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समवसरण में बिराजमान सर्वोत्कृष्ट पुण्याइ के स्वामी अरिहंत परमात्मा की बाह्य रिद्धि में प्रभुजी की अनासक्त दशा दर्शाती एक अद्भुत रचना। The panegyric that sings the glory of Arihant Parmatama’s Atishays. Lyrics - Pu. Kantivijayji Singer - Kishor Manraja Album - Prabhu Milan Video Saujanya - Meenaben Harshadbhai Shah Parivar (Vanjhwala) Video - Yashvi Digital संपूर्ण स्तवन- ताहरी अजबशी योगनी मुद्रा रे, लागे मुने मीठी रे, ए तो टाले मोहनी निद्रा रे, प्रत्यक्ष दीठी रे। लोकोतरशी जोगनी मुद्रा, व्हाला म्हारा निरुपम आसन सोहे रे; सरस रचित शुक्लध्याननी धारे, सुरनरना मन मोहे रे. त्रिगडे रतन सिंहासन बेसी , व्हाला मारा , चिहुं दिशी चामर ढलावे रे अरिहंत पद प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगी कहावे रे. अमृत झरणी मीठी तुज वाणी , व्हाला मारा, जेम आषाढो गाजे रे कान मारग थइ हियडे पेसी, संदेह मनना भांजे रे. कोडीगमे उभा दरबारे , व्हाला मारा जय मंगल सुर बोले रे त्रण भुवननी रिद्धि तुज आगे, दीसे इम तृण तोले रे. भेद लहुं नहि जोग जुगतिनो, व्हाला मारा सुविधि जिणंद बतावो रे प्रेमशुं कान्ति कहे करी करूणा, मुज मनमंदिर आवो रे.