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महाभारत के अज्ञात अध्याय: भीम और हनुमान का रहस्यमय मिलन || stories unfolded अध्याय १: वन में यात्रा वनवास के वर्षों में पांडवों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक दिन द्रौपदी को एक दुर्लभ फूल, सौगंधिक पुष्प, बहती नदी में तैरता मिला। उसका सुगंध अत्यंत दिव्य था। द्रौपदी ने भीम से अनुरोध किया कि वह उस पुष्प को लाने के लिए वन में जाए। भीम, जो अपनी शक्ति और साहस के लिए प्रसिद्ध थे, तुरंत सहमत हो गए और वन में प्रवेश कर गए। उनका मनोबल उच्च था, और वे अज्ञात दिशा में बढ़ते चले गए। --- अध्याय २: एक रहस्यमय अवरोध कुछ समय तक चलते रहने के बाद, भीम एक विशाल गुफा के पास पहुँचे। वहाँ उन्होंने मार्ग में एक वृद्ध वानर को लेटे हुए देखा। वह इतना बड़ा था कि उसका शरीर पूरे मार्ग को ढँक रहा था। भीम ने गर्जना करते हुए कहा, "हे वानर! हट जाओ, मैं पांडु पुत्र भीम हूँ। मुझे सौगंधिक पुष्प प्राप्त करने जाना है।" वानर ने आँखें खोलीं और शांत स्वर में कहा, "वत्स, मैं वृद्ध हूँ, मुझसे उठने की अपेक्षा मत करो। यदि तुम्हें आगे जाना है, तो मेरे पूँछ को हटा दो और अपना मार्ग बना लो।" भीम को यह सुनकर क्रोध आ गया। उन्होंने सोचा कि एक साधारण वानर उनके बल को चुनौती कैसे दे सकता है! --- अध्याय ३: भीम की परीक्षा भीम ने वानर की पूँछ को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वह हिला तक नहीं। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन असफल रहे। अब उन्हें समझ में आने लगा कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। वह विनम्र होकर बोले, "हे वानरराज, आप कौन हैं? ऐसा कौन हो सकता है, जिसकी पूँछ को मैं भीमसेन भी नहीं हिला सकता?" तभी वानर ने मुस्कुराते हुए अपना असली रूप प्रकट किया। वह कोई और नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हनुमान थे, जो भीम के बड़े भाई भी थे, क्योंकि दोनों पवनदेव के पुत्र थे। --- अध्याय ४: हनुमान का आशीर्वाद हनुमान ने भीम को स्नेहपूर्वक आशीर्वाद दिया और कहा, "हे भीम, अहंकार से सावधान रहो। शक्ति के साथ विनम्रता आवश्यक है। जो अपनी शक्ति का दंभ करता है, वह विनाश को बुलाता है।" भीम ने श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। इसके बाद हनुमान ने उन्हें सौगंधिक पुष्प प्राप्त करने का मार्ग बताया और कहा, "जब महाभारत का युद्ध होगा, तब मैं अर्जुन के ध्वज पर विराजमान रहूँगा और पांडवों की विजय सुनिश्चित करूँगा।" --- अध्याय ५: विजय और शिक्षा भीम सौगंधिक पुष्प प्राप्त कर सफलतापूर्वक लौटे, लेकिन वे केवल पुष्प लेकर नहीं आए थे, बल्कि वे एक महत्वपूर्ण शिक्षा लेकर लौटे थे— "शक्ति के साथ ज्ञान और विनम्रता का होना आवश्यक है।" द्रौपदी ने प्रसन्न होकर वह पुष्प लिया, लेकिन युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने भीम के इस अनुभव को सुनकर इसे एक महान सीख के रूप में अपनाया। --- उपसंहार इस कथा का संदेश यह है कि केवल बल ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि ज्ञान, धैर्य और नम्रता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। महाभारत के इस गूढ़ प्रसंग में हनुमान और भीम का मिलन केवल दो महान योद्धाओं की भेंट नहीं थी, बल्कि यह धर्म, भक्ति और ज्ञान की परीक्षा भी थी।