोग लोहरी गांव के साथ खड़े नहीं हो पाए है। कभी ना कभी किसी ना किसी बाँध के बहाने पहाड़ के कितने ही गांव आज जलमग्न हो गए हैं। कभी टिहरी, कभी लोहारी और कभी पंचेश्वर के बहाने नदी की अविरल धारा जोइन गावो के लिए संजीवनी के सामान थी उसी धारा में ये गांव हमेशा के लिए समा गए हैं। बड़ा सवाल है किआखिर हम अपने लोगों की पीड़ा क्यों नहीं समझ पाते है। जब हम उत्तर प्रदेश में थे तब वह के नेता हमारे पहाड़ कि भावनाओ को नहीं समझ पाते थे जिस कारण हमने अलग राज्य उत्तराखंड माँगा था, लेकिन यहाँ तो हमारे उत्तराखंड के नेता और अधिकारी भी पहाड़ के लोगों कि भावनाओ को समझने के लिए तैयार नहीं है। कुछ दिन पहले ही इसी गांव में कितने ही नेता वोट मांगने आये होंगे तब उन्हें यहाँ के लोगो के दर्द और भावनाओ का जरा भी एहसास नहीं हुआ होगा। आखिर हम इतने भावना शून्य क्यों होते जा रहे हैं ? पहाड़ के हर गाँव के साथ उसकी संस्कृति, रीति रिवाज, त्यौहार , उनके पित्रो के स्थान ,उनकी पितृ कुड़ी , उनके खेत खलिहान, उनके पालतू जानवर, उनके बचपन से बुढ़ापे तक कि यादों की तिलांजलि यूं ही विकास के नाम पर दे दी जाएगी । इसलिए सवाल सरकारों से नही अपने आप से ज़रूर करियेगा। क्या आपने अपने विकास पुरुषों से यहीं विकास मांगा था ???? बिजली के लिए डूबा लोहारी गांव लोहारी गांव के लोगों का कहना है कि उनको इस बात का बहुत दुःख हो रहा है कि जिस गांव में उनका बचपन बीता, आज वो गांव हमेशा के लिए जलमग्न हो गया है. ग्रामीणों का कहना है कि आज वो अपनी जमीन और अपनों घर को छोड़कर जाने के लिए मजबूर हैं. हमारे बच्चे रो रहे हैं. अपनी पैतृक संपत्ति को इस तरह अपनी आंखों के सामने जलमग्न होते हुए देख रहे हैं. सरकार की मानें तो सभी लोगों के खातों में पैसा डाल दिया गया है, जबकि सरकार ने जमीन और घर देने का भी इन लोगों को वादा किया है. ग्रामीणों का कहना है कि वह बांध के ऊपर ही आसपास किसी जगह पर बसना चाहते हैं, ताकि उनकी यादें इस पहाड़ी और पहाड़ से जुड़ी रहें. यह बांध परियोजना 120 मेगावाट की परियोजना है, जिसका स्वामित्व उत्तराखंड के पास है. इस बांध की ऊंचाई 204 मीटर यानी 669 फीट है, जबकि इसकी उत्पादन क्षमता को 300 मेगावाट तक बढ़ाया जा सकता है. इस परियोजना का काम साल 1987 में शुरू हुआ था, जिसको अब पूरा किया जा रहा है.