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Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन विवेक के प्रकाश का ही दूसरा नाम शास्त्र है। वह विवेक भाई-बहिन को नित्य प्राप्त है। विवेक का आदर करने वाला ममता और कामना का त्याग कर देता है। ममता और कामना के नाश के बाद गृहस्थ जीवन-मुक्त हो जाना है। जीवन-मुक्त होने के बाद भक्त बनता है। जो जीवन-मुक्ति को ठुकरा देता है। साधन में लेश-मात्र भी असमर्थता नहीं है, असिद्धि नहीं है। अप्राप्त वस्तु, व्यक्ति और सामर्थ्य की अपेक्षा साधन में नहीं है। यह बात कभी मत सोचिये कि हमारा रचयिता इतना अन्जान है कि हमसे साधन करावे और शक्ति न दे। यह साध्य के स्वभाव में नहीं है। उन्होंने जो शक्ति आपको दी है, उसी से साधन करायेंगे। अपने जीवन की अन्तिम अनुभूति है कि श्रम के बिना, वस्तु के बिना और साथी के बिना हम सबको सिद्धि मिल सकती है। अतःसाधन में स्वाधीनता है और साधन-परायणता में सिद्धि है। भोग और पूजा में बड़ा अन्तर है। भोग का अंत भोग की वासना को जन्म देता है। और पूजा का अंत प्रेमास्पद की स्मृति को जगाता है। नित्य जीवन के लिये साथी की अपेक्षा नहीं है। बिना साथी के न रहा जाये तो नित्य साथी की तलाश करो। एक साथी ऐसा है जो तुम्हारे पीछे खड़ा रहता है, पर तुम्हें दिखायी नहीं देता। उसकी याद करो। जब तुम उसको याद करोगे तो उसे बड़ा मजा आयेगा। स्मृति ही बोध और प्रेम का रूप धारण करती है। यही सिद्धि है।