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भारत में इस्लामी कानून (Islamic Law in India) --- 🕌 1. परिचय (Introduction) इस्लामी कानून या शरिया कानून (Sharia Law) इस्लाम धर्म की धार्मिक, सामाजिक और नैतिक व्यवस्था पर आधारित है। भारत में मुस्लिमों के व्यक्तिगत मामलों (Personal Matters) जैसे – विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, वक्फ़, भरण-पोषण आदि में इस्लामी कानून लागू होता है। --- ⚖️ 2. इस्लामी कानून के स्रोत (Sources of Islamic Law) (क) क़ुरआन (Quran) इस्लामी कानून का मुख्य और सर्वोच्च स्रोत है। यह पैगंबर हज़रत मुहम्मद ﷺ को ईश्वर (अल्लाह) द्वारा प्रकट की गई शिक्षाओं का संग्रह है। इसमें जीवन के सभी पहलुओं — धार्मिक, सामाजिक और नैतिक — के नियम निर्धारित हैं। (ख) हदीस (Hadith / Sunnah) हदीस पैगंबर मुहम्मद ﷺ के कथन, कर्म और आचरण का विवरण है। जब क़ुरआन में किसी विषय पर स्पष्ट निर्देश न हों, तो हदीस से मार्गदर्शन लिया जाता है। (ग) इज्मा (Ijma) इस्लामी विद्वानों (उलेमा) के सामूहिक निर्णय या सहमति को इज्मा कहा जाता है। जब किसी नए विषय पर क़ुरआन या हदीस में मार्गदर्शन न हो, तो विद्वानों की सहमति से नियम बनाए जाते हैं। (घ) कियास (Qiyas) तुलनात्मक विवेक या तर्क द्वारा निर्णय। जब किसी नए मामले का उल्लेख क़ुरआन या हदीस में न हो, तो मिलते-जुलते मामले के आधार पर निर्णय किया जाता है। --- 📜 3. भारत में इस्लामी कानून की स्थिति (Status in India) भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, परंतु व्यक्तिगत कानून (Personal Law) प्रत्येक धर्म के अनुसार मान्य हैं। मुस्लिमों के लिए यह कानून “मुस्लिम पर्सनल लॉ (Shariat) Application Act, 1937” द्वारा लागू है। यह कानून मुस्लिमों के विवाह, तलाक, विरासत, वक्फ़, दान, गोद लेना, और भरण-पोषण से संबंधित मामलों में लागू होता है। --- 🏛️ 4. प्रमुख क्षेत्र जहाँ इस्लामी कानून लागू है: 1. निकाह (Marriage) – विवाह एक नागरिक अनुबंध (Civil Contract) माना जाता है। 2. तलाक (Divorce) – पति या पत्नी द्वारा विवाह-विच्छेद के कई रूप जैसे तलाक, खुला, इलाह, आदि। 3. मेहर (Dower) – पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला अनिवार्य उपहार। 4. विरासत (Inheritance) – वारिसों के हिस्से क़ुरआन के अनुसार तय होते हैं। 5. वक्फ़ (Waqf) – धार्मिक या सामाजिक कल्याण के लिए संपत्ति का दान। --- ⚖️ 5. भारतीय न्यायालयों में इस्लामी कानून की व्याख्या इस्लामी कानून British Period से न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त है। अदालतें इस्लामी सिद्धांतों की व्याख्या करते समय क़ुरआन, हदीस, और प्रचलित प्रथाओं को ध्यान में रखती हैं। आधुनिक निर्णयों में समानता, न्याय और मानवाधिकार के सिद्धांतों को प्राथमिकता दी जाती है। --- 🌐 6. आधुनिक सुधार और प्रासंगिकता समय के साथ कई सुधार हुए हैं, जैसे – Triple Talaq (तिहरा तलाक) का उन्मूलन (Supreme Court, 2017)। अब मुस्लिम कानून को भी संविधान के मूल अधिकारों और महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से परखा जा रहा है। --- ✨ निष्कर्ष (Conclusion) “इस्लामी कानून भारत में मुस्लिम समुदाय के व्यक्तिगत जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित होने के बावजूद, भारतीय संविधान के न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों के साथ समन्वय में विकसित हो रहा है।”