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राग दुर्गा * जाति: औडव-औडव (5 स्वर आरोह और 5 स्वर अवरोह में) स्वर: सभी स्वर शुद्ध (सा, रे, म, प, ध, नि), लेकिन गंधार (ग) और निषाद (नि) वर्ज्य (नहीं लगते) थाट: बिलावल गायन समय: रात्रि का दूसरा प्रहर (लगभग रात 9 बजे से मध्यरात्रि तक), लेकिन दिन में भी गाया जा सकता है. रस: भक्ति और वीर रस वादी स्वर: मध्यम (म) संवादी स्वर: षडज (सा) या धैवत (ध) विशेषता : पंचम (प) पर अवरोह में विश्राम नहीं करते (न्यास स्वर नहीं है) और मध्यम (म) स्पष्ट लगता है, जिससे राग खिलता है। महत्व और प्रभाव: यह राग देवी दुर्गा से जुड़ा है और उनकी स्तुति के लिए उपयुक्त माना जाता है, जो सुरक्षा और आनंद का भाव देता है। इसकी सादगी और मधुरता के कारण यह राग शुरुआती संगीत छात्रों के लिए एक उत्कृष्ट शिक्षक है और कलाकारों की पहली पसंद भी होता है। यह तनाव कम करने और मन में सकारात्मकता लाने में मदद करता है, अनाहत चक्र को सक्रिय करता है। यह राग मूल रूप से दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत (कर्नाटक संगीत) का है, जिसे 'शुद्ध सावेरी' के नाम से भी जाना जाता है, और अब हिंदुस्तानी संगीत में भी बेहद लोकप्रिय है, जो उत्तर और दक्षिण संगीत शैलियों के बीच एक सेतु का काम करता है। #swaramritacademy #indianclassicalmusic #song #music #learning