Русские видео

Сейчас в тренде

Иностранные видео


Скачать с ютуб माँ शाकुंभरी देवी जयंती 2022 | कुलदेवी माँ शाकुंभरी देवी | Shakambhari Jayanti 2022 в хорошем качестве

माँ शाकुंभरी देवी जयंती 2022 | कुलदेवी माँ शाकुंभरी देवी | Shakambhari Jayanti 2022 3 года назад


Если кнопки скачивания не загрузились НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru



माँ शाकुंभरी देवी जयंती 2022 | कुलदेवी माँ शाकुंभरी देवी | Shakambhari Jayanti 2022

माँ शाकुंभरी देवी जयंती 2022 | कुलदेवी माँ शाकुंभरी देवी | Shakambhari Jayanti 2022 #bhaktimaishaktisaharanpur #shakumbhari #shaktipeeth #shaktipeethkebhairav #viralvideo #viralvideo2022 #viral #video #vtuber #lateshvideo #trending शाकंभरी देवी जयंती हिन्दू धर्म के लिए महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन माँ आदिशक्ति जगदम्बा ने शाकंभरी देवी के रूप में सौम्य अवतार लिया था। ऐसा माना जाता है कि देवी भगवती ने अकाल और पृथ्वी पर गंभीर खाद्य संकट को कम करने के लिए शाकंभरी के रूप में अवतार लिया था। जैसा कि उनके नाम से ज्ञात होता है जिसका अर्थ है - 'शाक' जिसका अर्थ है 'सब्जी व शाकाहारी भोजन' और 'भारी' का अर्थ है 'धारक'। इसलिए सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें फलों और सब्जियों के हरे परिवेश के साथ चित्रित किया जाता है। शाकंभरी देवी को चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। माँ शाकम्भरी को ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा कहा जाता है। माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन माना जाता है। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है। जयंती उत्सव माँ श्री शाकंभरी की जयंती पर मेले का आयोजन भी होता है जिसमें सबसे ज्यादा माने जाने वाल मंदिर शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर में स्थित है। इस दिन शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर पर लाखों भक्त माँ के दर्शन हेतु आते है। शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर को शक्ति पीठ कहा जाता है। इसके अलावा दो मंदिर और है, जो शाकंभरी माता सकरायपीठ और शाकंभरी माता सांभर पीठ है। ऐसा माना जाता है कि शाकंभरी माता के पूजन से अन्न, फल, धन, धान्य और अक्षय फल की प्राप्ति होती है। माँ शाकम्भरी देवी जी सहारनपुर की अधिष्ठात्री देवी है। शाकंभरी देवी के अवतार की कथा देवी पुराण, शिव पुराण और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य रूरु था। रूरु का एक पुत्र था जिसका नाम दुर्गमासुर था। दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया। वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएँ लुप्त हो गयी। ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग कर दिया। चौतरफा हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञादि अनुष्ठान बंद हो गये और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। जिसके कारण एक भयंकर अकाल पड़ा। किसी भी प्राणी को जल नही मिला रहा था। जल के अभाव मे वनस्पति भी सूख गयी, जिसके काराण भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे। दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लडाई हुई जिसमें देवताओं की हार हुई अतः दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये तथा जगदम्बा का ध्यान, जप, पुजन और स्तुति करने लगे । उनके द्वारा जगदम्बा की स्तुति करने पर महामाया माँ पार्वती जो महेशानी, भुवनेश्वरि नामों से प्रसिद्ध है आयोनिजा रूप मे सहारनपुर शक्ति पीठ स्थल पर प्रकट हुई। समस्त सृष्टि की दुर्दशा देख जगदम्बा को बहुत दुख हुआ और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। आंसुओं की धारा से सभी नदियां व तालाब पानी से भर गये। देवताओं ने उस समय माँ की शताक्षी देवी नाम से आराधना की। शताक्षी देवी ने एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। चतुर्भुजी माँ कमलासन पर विराजमान थी। अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी। भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किये। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। माता ने पहाड़ पर दृष्टि डाली तो सर्वप्रथम सराल नामक कंदमूल की उत्पत्ति हुई । इसी दिव्य रूप में माँ शाकम्भरी देवी के नाम से पूजित हुई। तत्पश्चात् वह दुर्गमासुर को रिझाने के लिये सुंदर रूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाकर बैठ गयीं। जब असुरों ने पहाड़ी पर बैठी जगदम्बा को देखा तो उनकों पकडने के विचार से आये। स्वयं दुर्गमासुर भी आया तब देवी ने पृथ्वी और स्वर्ग के बाहर एक घेरा बना दिया और स्वयं उसके बाहर खडी हो गयी। दुर्गमासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ अंत मे दुर्गमासुर मारा गया। इसी स्थल पर मां जगदम्बा ने दुर्गमासुर तथा अन्य दैत्यों का संहार किया व भक्त भूरेदेव(भैरव का एक रूप) को अमरत्व का आशीर्वाद दिया।माँ की असीम अनुकम्पा से वर्तमान में भी सर्वप्रथम उपासक भूरेदेव के दर्शन करते हैं तत्पश्चात पथरीले रास्ते से गुजरते हुये मां शाकम्भरी देवी के दर्शन हेतु जाते हैं। जिस स्थल पर माता ने दुर्गमासुर नामक राक्षस का वध किया था वहाँ अब वीरखेत का मैदान है। जहाँ पर माता सुंदर रूप बनाकर पहाड़ी की शिखा पर बैठ गयी थी वहाँ पर माँ शाकम्भरी देवी का भवन है। जिस स्थान पर माँ ने भूरा देव को अमरत्व का वरदान दिया था वहाँ पर बाबा भुरादेव का मंदिर है। प्राकृतिक सौंदर्य व हरी- भरी घाटी से परिपूर्ण यह क्षेत्र उपासक का मन मोह लेता है। देवीपुराण के अनुसार शताक्षी, शाकम्भरी व दुर्गा एक ही देवी के नाम हैं।

Comments