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सुंदरबन डेल्टा।—[Human—Tiger Conflicts Rising In Sunderbans Mangrove Forests]—EP#2 सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र मैन्ग्रोव के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह विश्व का एकमात्र नदी डेल्टा है जहां बाघ पाए जाते हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या 103है।[1] यहां पक्षियों, सरीसृपों तथा रीढ़विहीन जीवों (इन्वर्टीब्रेट्स) की कई प्रजातियाँ भी पायी जाती हैं। इनके साथ ही यहाँ खारे पानी के मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिज़र्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीव अभयारण्य घोषित हुआ था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। #सुंदरबनडेल्टा #HumanTiger सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान बांग्ला: সুন্দরবন জাতীয় উদ্যান शुन्दरबॉन जातियो उद्दान' आईयूसीएन श्रेणी द्वितीय (II) (राष्ट्रीय उद्यान) सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान एक यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है, जो भारत के राष्ट्रीय पशु टाइगर्स के लिए जाना जाता है। इसके साथ सुंदरबन, विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा, 10,200 वर्ग किमी में है जो भारत और बांग्लादेश में फैला है। भारतीय सीमा के भीतर आने वाले वन का हिस्सा सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान कहलाता है। यह पश्चिम बंगाल के दक्षिणी हिस्से में है। सुंदरबन 38,500 वर्ग किमी इलाके को कवर करता है। इसका एक–तिहाई भाग पानी/ दलदल से बना है। इस वन में बड़ी संख्या में सुंदरी पेड़ हैं। सुंदरबन रॉयल बंगाल टाइगर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां रहने वाले जानवरों और प्रकिती के बारे में जानने के लिए एक शानदार जगह है। आप यहाँ रॉयल बंगाल टाइगर का भी नजारा ले सकते हैं और यहां जाने के बाद मिलने वाला अनुभव आपके लिए कभी ना भूलने वाला अद्वितीय अनुभव होगा। सबसे पहले यह जान लेते हैं कि इस वन का नाम सुंदरवन क्यों पड़ा ? इस वन का नाम सुंदरबन इसलिए पड़ा क्योंकि इस इलाके में भारी संख्या में सुंदरी के पेड़ ( गंगा नदी के सुन्दरवन डेल्टा में उगने वाला हैलोफाइट पौधा ) पाए जाते हैं । सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना से जुड़े हुए कुछ तथ्य सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व और बायोस्फीयर रिजर्व है। सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान को सन 1973 में सुंदरबन टाइगर रिजर्व का प्रमुख क्षेत्र और फिर इसके बाद में सन 1977 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। वर्ष 1987 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। सन 1989 में सुंदरबन इलाके को बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया था। सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्रफल और प्रजातियों से जुड़े तथ्य सुंदरबन 38,500 वर्ग किमी इलाके में फैला है जिसका करीब एक– तिहाई हिस्सा पानी/ दलदल से भरा है। वन में सुंदरी पेड़ों की संख्या बहुत अधिक है और कहा जाता है कि इस वन का नाम इन्हीं पेड़ों के नाम पर रखा गया है। सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है। इसमें 10,200 वर्ग किमी इलाके में सदाबहार वन है जो भारत और बांग्लादेश की सीमा में फैले हुए है। यह डेल्टा बंगाल टाइगर के लिए सबसे बड़े रिजर्व में से एक है। यह पक्षियों, सरीसृप और अकशेरुकी प्रजातियों के जीव– जंतुओं का प्रमुख निवास स्थान है। यहाँ खारे पानी के मगरमच्छ भी मिलते हैं। जंगली मुर्गी, विशाल छिपकली, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, मगरमच्छ आदि जैसे कई वन्य पशुओं का भी प्राकृतिक निवास स्थान है। विलुप्तप्राय प्रजातियों जैसे बटागुर बसका, किंग क्रैब और ऑलिव रिडल कछुए का भी निवास स्थान है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरबन इलाके में नरभक्षी बाघों ने आतंक मचा रखा है। ये आदमखोर बाघ महिलाओं का सिंदूर उजाड़ रहे हैं। इन बाघों ने अब तक 3000 महिलाओं को विधवा बना दिया है। आइये जानते हैं, यहां के बाघ क्यों हो गए हैं नरभक्षी? क्यों वे पुरुषों को निशाना बना रहे हैं? देश में कभी-कभार बाघ, शेर या अन्य वन्य जीवों के नरभक्षी होने की खबर मिलती है, लेकिन सुंदरबन व उसके आसपास के इलाके के बाघ लगातार महिलाओं की गृहस्थी बर्बाद कर रहे हैं। इलाके के ग्रामीण मछली पकड़कर या शहद एकत्रित कर के गुजर-बसर करते हैं। यह इलाका बांग्लादेश व भारत का सीमावर्ती द्वीपीय क्षेत्र है और यहां घने जंगल भी हैं। इसलिए बन जाते हैं बाघ का निवाला क्षेत्र के ग्रामीण लोग मछली पकड़ने और शहद की तलाश में अक्सर घने जंगलों में चले जाते हैं। यही गलती उन्हें बाघ का निवाला बना देती है। कोरोना लॉकडाउन के बाद इलाके में बड़े लोग शहरों की मजदूरी छोड़कर वापस आ गए हैं, इसलिए ये लोग भी समुद्री व जंगली क्षेत्र में मछली व शहद के लिए बड़ी संख्या में जाने लगे हैं। दरअसल जंगल हैं तो वन्य जीवों के, जहां के वे राजा होते हैं, इसमें जब इंसानी दखल या घुसपैठ हो तो उनका हिंसक होना स्वाभाविक माना जा सकता है। हर दूसरे घर की महिला हो गई विधवा क्षेत्र के कई गांव तो ऐसे हैं जहां हर दूसरे घर में एक विधवा हो गई है। उसके पति का बाघ ने शिकार कर लिया है। वाइस न्यूज की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। दक्षिणबंगा मत्स्य बीज फोरम के प्रमुख प्रदीप चटर्जी का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार क्षेत्र में नरभक्षी बाघों के कारण अब तक 3000 महिलाएं विधवा बन चुकी हैं। बीते 10 माहों में 60 लोग बाघों के हमले में मारे जा चुके हैं। दिनभर में 700 रुपये की कमाई पर जोखिम में जान बकौल प्रदीप चटर्जी जंगलों से आजीविका चलाने वाले लोगों को दिनभर में करीब 700 रुपये की कमाई हो पाती है, लेकिन इसके बदले में उनकी जान की जोखिम रहती है।