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छठ पूजा में बंद कमरे में क्यों किया जाता है खरना और इसकी मान्यता छठ पूजा का दूसरा दिन ‘खरना’ कहलाता है, जिसे लोहंडा भी कहा जाता है। यह दिन छठ व्रत का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण चरण होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर शाम के समय सूर्यास्त के बाद खरना का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके पीछे गहरी धार्मिक आस्था और मान्यता जुड़ी हुई है। 🔹 खरना क्या है? खरना का अर्थ होता है — शुद्ध आहार से उपवास तोड़ना। पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहने के बाद व्रती सूर्यास्त के समय गंगा या किसी जलाशय से जल लाकर पूजा करते हैं। इसके बाद गुड़ की खीर, रोटी और गन्ने का रस से भगवान सूर्य और छठी मईया को प्रसाद अर्पित किया जाता है। फिर व्रती स्वयं वही प्रसाद ग्रहण करते हैं और यही अगले दिन के व्रत की शुरुआत होती है। 🔹 बंद कमरे में खरना क्यों किया जाता है? शुद्धता की रक्षा के लिए: छठ पूजा का मूल भाव है शुद्धता और पवित्रता। बंद कमरे में खरना करने से बाहरी धूल-मिट्टी, हवा या किसी अशुद्ध वस्तु का संपर्क नहीं होता। भक्ति और एकाग्रता के लिए: व्रती जब प्रसाद बनाते हैं, तो पूरा वातावरण शांत और पवित्र रहना चाहिए। कोई बातचीत, हंसी-मज़ाक या आवाज़ उस एकाग्रता को भंग न करे, इसलिए यह कर्म बंद कमरे में किया जाता है। प्रसाद की पवित्रता बनाए रखने के लिए: खरना का प्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे कोई अपवित्र व्यक्ति न देखे या छुए — इसीलिए प्रसाद तैयार करने और ग्रहण करने की प्रक्रिया बंद कमरे में पूरी की जाती है। आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार: कहा जाता है कि शांत, बंद स्थान में पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती है और व्रती के मन में भक्तिभाव की वृद्धि होती है। 🔹 धार्मिक मान्यता: माना जाता है कि जो व्रती पूर्ण श्रद्धा से खरना करता है, उसकी मनोकामनाएँ सूर्य देव और छठी मईया अवश्य पूरी करती हैं। खरना की रात को व्रती के घर में दिव्य शांति और पवित्रता का वातावरण रहता है, जो अगले दिन संध्या अर्घ्य के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। छठ पूजा में खरना केवल भोजन का संस्कार नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और ईश्वर से एकाकार होने की प्रक्रिया है। #ChhathPuja2025 #ChhathMaiya #SuryaArghya #Kharna2025 #NahayKhay2025 #Suryopasana #ChhathParv #IndianFestivals #BiharCulture #UshaArghya #SuryadevPuja #ChhathVrat