У нас вы можете посмотреть бесплатно जब देवता लौटते हैं अपने लोक | जागर समाप्ति की परंपरा🔱🕉️🙏 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
#jagar #uttarakhand #culture 🔱 जागर में “समाप्ति देवता” कौन होते हैं? (संक्षेप में) उत्तराखंड के पारंपरिक जागर में जब मुख्य देवता (जैसे भैरव, गोलू, ऐड़ी, मालूशाही, नाग, मातृका आदि) अपना न्याय, वरदान या आदेश दे देते हैं, तब जागर को विधिपूर्वक समाप्त किया जाता है। इस अंतिम चरण में जिन देव शक्तियों का आवाहन होता है, उन्हें ही लोक परंपरा में “समाप्ति देवता” कहा जाता है। ये देवता: जागर की ऊर्जा को शांत करते हैं देवता को उनके लोक/स्थान तक सम्मानपूर्वक विदा करते हैं घर-गांव को दोष, भय और अशांति से मुक्त करते हैं 📖 कथा : समाप्ति देवता की कहानी (लोक मान्यता) जब उत्तराखंड के किसी गांव में देव जागर लगता है, तो देवता डंगरिये के शरीर में अवतरित होकर अपना न्याय करते हैं। कोई रोग हो, अन्याय हो, देव दोष हो या मनोकामना—सबका समाधान देव वाणी से होता है। परंतु लोक मान्यता है कि “जब तक देवता को सही रीति से विदा न किया जाए, तब तक उसकी शक्ति उसी स्थान पर बनी रहती है।” इसीलिए जागर के अंत में समाप्ति देवता को बुलाया जाता है। कहते हैं कि प्राचीन काल में एक गांव में भैरव देवता का जागर हुआ। देवता ने सबका न्याय कर दिया, पर जागर को बिना समाप्ति विधि के ही रोक दिया गया। उस रात गांव में अजीब बेचैनी, पशुओं का रोना और लोगों के स्वप्नों में देव संकेत आने लगे। तब बुजुर्ग जगरिया ने कहा— “देवता अभी गए नहीं हैं, उन्हें विदा करने को समाप्ति देवता का आवाहन जरूरी है।” अगले दिन फिर ढोल-दमाऊ बजे। समाप्ति देवता का स्मरण हुआ— देवता को जल, फूल, अक्षत अर्पित किए गए क्षमा याचना की गई देवता से अपने लोक लौटने की प्रार्थना की गई तभी वातावरण शांत हुआ, और गांव में फिर से सुख-शांति लौटी। तब से मान्यता बनी— “जागर बिना समाप्ति देवता के अधूरा है।” 🕯️ समाप्ति देवता कहाँ जाते हैं? लोक विश्वास के अनुसार: देवता अपने निज लोक, कैलाश, हिमालय की अदृश्य घाटियों, या अपने मूल स्थान (थान/खेत/वन/चोटी) में लौट जाते हैं और गांव की रक्षा का आशीर्वाद देकर विदा लेते हैं उत्तराखंड की देवभूमि में होने वाला जागर केवल देव आवाहन नहीं, बल्कि एक पूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जब देवता अपना न्याय और वरदान देकर उपस्थित जनों को आशीष देते हैं, तब जागर की अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण विधि होती है — समाप्ति देवता। समाप्ति देवता देव शक्ति को शांत कर, उन्हें सम्मानपूर्वक उनके लोक तक विदा करते हैं। मान्यता है कि यदि जागर बिना समाप्ति के किया जाए, तो देव ऊर्जा उसी स्थान पर बनी रहती है, जिससे अशांति हो सकती है। यह कथा हमें सिखाती है कि देवता को बुलाने के साथ-साथ, उन्हें सही रीति से विदा करना भी उतना ही जरूरी है। 🙏💐🔱🕉️