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श्रेय: संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल लेखक - रमन द्विवेदी भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और सादर अभिनन्दन.... भक्तों वैसे तो हमारे देश के सभी राज्य एक से बढ़कर एक प्राचीनतम धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर संभाले हुये हैं। किन्तु धरोहरों के मामले में राजपूताना के नाम से सुप्रसिद्ध राजस्थान तो देश का मुकुट मणि है। राजस्थान की धरती पर अनेकानेक भवन, महल, गढ़ और मंदिर हैं जिनका कीर्तिध्वज केवल भारत ही नहीं विदेशों तक पहरा रहा है। ऐसा ही एक मंदिर है राजस्थान के डुंगरपुर स्थित देव सोमनाथ मंदिर.... मंदिर के बारे में: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर डूंगरपुर शहर के उत्तर पूर्व दिशा में लगभग 20 किलोमीटर की दूर नदी के तट पर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित देव सोमनाथ मंदिर अपनी वास्तुकला व विशेष निर्माण शैली के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विख्यात इस मंदिर की संरचना अद्भुत व अद्वितीय है। यद्यपि इस मंदिर तक आनेवाले पर्यटकों और श्रद्धालुजनों की संख्या कोई बहुत बड़ी तो नहीं होती, लेकिन जितने भी पर्यटक व श्रद्धालु यहां आते हैं, वे इसकी वास्तुकला और निर्माण शैली को बस निहारते ही रहते हैं। मंदिर का इतिहास: भक्तों यहाँ लगे पुरातत्व विभाग के शिलालेख अनुसार - देव सोमनाथ मंदिर का निर्माण बारहवीं शताब्दी में स्थानीय राजपूत राजा अमृतपाल देव ने गुजरात के सोमपुरा शिल्पकारों से करवाया था। इस मंदिर में दो स्वयंभू शिवलिंग के साथ कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी विराजमान है। इस मंदिर में 14वीं शताब्दी के कुछ अस्पष्ट शिलालेख हैं लेकिन इनकी लिखावट पढ़ना असंभव है। मंदिर की वास्तुकला: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला को अद्भुत, अनुपम और अद्वितीय कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मालवा शैली में निर्मित इस विशाल तीन मंज़िला शिव मंदिर के गर्भगृह से लेकर सभागृह तक की कलाकृति और शिल्पकारी बेजोड़ है। इसमें पश्चिम, पूर्व और दक्षिण में प्रवेशद्वार हैं। मंदिर के जगमोहन की छत की नक्काशी सुंदर और आकर्षक है। संगमरमर के बड़े-बड़े शिलाखंडों को तरासकर बनाया गया ये मंदिर अपनी बनावट से गुजरात के सोमनाथ मंदिर की प्रतिकृति है। मंदिर का प्रवेशद्वार: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर का प्रवेशद्वार आकर्षक शिल्पकारी से परिपूर्ण तथा तोरण से सुसज्जित है। प्रवेशद्वार से लेकर सभामंडप के ऊपरी गुंबद की नक्काशी बहुत ही आकर्षक है। 225 पाषाण स्तंभों से बना मंदिर: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर का तीन मंजिला भवन जहां 150 नक्काशीदार पाषाण स्तंभों पर टिका है तो वहीं शिखर सुंदर नक्काशी किए हुये 75 पाषाण स्तंभों पर आधारित है। इस तरह इस मंदिर में कुल 225 पाषाणों का इस्तेमाल हुआ है जो बिना चूना, बिना गारा और बिना केमिकल का इस्तेमाल किए पत्थरों को काटकर एक-दूसरे से ऐसे फंसाया गया है कि इस तीन मंजिला भवन में कहीं किसी दूसरे विकल्प या सामग्री की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। पांडवों ने प्रतिष्ठित किया था शिवलिंग: भक्तों एक जनश्रुति के अनुसार - देव सोमनाथ मंदिर में विराजमान शिवलिंग को पांडवों के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था। माना जाता है कि जिस गांव में देव सोमनाथ का मंदिर है, वह गांव द्वापर युग का है और उस गांव का नाम देव है। यहाँ समय-समय पर कई राजाओं द्वारा मंदिर का निर्माण, पुनर्निर्माण और जीर्णोद्वार करवाया गया। एक रात में बना मंदिर: भक्तों स्थानीय मान्यता के अनुसार- देव सोमनाथ मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित दोनों ही शिवलिंग स्वयंभू और एक साथ प्रकट हुए है। गर्भगृह में दो शिवलिंग: भक्तों सभा मंडप से नौ फीट की गहराई में स्थित देव सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में दो शिवलिंग स्थापित हैं। कहा जाता है कि यहां पास ही में एक और अति प्राचीन भव्य शिव मंदिर था। लेकिन मुगल आततायियों ने उस मंदिर को नष्ट कर दिया था। भक्तों ने उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग को निकालकर यहां स्थापित कर दिया था। स्फटिक से बने इस शिवलिंग को गोपीनाथ शिवलिंग कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह में जालीदार झरोखे, नर्तकियों की प्रतिमाएं, अनेकों प्रकार की मूर्तियां, सुंदर मेहराब और तोरण आदि देखने लायक हैं। गर्भगृह का प्रवेशद्वार शिल्प एवं सूक्ष्म मूर्तिकला का अप्रतिम उदाहरण है। कुंड: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर के पीछे एक कुंड है जिसे पत्थरों की एक नाली द्वारा गर्भगृह से जोड़ा गया है। इस कुंड के पास हनुमान जी की एक अति प्राचीन काल की सुन्दर मूर्ति विराजमान है। देव सोमनाथ मंदिर का नाम: भक्तों देव सोमनाथ का मंदिर मुगलकाल के दौरान सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर का प्रतिनिधित्व करता था। क्योंकि उन दिनों सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर पर बार-बार मुगल आक्रांताओं का आक्रमण हो रहा था जिसके कारण वहाँ पूजा पाठ करना असंभव हो गया था। इसलिए शिवभक्तों ने सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ के विकल्प और प्रतिकृति स्वरूप, सोमनाथ से 600 किलोमीटर दूर राजस्थान के डूंगरपुर में इस मंदिर का निर्माण करवाया। ये संयोग ही है कि सोमनाथ के विकल्प बना यह मंदिर, सोम गाँव और सोम नदी के तट पर विराजमान है। यही कारण है कि इस मंदिर को देव सोमनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर की आकृति: भक्तों देव सोमनाथ मंदिर की विशेषता यह है कि दूर से देखने पर यह तीन मंजिला इमारत किसी विशाल रथ के समान दिखाई देती है। जबकि इसकी नक्काशी और वास्तु कला रणकपुर स्थित जैन मंदिर से मिलती-जुलती है। भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव।तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।दर्शन! 🙏 #devotional #temple #devsomnathmandir #hinduism #travel #vlogs #rajasthan