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जब कोऊ अपना हमुं छोड़ के जात है, तो ऐसो लगत है जैसे हिया (Hia - heart) में कोऊ ने फांस गड़ा दई होय। बुंदेलखंड की माटी में बिछोह को दर्द बहुत गहरा होत है। जे कुछ बातें हैं जो उस बखत महसूस होत हैं: अँखियन को सूनापन: जब कोऊ जात है, तो आँखें रस्ता देखत-देखत पथरा जात हैं। जैसे कतवारी की रात में दिया बुझ गओ होय, वैसे ई जीवन अँधियारो सो लगन लगत है। हिया को धड़कबो: बिछड़बे के नाउँ (naam) से ई छाती धक-धक करन लगत है। ऐसो लगत है जैसे प्राण पखेरू उड़बे को तैयार होंय। यादों को मेलो: उकी हँसी, उकी बातें और वे संग बिताये दिन, मन के कोने में ऐसे गूंजत हैं जैसे खाली हवेली में हवा की साय-साय। सूनी डगरिया: जहाँ संगै घूमत हते, अब वेई रस्ते काटवे को दौड़त हैं। मन कहत है कि काश! एक बेर पलट के देख लेवे। "बिछड़बे की बेला में न कछू सुहात है, न कछू भवात है। बस एक टीस सी उठत है जो दिन-रात भीतर ई भीतर घुन की तरह खात रहत है।" ✍️ Kuch Bundeli Panktiyan (Quotes): "तुम तो चले गये परदेस, हम हिया धरे बैठे हैं। मुड़ के देख लो एक बेर, हम रस्ता तके बैठे हैं।" "बिछड़वो ऐसो रोग है जेकी कोऊ दवा नईं, बस आँखें रोत हैं और मन कत है कि अब कछू बचा नईं।" Kya aap chahte hain ki main is dard par ek choti si Bundeli kavita (poem) ya shayari likh kar doon?