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माता के 51 शक्तिपीठ हैं या 108? जानिए माता सती के शक्तिपीठों का सम्पूर्ण विवरण । नमस्का, meditation veda के इस विडीओ में आपका बहुत बहुत स्वागत है,,, आज इस विडीओ में हम बात करेंगे शक्तिपीठों की,,, जी हाँ, शक्तिपीठ क्या हैं और इनकी स्थापना कैसे हुई? और इनके बनने के पीछे की क्या पौराणिक कथा है, आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। शक्तिपीठ वह धार्मिक स्थान है जहां शक्ति और देवी का वास माना जाता है। आपको बता दें कि देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है, तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवीपुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं। इन शक्ति पीठों के बनने के पीछे की जो पौराणिक कथा है, आइए अब उसके बारे में जानते हैं। उस कथा के उसके अनुसार ब्रह्मा पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माँ दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए, तो सभी लोग खड़े हो गए परंतु भगवान शिव खड़े नहीं हुए। फिर जब एक बार दक्ष प्रजापति ने एक महा यज्ञ किया था, उस यज्ञ में उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए और जब नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहाँ यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है, यह जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहाँ जाने के लिए उन्हें किसी बुलावे की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं मानीं, तो प्रभु ने स्वयं जाने से मना कर दिया। भगवान शिव के रोकने पर भी सती यज्ञ में शामिल हो चली गयीं। यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष, भगवान शंकर के बारे में सती के सामने ही अपमानजनक बात कहने लगे। इस अपमान से पीड़ित होकर सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी. भगवान शिव को जब इस दुर्घटना का पता चला तो यज्ञ-स्थल पर पहुंच कर उन्होंने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाला, कंधे पर उठाया और दुखी मन से वापस कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे. क्रोध के कारण उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे तांडव करने लगे. शास्त्रों में बताया जाता है की ब्रह्मांड को शिव के महा तांडव से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शव को अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़ों में काट दिया। जहां जहां माता सती के शरीर के टुकड़े, वस्त्र एवं आभूषण गिरे, वहाँ वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इस प्रकार माता के कुल 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। शक्तिपीठ एक तरह से ऊर्जा के स्रोत हैं यानि कि वह स्थान, जहां से शक्ति उजागर होती है। हिंदू धर्म में इन शक्तिपीठों की यात्रा का बहुत महत्व है, इनके दर्शन मात्र से ही भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। ऐसा माना जाता है कि ये शक्तिपीठ मनुष्य को समस्त सौभाग्य देने वाले हैं। मनुष्यों के कल्याण के लिए जिस प्रकार भगवान शंकर विभिन्न तीर्थों में पाषाणलिंग रूप में आविर्भूत हुए, उसी प्रकार करुणामयी देवी भी भक्तों पर कृपा करने के लिए विभिन्न तीर्थों में पाषाणरूप से शक्तिपीठों के रूप में विराजमान हैं। आशा करती हूँ आपको हमारा ये विडीओ अच्छा लगा होगा, अगले विडीओ में फिर भेंट होगी, तब तक के लिए नमस्कार। ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ #meditationveda #shaktipeeth #matasati #51shaktipeeth 108shaktipeeth