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हिमालय की वादियों में बसे गढ़वाल में यूं तो मानव बस्तियों से ज्यादा देवी-देवताओं के स्थान और मंदिर बने हुए हैं मगर कुछ देवताओं के स्थान इतने घनघोर जंगलो में स्थित हैं कि वहां जाने के लिए भी विशेष साहस की जरूरत पड़ती है। ऐसा ही एक मंदिर है बिनसर महादेव का मंदिर। यह पौड़ी गढ़वाल के थैलीसैण में चौथान ब्लॉक में पड़ता है। समुद्र तल से 2,480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर थैलीसैण से 22 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि इस मंदिर कि स्थापना महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिंदु कि स्मृति में बनाया था जिस कारण से इसे बिंदेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। और कुछ लोगो का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा किया गया था और जो की केवल एक रात में बनाया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवो ने अपने वनवास के समय अज्ञातवास समयावधि को यही गुजारा था। बिनसर महादेव मंदिर प्राचीन शिल्पकला का अद्भुद नमूना है। मंदिर के पास ही भीम घट नामक एक शिला भी है। इस शिला में भीम के पांव के निशान छपे हुए है इसलिए ही इसे भीम शिला कहा जाता है । साथ ही यह मान्यता है कि इस शिला के नीचे पांडवो के अस्त्र शस्त्र दबे हुए है। अक्टूबर नवंबर के महीने में आने वाली वैकुंठ चतुर्दशी के दिन यहां विशेष प्रकार की पूजा जाती है। सारे श्रधालू वैकुंठ चतुर्दशी की दिन पूरी रात भर हाथो में दिए लिए खड़े रहते है। जो कोई भी सारी रात भर हाथ में दिए लिए खड़ा रहता है, उसकी को भी मनोकामना होती है भगवान बिनसर उसे पूरा करते है। बिनसर महादेव संतान प्राप्ति के लिए भी बेहद पर्षिद्ध है। मंदिर बहुत ही रमणीक जगह पर स्तिथ होने के कारण पर्यटन के उद्देश्य से भी लोग यहां आते है। गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा में स्तिथ होने के कारण गढ़वाल तथा कुमाऊं दोनों मंडलों के लोग भगवान बिनसर को अपना ईष्ट मानते है। बिनसर महादेव से हिमालय की त्रिशूल नामक श्रृखला का अद्भुद नजारा देखा जा सकता है।