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Katha 66 गुरुमुखों एक बार संत तुलसीदास जी एक जगह पर विराजमान थे एक जिज्ञासु ने उनके चरणों में विनय की कि महाराज ये जो पांच शत्रु हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इनसे बचना बहुत ही कठिन कार्य है हमारे बस की बात नहीं हम इनसे कैसे बच सकते है तो संत तुलसीदास जी ने जवाब दिया कि तुलसी यह तो पांच है ..चाहे होत 50 जा के हृदय सतगुरु बसे ता के कौने त्रास संत तुलसीदास जी ने फरमाया की आप तो यह पांच चोरों की बात कह रहे हो चाहे 50 भी क्यों ना हो जाए लेकिन जिसके दिल के अंदर सतगुरु का ध्यान बसा हुआ है सतगुरु की मूर्त बसी हुई है सतगुरु की आज्ञा बसी हुई है उसी को किसी प्रकार के डरने की जरूरत नहीं है हम सब आज गुरुमुख जन यहां पर एकत्रित हुए हैं श्री परमहंस द्वैत मंदिर जी में अपने इष्ट देव श्री परम हंसों के कर कमलों में राखी समर्पित करके हम भी इसी इच्छा से आए हैं की हे सतगुरु सच्चे पादशाह आप हमारी रक्षा करना और सही मायने के अंदर वक्त के महापुरुष ही हमें शत्रुओं से बचा सकते हैं वो कौन से शत्रु हैं मन और माया और उसके पांच शत्रु जो है काम क्रोध लोभ मोह अहंकार हमारे श्री सतगुरु दाता दयाल जी श्री चतुर्थ पाश महाराज जी अपने पावन वचनों के अंदर फरमाया करते थे के जीव बेशक लाख त्याग करके वनों में चला जाए गुफा में चला जाए लेकिन फिर भी इन शत्रु से नहीं बच सकता कैसे बच सकता है दास बचेगा सोई जो बैठ सत्संग दिन रात जो दिन रात जो है सत्संग में रहकर के सतगुरु के आज्ञा के दायरे के अंदर रहकर के जो अपना जीवन व्यतीत करता है वही इन शत्रु से बच सकता है हम अपने इष्ट देव श्री सतगुरु देव महाराज जी के पावन श्री चरण कमल उपस्थित हुए हैं और हम यही उनसे वचन लेना चाहते हैं कि आप हमारी रक्षा करो तो महापुरुष यही फरमाते हैं हम आप की रक्षा करेंगे लेकिन आपको हमारी आज्ञा के बंधन में आना पड़ेगा बंधन को बंधन काटता है महापुरुष तो इस संसार में आए इसी कार्य के लिए लेकिन उसी के बंधन करते हैं उसी की रक्षा करते हैं जो अपने आप को सतगुरु की आज्ञा के बंधन में बांध लेता है गीता के अंदर भी भगवान श्री कृष्ण जी महाराज जी ने अर्जुन को फरमाया है कि जो मेरा सेवक अपने आप को मेरे समर्पित कर देता है उसकी रक्षा करना मेरा दायित्व है और वह रक्षा भी कैसी है इस लोक के अंदर भी और परलोक के अंदर भी तो यह महापुरुषों का हम पर भारी उपकार है जो वक्त के महापुरुष सेवक को मिल जाते हैं और सेवक अपनी कार्य शैली उनकी आज्ञा और मौज के अनुसार अपने जीवन को व्यतीत करता है तो उसका भी एक संत पलटू दास जी ने वर्णन किया है कि उसके महापुरुष रक्षक बन जाते हैं संत पलटू दास जी लिखते हैं कि पलटू सोवे मगन में साहिब चौकीदार साहिब चौकीदार मगन ई सोमन लागे दोनों पांव पसार जो सेवक अपने आप को सतगुरु के समर्पित करता है सतगुरु उसके चौकीदार बन जाते हैं तो हमारे कितने ऊंचे भाग है कि इस घोर कलयुग के अंदर श्री परम दयाल महाराज जी ने प्रकट होकर के श्री आनंदपुर धाम की रचना की और भक्ति के जगह जगह केंद्र स्थापित किए और उन्हीं का पावन स्वरूप जो है अभी हम छटी रूप के अंदर पावन दर्शन दीदार कर रहे हैं यह हमारे बहुत ऊंचे भाग है तो हमारा केवल एक ही कर्तव्य है कि हम चाहते हैं कि सतगुरु हमारी रक्षा करें हमने अपने आप को सतगुरु की आज्ञा के बंधन में लाकर के उनकी आज्ञा और मौज के अनुसार अपने जीवन को व्यतीत करते हुए महापुरुषों की प्रसन्नता प्राप्त करें और अपना कल्याण करें और आज के परम पावन दिवस की रक्षा बंधन के त्यौहार की मैं सब गुरुमुख जनों को फिर से एक बार लाख लाख बधाई देता हूं बोलो जय कारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय