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राजा दशरथ के घर कोई भी संतान नहीं थी। उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ से इसके लिए कहा तो उन्होंने उसे ऋषि श्रिंग मुनि के पास जाने के लिए कहते हैं और उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने के लिए कहते हैं। राजा उनके पास नंगे पाँव जाते हैं। ऋषि श्रिंग मुनि राजा दशरथ की प्रार्थना स्वीकार कर लेते हैं। यज्ञ से करने के बाद अग्नि देव रजा दशरथ को खीर देते हैं जिसके सेवन से राजा के घर 4 पुत्रों का जनम होता है। राजा दशरथ उनका नाम कारण करवाते हैं। ऋषि वसिष्ठ उनका नाम श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन रखा जाता है। चारों कमरों का लालन पालन राजा दशरथ और उनकी तीनों पत्नियाँ करती हैं। बड़े होने पर चारों भाइयों को ऋषि वसिष्ठ के पास आश्रम में शिक्षा के लिए भेज दिया जाता है। चारों भाइयों को आश्रम में जीवन बिताते हुए सभी तरह की शिक्षा प्राप्त करते हैं जैसे अस्त्र शस्त्र, वेद, संगीत और योग। चारों भाई बड़े हो जाते हैं और अपनी गुरुकुल की शिक्षा को पूर्ण कर वापस राजमहल जाते हैं जहां उनकी माताएँ उन्हें देखने के लिए इंतज़ार कर रही थी। अपनी माताओं से मिलने के बाद चारों भाई अपने पिता और माता के साथ समय बिताते हैं। दूसरी ओर वन में विश्वामित्र जी के आश्रम में राक्षसों का क़हर टूट रहा था वो ऋषि मणियों को तप हवन नहीं करने देते थे। महाऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास जाते हैं और उनसे अपनी रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण को लेकर अपने साथ वन में आते हैं। श्री राम और लक्ष्मण दोनों मिलकर तड़का का वध करते हैं। ऋषि विश्वामित्र श्री राम को अनेक तरह की शक्तियाँ और अस्त्र प्रदान करते हैं। वन में श्री राम और लक्ष्मण दोनों भाई राक्षसों का वध करते हैं और ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करते हैं। ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में राजा जनक की पुत्री के स्वयंवर कर निमंत्रण आता है। श्री राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र अपने साथ चलने के लिए कहते हैं। श्री राम और लक्ष्मण महाऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला जाते हैं और राजा जनक से मिलते हैं। राजा जनक से मिलने की बाद राम और लक्ष्मण अपने गुरु की सेवा में लग जाते हैं। सीता अपनी बहनों के साथ माता गौरी के मंदिर जाती हैं। श्री राम जी भी सुई मंदिर की पुष्प वाटिका से गुरु विश्वामित्र की पूजा कर लिए पुष्प लेने जाते हैं। श्री राम और सीता एक दूसरे को पहली बार पुष्प वाटिका में देखते हैं और एक दूसरे को देखते ही रह जाते हैं। सीता श्री राम को मन ही मन अपना पति मान लेती हैं और गौरी माइयाँ से श्री राम को पति के रूप में माँगती हैं। अगले दिन सीता का स्वयंवर शुरू होता है राजा दशरथ ने स्वयंवर की शर्त में शिव धनुष पर प्रत्यंचा चड़ाने की शर्त रखी थी। स्वयंवर में बहुत से राजा आते है लेकिन कोई भी राजा शिव धनुष को उठा तक नहीं पाते हैं। श्री राम शांत बैठ कर देख रहे थे। राजा दशरथ अपनी पुत्र के लिए कोई योग्य वार ने ढूँढ पाने के कारण दुःखी होकर सभी राजाओं के शौर्य पर बोल उठते हैं तो लक्ष्मण क्रोध में आकर राजा जनक को बोल पड़ते हैं की अभि राजा दशरथ के पुत्रों ने शिव धनुष को नहीं उठाया है इसलिए आप शांत रहें। ऋषि विश्वामित्र श्री राम को स्वयंवर में भागे केने के लिए कहते हैं। श्री राम आज्ञा लेकर शिव धनुष को उठा लेते हैं और उस पर प्रत्यंचा चड़ाते वक्त शिव धनुष टूट जाता है। शिव धनुष के टूटने की आवाज़ से परशुराम जी को क्रोध आ जाता है और वो स्वयंवर की ओर निकल पड़ते हैं। राजा जनक श्री राम अरु सीता की जय माला करवाते हैं। परशुराम जी सभा में आकर शिव धनुष को तोड़ने वाले को मृत्यु के घाट उतरने की बात करते हैं तो श्री राम उन्हें शांत कर देते हैं और परशुराम के कहने पर श्री राम उनके अहंकार को नष्ट कर देती हैं। श्री राम और सीता के विवाह का समाचार राजा दशरथ के पास भेजा जाता है। श्री राम और सीता के विवाह के साथ तीनों भाइयों का विवाह भी जनक की तीनों पुत्रियों के साथ तय कर दिया जाता है। चारों दशरथ पुत्रों का विवाह कर दिया जाता है। राजा जनक अपनी पुत्रियों को विदा कर देते हैं। श्री राम और सीता अयोध्या आ जाते हैं। सभी भाइयों की उनकी पत्नियों सहित पूर्वजों से आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं।