У нас вы можете посмотреть бесплатно 🎬 “धरम जी कोई अभिनेता नहीं, एक एहसास हैं” — सौरभ शुक्ला की ज़ुबानी или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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जब सौरभ शुक्ला धर्मेन्द्र के बारे में बोलते हैं, तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक आ जाती है — जैसे वो किसी युगपुरुष की बात कर रहे हों, जो पर्दे पर ही नहीं, ज़िन्दगी में भी अमर है। “ऐसे लोग अब नहीं मिलते,” सौरभ कहते हैं। “आजकल स्टार्स बहुत हैं, लेकिन धर्मेन्द्र एक दौर हैं — वो मिट्टी की खुशबू हैं, पंजाब की सादगी हैं, और भावनाओं की ताकत हैं।” ⸻ 🌾 सादगी में शक्ति, और शक्ति में प्रेम सौरभ याद करते हैं कि जब वो छोटे थे, तब धर्मेन्द्र की फ़िल्में देखते ही रह जाते थे। “वो इतने खूबसूरत थे कि बस देखते रह जाओ, लेकिन असली जादू उनकी सच्चाई थी। चाहे शोले के वीरू हों या फूल और पत्थर के अजय — उनकी आँखों में हमेशा सच्चाई दिखती थी। कोई बनावट नहीं, कोई अभिनय नहीं… बस दिल से निकला एहसास।” सौरभ कहते हैं कि धर्मेन्द्र ने मर्दानगी को नरमी दी। “उस वक़्त हीरो को सिर्फ़ ताकतवर दिखना होता था, लेकिन धरम जी ने उसे भावुक बना दिया। वो जब ग़ुस्सा करते थे, तब भी प्यार झलकता था।” ⸻ 🎥 कैमरे का सबसे प्यारा चेहरा सौरभ शुक्ला खुद निर्देशक और अभिनेता दोनों हैं। लेकिन उनके मुताबिक़ धर्मेन्द्र को कैमरा इश्क़ करता था। “कैमरा उनको चाहता था। उनको यह बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी कि कहाँ देखना है — वो हर फ्रेम में बस ‘ठीक’ लगते थे। ये किसी स्कूल से नहीं सीखा जाता — ये दिल से आता है।” वो मुस्कराते हुए जोड़ते हैं, “और उनकी आवाज़! ग़ुस्सा भी इतना संगीत भरा होता था कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाए।” ⸻ ❤️ स्टार नहीं, इंसान हैं धर्मेन्द्र सौरभ शुक्ला कहते हैं कि धर्मेन्द्र की सबसे बड़ी खूबी उनकी इंसानियत है। “जब आप उनसे मिलते हैं, तो आपको लगता ही नहीं कि सामने कोई सुपरस्टार खड़ा है। वो हाथ पकड़ कर पूछेंगे — ‘कैसे हो बेटा?’ — इतनी अपनापन भरी आवाज़ में कि दिल छू जाए।” वो आगे कहते हैं, “फिल्म इंडस्ट्री में सब कुछ बदल जाता है — चेहरों से लेकर किस्मत तक। लेकिन धरम जी आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे — साफ़ दिल, नेक इंसान, और प्यार से भरे हुए।” ⸻ 🌟 “धर्मेन्द्र सिर्फ़ एक एक्टर नहीं, एक एहसास हैं” बात के अंत में सौरभ शुक्ला थोड़ी देर रुकते हैं और फिर कहते हैं — “आप धर्मेन्द्र को किसी एक शब्द में परिभाषित नहीं कर सकते। वो सिर्फ़ सिनेमा नहीं हैं — वो ज़िन्दगी हैं। जब आप उन्हें पर्दे पर देखते हैं, तो आप जीना महसूस करते हैं।”