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पहले जहां इस मंदिर में अंग्रेजों के लहु को अर्पित करने से माता खुश होती थी, वहीं आज भी माता को खुश करने के लिए लोग बलि देते हैं. लेकिन अब यहां अंग्रेजों की बलि नहीं बल्कि बकरों की बलि दी जाती है. सालों पहले बलि देने की जो परंपरा बंधू सिंह ने शुरू की थी, वो प्रथा आज भी बरकरार है. प्रसाद के रुप में मिलता है मटन तरकुलहा देवी मंदिर देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां प्रसाद के रुप में मटन दिया जाता है. यहां पहले बकरों की बलि चढ़ाई जाती है, उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है और बाटी के साथ प्रसाद के रुप में दिया जाता है. मंदिर में घंटी बांधने की परंपरा तरकुलहा देवी मंदिर में हर साल चैत्र रामनवमी से मेले का आयोजन किया जाता है. एक महीने तक चलनेवाले इस मेले में आनेवाले लोग मन्नत पूरी होने पर मंदिर परिसर में घंटी बांधते हैं. गौरतलब है कि इस मंदिर में हर साल भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और सभी माता को प्रसन्न करने के लिए बलि की परंपरा का निर्वाह करते हुए अंग्रेजों की बलि नहीं बल्कि बकरों की बलि चढ़ाते हैं और प्रसाद के रुप में मिले मटन को खाकर खुशी-खुशी अपने घर लौट जाते हैं. #HandiMutton #TarkulahaDeviTemple #MuttonPrasad