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भारत के महान शासकों में से एक मिहिरभोज की जाति को लेकर पिछले कई वर्षों से २ जाति आपस में लड़ रही है कौन कौन राजपूत और गुज्जर गुज्जर समाज का कहना है की मिहिरभोज गुज्जर है उनका यह भी कहना है कि मिहरभोज ही नहीं बल्कि पृथ्वीराज चौहान, बप्पा रावल, महाराणा प्रताप भी गुज्जर है प्रतिहार, चौहान, सोलंकी और परमार जाति के सभी महापुरुषों को वो खुलेआम गुज्जर बता रहे है भले ही उनके वंशज ज़िंदा बैठे हो फिर मिहिरभोज राजपूत कैसे ?? जानते है शुरू से प्रतिहारों का उदय मंडोर (जोधपुर) से हुआ मंडोर प्रतिहारों की पहली राजधानी रही मंडोर के महान शासक राणा कक्कुक के समय के दो शिलालेख मिलते है यह शिलालेख वि. स. 918 के है और इसमें लिखा है कि राणा कक्कुक ने अपने सच्चरित्र से मरू, माड, वल्ल, तमणी, अज्ज और गुर्जरात्रा के लोगो का अनुराग प्राप्त किया मरू का मतलब - मरुधर माड और वल्ल का मतलब - जैसलमेर तमणी का मतलब - फलोदी गुर्जरात्रा का मतलब - भीनमाल यह वही भीनमाल है जहां पर प्रतिहारों ने राज किया भीनमाल के वत्सराज प्रतिहार द्वारा मुंगेर का युद्ध लड़ा गया था यह मुंगेर बिहार में है और इसलिए कई पड़ोसी राज्यो ने अपने शिलालेखों में गुर्जरात्रा के राजा को गुर्जर नरेश लिखा ठीक वैसे जैसे मारवाड़ के राजा को मारवाड़ नरेश या मेवाड़ के राजा को मेवाड़ नरेश और इसका यह मतलब तो होता नहीं कि मेवाड़ और मारवाड़ कोई जाति है ठीक उसी प्रकार गुर्जरात्रा कोई जाति नहीं बल्कि एक राज्य था और आज का गुजरात इसी गुर्जरात्रा प्रदेश का हिस्सा था राजस्थान के इतिहास के विद्वान डा गोरिशंकर हीराचन्द ओझा ने अपनी पुस्तक “राजपूताने का इतिहास” में लिखा है कि कई विद्वानों ने प्रतिहार, चावड़ा, परमार, चौहान, तंवर, सोलंकी आदि राजपूतों को गुज्जर बताने के लिए कई बड़े बड़े लेख लिख डाले लेकिन अपनी मनमानी कल्पना की घुड़दौड़ में किसी ने इन बातो का तनिक भी विचार नहीं किया कि प्राचीन शिलालेख इन वंशों के बारे में क्या लिखते है दूसरे समकालीन राजवंश उस विषय में क्या मानते है ?? और एसे प्रमाणरहित काल्पनिक कथन जब तक सप्रमाण यह ना बता सके की अमुक राजपूत जाति, अमुक समय, अमुक गुजर वंश से निकली तब तक यह स्वीकार नहीं किए जाएँगे !! और कई इतिहासकार ऐसे भी आए जिन्होंने राजपूतों को विदेशी लिख दिया लेकिन बिना किसी प्रमाण के रही बात मिहिरभोज की तो उनकी ग्वालियर प्रशस्ति में कई भी गुजर शब्द का उल्लेख नहीं यह ज़रूर लिखा है की वो सूर्यवंशी क्षत्रिय है, और राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज है हम समझ सकते है की मिहिरभोज हिंदुओं का अभिमान हैं लेकिन वो राजपूतों के पूर्वज है इस बात को कोई नकार नहीं सकता यदि कोई यह कहे कि मांड गायिकी फलाँ जाति के कारण बची, पशुपालन फलाँ जाति के कारण बचा, यह परम्परा फलाँ जाति के कारण रक्षित हो पायी तो हमे स्वीकार है लेकिन कोई राजपूत कभी कह दे कि हमारी हजारों पीढ़ियाँ खपी तब जाकर यह राष्ट्र और सनातन ज़िंदा रह पाये तो एक मिनट नहीं लगेगा और हम कह देंगे कि यह राजपूत जातिवादी है हिन्दू हैं यह बात फिर भी पचती है लेकिन उन पराक्रमी यौद्धाओं को किसी और जाति का बताकर वोट लेना यह क्या बेवक़ूफ़ी है ? राजपूत हैं उन्हें राजपूत कहने में मौत क्यों आती है ? आप राजपूत कहेंगे तो राजपूत ग़ैर-हिन्दू नहीं हो जाएंगे। जिनके वंशज ज़िंदा बैठे हैं और यह निर्लज सियासत है कि धड़ाधड़ उन महापुरुषों को दूसरी जाति का घोषित कर रही है !! #mihirbhoj #rajput #gujjar