У нас вы можете посмотреть бесплатно अमरूद की खेती कर महाराष्ट्र का किसान बना लखपति।अब यहां किसान भी बन सकता हैं इस तरह करोड़पति। или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
जैविक अमरुद की खेती से किसानों का बदला जायका 3 वर्ष पहले जिले में अब तक परंपरागत खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बना है। इस बीच कुछ युवा किसानों ने परंपरागत खेती से हटकर अत्याधुनिक खेती करने की ठानी जो आज न नजीर है बल्कि किसानों की खेती का जायका ही बदल दिया। बंगाल और सिक्किम में जैविक तरीके से हो रहे फलों की खेती से प्रेरित होकर ठाकुरगंज के पावरहाउस के शिवरत गुप्ता पिछले दस वर्षों से चुरली पंचायत के धोबीभीट्टा गांव में 16 एकड़ जमीन लीज पर लेकर जैविक खेती के माध्यम से अमरूद की खेती कर रहे हैं। स्थिति यह है कि आज ठाकुरगंज क्षेत्र में 50 एकड़ में कई युवा अमरूद बगान लगाकर अपनी जीविका चला रहे है। सीमावर्ती क्षेत्र के किसानों का झुकाव तेजी से जैविक खेती की ओर बढ़ा है। अपने अमरूद के बगान में पौधों की देखभाल करते शिवरत। प्रत्येक वर्ष बढ़ता है फलों का उत्पादन पहले वर्ष में एक पौधे से दस किलो अमरूद मिलता है तो दूसरे वर्ष तीस किलो ,तीसरे वर्ष 40, चौथे वर्ष 50 से 60 और आठवें साल के बाद 70 से 80 किलो फल प्रत्येक पौधे से प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए समय -समय पर पौधों की देखभाल आवश्यक है । जैविक खाद के उपयोग से बढ़ती है उत्पादन क्षमता शिवरत गुप्ता बताते हैं कि ग्यारह वर्ष पूर्व वे कलकत्ता और सिक्किम घूमने गए थे। वहां उनके दोस्त जैविक खाद की खेती से फलों का उत्पादन करके अच्छी कमाई कर रहे थे। जैविक खाद से खेती की सारी जानकारी लेकर अमरूद के पौधों की पुल्लिया मंगवाकर अमरूद का बगान लगाया। अब खुद पुल्ली अपने बगान में ही तैयार करता हूं। केचुआ, गोबर जैसे जैविक खाद का उपयोग किया जाता है और स्प्रे के लिए नीम पत्ता, हल्दी और खैनी गुंडा का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पौधे सुरक्षित रहते हैं। एक एकड़ में लगते हैं 240 पौधे शिवरत गुप्ता बताते हैं एक एकड़ जमीन पर अमरूद के 240 पौधे लगाये जा सकते है तथा प्रत्येक पौधे पर फल लगने तक पहले वर्ष 240 रूपये की लागत आती है। उसके बाद लागत धीरे-धीरे घटने लगती है । 14 से 15 महीने में पौधों में फलों का लगना आरंभ हो जाता है। खाजा और काबली हैं उन्नत प्रभेद सीमावर्ती क्षेत्र के 50 एकड़ से अधिक की जमीन पर अमरूद के बगान लगाकर उत्पादन किया जा रहा है। इस्लामपुर और सिलीगुङी से फल व्यापारी बगान में आकर इसकी खरीदारी कर ले जाते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में दो प्रकार के अमरूद खाजा (एनेक्सर 1) बड़े अकार का और काबली दाना (एनेक्सर 2) होता है।