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त्रावणकोर रियासत त्रावणकोर महाराजा का निवास स्थान त्रावणकोर या तिरुवितामकूर सन् 1949 से पहले एक भारतीय राज्य (रियासत) था। इस पर त्रावणकोर राजपरिवार का शासन था, जिनकी गद्दी पहले पद्मनाभपुरम और फिर तिरुवनन्तपुरम में थी। अपने चरम पर त्रावणकोर राज्य का विस्तार भारत के आधुनिक केरल के मध्य और दक्षिणी भाग पर और तमिल नाडु के कन्याकुमारी पर था। इस रियासत के राजकीय ध्वज पर लाल पृष्टभूमि के ऊपर चांदी का शंख बना हुआ था। 19वीं शताब्दी में त्रावणकोर रियासत ब्रिटिश-अधीन भारत की एक रियासत बन गई और इसके राजा को स्थानीय रूप से 21 तोपों की और राज्य से बाहर 19 तोपों की सलामी की प्रतिष्ठा दी गई। महाराज चितिरा तिरुनल बलराम वर्मा के 1924-1949 के राजकाल में राज्य सरकार ने सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिये कई प्रयत्न किये, जिनसे यह ब्रिटिश-अधीन भारत का दूसरा सबसे समृद्ध रियासत बन गया और शिक्षा, राजव्यवस्था, जनहित कार्यों और सामाजिक सुधार के लिये जाना जाने लगा। दक्षिण भारतीय राज्य त्रावणकोर भारत में विलय से इनकार करने वाली रियासतों का अगुआ था। त्रावणकोर रियासत के दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने 1946 में ही साफ कर दिया था कि वह इस मसले पर अपने विकल्प खुले रखेंगे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार त्रावणकोर के इस रवैये के पीछे मोहम्मद अली जिन्ना की प्रेरणा काम कर रही थी। ये भी कहा जाता है कि सी.पी. अय्यर ने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से एक गुप्त समझौता किया था, जिसके एवज में ब्रिटिश उनकी मांग का समर्थन करने वाले थे। माना जाता है कि ब्रिटिश खनिज पदार्थों से संपन्न त्रावणकोर राज्य पर अपना परोक्ष नियंत्रण बनाए रखना चाहते थे। जुलाई 1947 तक त्रावणकोर अपने इस रुख पर कायम रहा। लेकन जब जुलाई 1947 में केरल की सोशलिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने सी.पी. अय्यर पर जानलेवा हमला किया तो उसके बाद वह भारत में विलय के लिए तैयार हो गए। 30 जुलाई, 1947 को त्रावणकोर भारत का आधिकारिक हिस्सा हो गया।