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Hey Gurudev Pranam — हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में गुरु–शिष्य प्रेम, समर्पण, और आत्म–उद्धार की दिव्य गाथा गुरु का स्थान भारतीय सनातन परंपरा में सर्वोच्च है। गुरु केवल शिक्षक नहीं, बल्कि आत्मा के मार्गदर्शक, जन्म–जन्मांतर के बंधन से मुक्त कराने वाले, अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का दीप जलाने वाले, और शिष्य के हृदय में प्रेम, भक्ति, करुणा, और आत्म–चेतना की पवित्र धारा प्रवाहित करने वाले दिव्य व्यक्तित्व हैं। भजन “Hey Gurudev Pranam, हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में” इसी गुरु–तत्त्व की महिमा का संगीत रूप है, जिसमें शिष्य की पुकार, गुरु के प्रति उसका समर्पण, उसकी कृतज्ञता, और आत्म–उद्धार की आकांक्षा एक साथ ध्वनित होती है। यह भजन एक साधारण गीत नहीं, बल्कि गुरु के प्रति शिष्य की अंतरात्मा से निकली वह पुकार है, जो शब्दों की सीमा से परे जाकर सीधे हृदय में उतरती है। यह भजन उस अनुभूति को स्वर देता है, जिसे वेदों, उपनिषदों, संत–काव्य, और भक्ति–साहित्य में बार–बार गाया गया है — कि गुरु ही ब्रह्म हैं, गुरु ही मार्ग हैं, और गुरु ही मंज़िल हैं। भजन का भाव–पक्ष “Hey Gurudev Pranam” में शिष्य की वाणी में तीन मुख्य भाव स्पष्ट रूप से उभरते हैं: समर्पण — गुरु के चरणों में पूर्ण आत्म–समर्पण कृतज्ञता — गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान और प्रेम के लिए धन्यवाद उद्धार की प्रार्थना — गुरु से मुक्ति, कृपा, और मार्ग–दर्शन की याचना भजन की पंक्ति “हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में” इस सत्य की उद्घोषणा है कि गुरु के चरण केवल चरण नहीं, वे वह स्थान हैं जहाँ शिष्य का अहं समाप्त होता है, और आत्मा का नया जन्म प्रारंभ होता है। चरणों में प्रणाम का अर्थ है: अहंकार का त्याग गुरु की आज्ञा का पालन उनके ज्ञान को जीवन में उतारना उनकी कृपा को स्वीकार करना शिष्य जब गुरु के चरणों में झुकता है, तो वह केवल शरीर से नहीं झुकता, वह अपने संस्कार, अपने अहं, अपने संशय, और अपनी सारी सीमाओं को भी वहीं रख देता है। गुरु की महिमा — शास्त्र और संत वाणी में वेद कहते हैं: “आचार्य देवो भव” — आचार्य (गुरु) को देवता के समान मानो। उपनिषदों में गुरु को ब्रह्म कहा गया: “गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।” अर्थात: गुरु ब्रह्मा हैं — जो शिष्य को नया जन्म देते हैं गुरु विष्णु हैं — जो जीवन का पालन करते हैं गुरु शिव हैं — जो अज्ञान और अहं का विनाश करते हैं गुरु परब्रह्म हैं — जो मुक्ति देते हैं संत कबीर कहते हैं: “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” तुलसीदास जी ने लिखा: “बिनु गुरु होइ न ज्ञान, ज्ञान बिनु होइ न मोक्ष।” अर्थात — बिना गुरु के ज्ञान नहीं, और बिना ज्ञान के मोक्ष नहीं। मीरा कहती हैं: “गुरु मिलिया रैदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी।” संत रविदास, नानक, रामानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और समस्त भक्ति संतों ने गुरु को वह नौका कहा है, जो भवसागर पार कराती है। यही भाव इस भजन में भी है — कि गुरु के बिना जीवन अधूरा है, दिशा–हीन है, और अज्ञान में भटकता रहता है। गुरु–चरणों की महिमा का आध्यात्मिक अर्थ गुरु के चरणों में प्रणाम केवल एक क्रिया नहीं, वह एक आध्यात्मिक विज्ञान है। गुरु–चरण प्रतीक हैं: स्थिरता के आत्म–समर्पण के कृपा के स्रोत के ऊर्जा के केंद्र के जब शिष्य गुरु के चरणों में झुकता है, तो तीन परिवर्तन होते हैं: 1. ऊर्जा का स्थानांतरण गुरु के पास संचित तप–ऊर्जा, ध्यान–ऊर्जा, और करुणा–ऊर्जा शिष्य में प्रवाहित होती है। 2. अहं का विघटन प्रणाम के साथ शिष्य का अहं (ego) गुरु–चरणों में विलीन होता है। 3. मन की शांति गुरु–चरणों में झुकते ही शिष्य के मन के संशय शांत हो जाते हैं। इसीलिए भजन में प्रणाम की बार–बार पुनरावृत्ति है — क्योंकि गुरु–चरण वह स्थान हैं जहाँ शिष्य को मन, आत्मा, और जीवन का संतुलन प्राप्त होता है। भजन की पंक्ति–पंक्ति का गूढ़ अर्थ “Hey Gurudev Pranam” यह संबोधन है — हे गुरुदेव! मैं आपको नमन करता हूँ। यहाँ ‘Hey’ अंग्रेज़ी का शब्द होने के बावजूद, पुकार का वह भाव व्यक्त करता है, जो सीधा गुरु तक पहुँचता है। यह आधुनिक भाषा में वही पुकार है, जो पुराने संत “हे गुरुदेव!” कहकर किया करते थे। “हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में” अर्थ — मैं आपको प्रणाम करता हूँ, आपके चरणों में झुककर, समर्पित होकर, बिना किसी शर्त, बिना किसी अपेक्षा, केवल प्रेम और श्रद्धा से। “आपके चरणों में मेरा जीवन” यह वह भाव है जहाँ शिष्य कहता है — “हे गुरु! अब मेरा जीवन मेरा नहीं, यह आपके मार्ग का अनुसरण करेगा।” “ज्ञान दिया आपने, राह दिखाई” गुरु ने दिया: जीवन–ज्ञान आत्म–ज्ञान सही–गलत का विवेक मुक्ति का मार्ग “भटक रहा था मैं, डूब रहा था” शिष्य स्वीकार करता है: मैं दिशा–हीन था संसार के मोह में डूब रहा था अज्ञान के अंधकार में था जीवन समस्याओं में उलझा था “हाथ थामा, आपने मुझे बचाया” गुरु ने किया: शिष्य को गिरने से बचाया उसे संकट से उबारा उसे प्रेम और आश्रय दिया उसे आंतरिक सुरक्षा दी “कृपा बनी रहे गुरुदेव आपकी” यह सबसे पवित्र प्रार्थना है — “हे गुरु! मुझे केवल आपकी कृपा चाहिए, बस।” भजन का आध्यात्मिक संदेश यह भजन सिखाता है: गुरु पर भरोसा रखो अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ो अहंकार का त्याग करो जीवन को भक्ति और प्रेम से भरो संसार में रहकर भी मोह से मुक्त रहो गुरु की कृपा ही सबसे बड़ा कवच है