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बहुत समय पहले की बात है… जब देवताओं और दैत्यों के बीच संघर्ष चरम पर था। परंतु यह कथा किसी युद्ध की नहीं… यह कथा है धैर्य की, विश्वास की, और ईश्वर के रूप बदलने की क्षमता की। दैत्यों में एक नाम सबसे प्रमुख था – हिरण्यकशिपु। वह न सिर्फ शक्तिशाली था, बल्कि स्वर्ग तक अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। उसने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की और वरदान माँगा – "हे ब्रह्मा, न मैं किसी मानव से मरूं, न पशु से… न दिन में, न रात में… न घर के अंदर, न बाहर… न धरती पर, न आकाश में… न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से…" ब्रह्मा मुस्कुराए… बोले – "तथास्तु।" अब हिरण्यकशिपु के भीतर अहंकार उमड़ने लगा। "मैं अमर हूँ! अब मुझे कोई नहीं मार सकता!" उसने देवताओं को पराजित कर दिया, ऋषियों को सताना शुरू किया, और घोषणा कर दी – "सिर्फ मैं ही पूज्य हूँ। कोई नारायण की आराधना नहीं करेगा!" --- लेकिन उसी के घर में जन्मा उसका पुत्र – प्रह्लाद। एक मासूम, सात-आठ वर्ष का बालक। पर उसके मन में बस एक ही नाम – "नारायण… नारायण…" प्रह्लाद जब खेलता, तब भी नारायण का नाम लेता। जब पढ़ाई करता, तो अपने गुरुओं को भी भगवान की भक्ति सिखाने लगता। हिरण्यकशिपु को यह सब सहन नहीं था। "कैसे मेरा ही पुत्र मेरे शत्रु का नाम ले सकता है?" उसने प्रह्लाद को समझाया – धमकाया – सज़ा दी – यहाँ तक कि मृत्यु देने की भी कोशिश की। उसे हाथी के पैरों तले कुचलवाया… ज़हर पिलाया गया… सांपों से कटवाया गया… पर हर बार – कोई अदृश्य शक्ति प्रह्लाद की रक्षा करती। फिर आया सबसे प्रसिद्ध दृश्य – होलिका का अग्नि-दहन। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी। पर अग्नि ने होलिका को भस्म कर दिया… और प्रह्लाद अग्नि से भी सुरक्षित निकल आया। --- हिरण्यकशिपु अब क्रोधित नहीं… पागल हो चुका था। एक दिन उसने प्रह्लाद से पूछा – "कहाँ है तेरा नारायण? क्या वह इस खंभे में भी है?" प्रह्लाद ने मुस्कराकर कहा – "हाँ, वो हर जगह है। खंभे में भी।" हिरण्यकशिपु ने अपनी गदा उठाई… धड़ाम!! खंभे को दो टुकड़े कर दिया… और तभी… एक ऐसी गर्जना हुई, कि ब्रह्मांड हिल गया! “गगनभेदी सिंहनाद…!” खंभे से प्रकट हुए एक विचित्र रूप – न मानव, न पशु – सिंह का सिर… और मानव का शरीर। वह थे – भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार। उनकी आँखों में अग्नि थी, साँसें गरज रही थीं, और पंजे ऐसे कि समय भी थम जाए। हिरण्यकशिपु क्रोधित होकर लड़ा – पर नरसिंह ने उसे न दिन में मारा, न रात में… न धरती पर, न आकाश में… न घर के अंदर, न बाहर… बल्कि संध्या काल में, घर की दहलीज़ पर, गोद में रखकर, नाखूनों से – उसका वध किया। ब्रह्मा का वरदान भी टूटा नहीं… पर अधर्म का अंत हो गया। --- उसके बाद भी… नरसिंह शांत नहीं हुए। उनकी आँखों में अब भी ज्वाला थी। देवता, ब्रह्मा, लक्ष्मी – सबने उन्हें शांत करने की कोशिश की, पर कोई सफल नहीं हुआ। और तब… नन्हा प्रह्लाद उनके चरणों में आया। उसने नरसिंह को हाथ जोड़कर कहा – "हे प्रभु, अब पिताजी का अंत हो गया। अब कृपा कीजिए। भक्ति को स्वीकार कीजिए।" नरसिंह ने उसे उठाया… अपनी जिह्वा पीछे खींच ली, साँसों को शांत किया… और मुस्कुराए। "जब भी अधर्म बढ़ेगा… जब भी कोई कहेगा कि भगवान नहीं हैं… मैं इसी तरह, किसी भी रूप में आऊँगा।" "न रूप बाधा बनेगा, न समय। क्योंकि मैं हूँ – समय से भी परे।" --- उपसंहार: तो साथियों, यह कथा सिर्फ एक अवतार की नहीं – यह हमारे विश्वास की कथा है। प्रह्लाद का विश्वास था अडिग… और भगवान ने उस विश्वास को अपने अस्तित्व से भी ऊपर रखा। जब भी आप जीवन में अधर्म से, अन्याय से घिर जाएं… याद रखिए – अगर आपके भीतर सच्ची भक्ति है, तो भगवान आपके लिए खंभा तोड़कर भी आएंगे। "न वो देर करते हैं, न अंधेर करते हैं…" #storytelling #youtubeshorts #history #hindi #motivation #animation #sanatani #sanatan #mahabharatyug #Narasimha #prahald #trending #trendingstory #long video #sanatani #sanatanihindu #sanatandharma #rkguru #mrperfect #stories unfolded