У нас вы можете посмотреть бесплатно झारखंड का सबसे बड़ा मिशनरी उत्सव! देखिए GEL चर्च मिशन पर्व 2025 की भव्य झलकियां। Bagdega Goriyabahar или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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आज का मिशन पर्व: आज के समारोहों (आराधना, रैली, पारंपरिक नृत्य) की झलकियाँ कहानी ....... छोटानागपुर के चार लूथरन मिशनरी (2 नवंबर 1845) ये चारों मिशनरी जर्मनी के गोस्सनर मिशनरी सोसाइटी, बर्लिन से भेजे गए थे, जिसके संस्थापक फादर जोहान्स गोस्सनर (Father Johannes Gossner) थे। उनकी यात्रा और मिशन की मुख्य बातें मिशनरियों के नाम: रेव्ह एमिल शत्स (Emil Schatz), रेव्ह फ्रेडरिक वच/बाश (Fredrick Batsch), रेव्ह औगुस्त ब्रंत (August Brandt) और रेव्ह थियोदोर यानके (Theodore Janke) 1. शुरुआती उद्देश्य और रास्ते का बदलाव प्रस्थान: चारों मिशनरी मूल रूप से जर्मनी से बर्मा (म्यांमार) के मेरगुई शहर में कारेन जाति के बीच मिशन कार्य करने के लिए निकले थे। कोलकाता में पड़ाव: किसी कारणवश, वे कोलकाता में रुके। यहाँ उन्होंने छोटानागपुर के आदिवासी लोगों को कुली (रेजा-कुली) का काम करते देखा। निर्णय: आदिवासियों के सरल स्वभाव और उनकी कठिन परिस्थितियों को देखकर, मिशनरियों ने बर्मा जाने का निर्णय टाल दिया और छोटानागपुर आकर सुसमाचार प्रचार और सेवा कार्य करने का निर्णय लिया। . रांची पहुँचना (2 नवंबर 1845) तैयारी: वे 25 फरवरी 1845 को कोलकाता से बैलगाड़ी से रवाना हुए। भाषा अध्ययन: रास्ते में, उन्होंने बांकुड़ा (Dr. Chek के यहाँ) में महीनों रुककर हिंदी भाषा सीखी, यह समझकर कि छोटानागपुर में कई भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन हिंदी सभी समझते हैं। आगमन: 2 नवंबर 1845 को वे अंततः रांची पहुँचे। #मिशन की नींव और परिणाम मेजर ऑस्ले का स्वागत: रांची में ब्रिटिश अधिकारी मेजर ऑस्ले ने उनका स्वागत किया। जमीन की बंदोबस्ती: मेजर ऑस्ले की पहल पर रातु महाराज से बेथेस्डा ग्राउंड के पास लगभग 121 एकड़ जमीन मिशन कार्य के लिए दिलवाई गई। यहीं उन्होंने अपना पहला डेरा डाला। संघर्ष के 5 साल: मिशनरियों ने लगभग पाँच साल तक यहाँ के मौसम, परिस्थिति और भाषा को सीखने में कठिन परिश्रम और संघर्ष में बिताए। पहला बपतिस्मा: उनके अथक प्रयासों का फल 9 जून 1850 को मिला, जब छोटानागपुर के चार वयस्क व्यक्तियों ने उनसे बपतिस्मा ग्रहण किया। यह इस क्षेत्र में GEL कलीसिया की आधिकारिक शुरुआत . GEL चर्च का निर्माण पहला चर्च: बपतिस्मा की खबर सुनकर, फादर गोस्सनर ने एक बड़े गिरजाघर के निर्माण का सुझाव दिया और इसके लिए ₹13,000 की बड़ी राशि दान की। नींव: इस विशाल GEL क्राइस्ट चर्च, रांची की नींव 18 नवंबर 1851 को रखी गई और इसका संस्कार 1855 में हुआ। ये चार मिशनरी न केवल धर्म प्रचारक थे, बल्कि उन्होंने छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासियों के शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी आवाज उठाई और काम किया। #GELChurch #MissionParv #झारखंडमिशन #2Nov1845 #GossnerMission #RanchiHistory #ChristianityInIndia #झारखंडकाइतिहास #AdivasiChristian #ChurchHistory #LutheranChurch #धार्मिकपर्व #रांची #झारखंड #Chotanagpur #EmilSchatz #TheodoreJanke